बुधवार, फ़रवरी 26, 2014

'कुछ नहीं' कहते सुनते बात कुछ तो बन जाएगी
बन कर जो बनेगी 'निर्जन' कुछ तो कहलाएगी

तेरे अंदाज़-ए-अदब बातों में पढ़ता है 'निर्जन'
और यह जो पढ़ता है कोई और ना पढ़ता होगा 

शुक्रवार, फ़रवरी 21, 2014

तू साथ दे तो












तू कहती हैं तेरे लिए ये ग़ज़ल लिख दूं
तू साथ दें तो शब्दों का कँवल लिख दूं

गालों की सुर्खी से तेरी किरण लिख दूं
तू साथ दें तो आसमां पर सनम लिख दूं

आँखों के काजल से तेरे ये रात लिख दूं
तू साथ दें तो सितारे भी मैं साथ लिख दूं

दिल कहे है कागज़ पर गुलाब लिख दूं
तू साथ दें तो इश्क़ का गुलदस्ता लिख दूं

'निर्जन' तेरी आरज़ू इस दिल पर लिख दूं
तू साथ दे तो ज़िन्दगी भर आदाब लिख दूं 

बुधवार, फ़रवरी 19, 2014

देखे दुनिया










ज़िन्दगी में मुश्किलों से होगा परिचय
मुसीबतों के गुलों से होगा सामना
ऐसे में जीवन को कोसने से क्या लाभ
क्षण ऐसे व्यर्थ ना ज़ाया कर 'निर्जन'
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया

ज़िन्दगी में हर मोड़ हर पल हर पहर
छूटेगा किसी का साथ बिछड़ेगा कोई
पल पल बदलता रहेगा सफ़र ऐसे ही
पथ ऐसे व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन का
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया

ज़िदगी में अँधेरे आयेंगे दुःख छाएंगे
दर्द के बदल आंसू बन बरस जायेंगे
टूटेगी आस तब सांस भी थम जाएगी
हिम्मत व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन की
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया

रोज़ पतझड़ आयेंगे सूखेंगे हौसलें
सींच अपने खून से पायेगा मंजिलें
सांस जब तक रहे बना नए घोंसले
शक्ति व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन की
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया

ले शपथ कर सामना देखे दुनिया...

शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2014

सनम














इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम

महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम

मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम

हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम

तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम

सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 10, 2014

तू क्या जाने
















तू क्या जाने इस दिल में
तेरी बेक़रारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी दुश्वारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी खुमारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी जिम्मेदारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी उन्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी शक्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
'निर्जन' धड़कन है क्या

ये दिल समझाता तुझको
कभी तू दिल को समझा

शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

गुलपोश














गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है

अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं

उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में

सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है

गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं 

रविवार, फ़रवरी 02, 2014

तुम्हारे लिए





















मेरी कविता, मेरे अलफ़ाज़
मेरी उम्मीद, मेरे उन्माद
मेरी कहानी, मेरे जज़्बात
मेरी नींद, मेरे ख्व़ाब
मेरा संगीत, मेरे साज़
मेरी बातें, मेरे लम्हात
मेरा जीवन, मेरे एहसास
मेरा जूनून, मेरा विश्वास
सब तुम्हारे लिए ही तो है
फिर क्या ज़िन्दगी में
तुमसे कह नहीं सकता
मेरे जीवन का हर क्षण
तुम्हारे लिए ही तो है
तुम भी अपनी साँसों में
मेरी हर एक सांस को
बसा सकते हो क्या ?
इस ज़िन्दगी में तुम
हर पल हर क्षण यही
गीत गा सकते हो क्या ?

एक गीत एक कविता
फिर कहानी सुनाएगी
कहेगी, बतलाएगी
मेरी मस्ती में तुम भी
शामिल हो जाओगी
निश्छल निर्मल
अनोखी सरल
शरारती दिल्लगी
तुम्हारे जीवन में
संचार करेगी तिश्नगी
जब तुम पा जाओगे
इश्क की मंजिल वही
ज़िन्दगी के हर लम्हे में
हर मोड़ पर हल पल में
फैल जाएगी सुगन्ध
महक मेरे पागलपन की
तसव्वुर में तुम्हारे
तब बेचैन हो उठोगे
अपने आप को
मेरी पहचान में
शामिल करने को.....

शुक्रवार, जनवरी 31, 2014

रात के आगोश में





















रात के आगोश में...

छा रहीं मदहोशियाँ
धीमी सरसराहटें
कर रहीं सरगोशियाँ
ख़ामोशी की ज़बां
कहती है कहकशां
तेरी वो गुस्ताखियाँ
जाज़िब बदमाशियाँ

रात के आगोश में...

बातें बस यूँ ही बनीं
उसने जो कुछ कही
उन बंद होटों से सही
दिल से इबादत यही
कर जज्बातों को बयां
जुस्तजू-ए-ज़ौक़ रही
मौन रह सब मैंने सुनी

रात के आगोश में...

चलती मुझसे गुफ़्तगू
छोड़ कर सोने चली
भूल ख्वाबों से मिली
'निर्जन' बे कस बैठा
बे क़द्र रातें कोसता
लफ़्ज़ों को सोचता
ज़ह्मत को परोसता

रात के आगोश में...

जाज़िब : मनमोहक, आकर्षक
जुस्तजू : खोज, पूछ ताछ, तलाश
ज़ौक़ : स्वाद
बे कस : अकेला, मित्रहीन
बे क़द्र : निर्मूल्य
ज़ह्मत : मन की परेशानी, विपदा, दर्द

सोमवार, जनवरी 20, 2014

क्या कहूँ
















अमा अब क्या कहूँ तुझे हमदम
नूर-ए-जन्नत, दिल की धड़कन 
जान-ए-अज़ीज़, शमा-ए-महफ़िल 
गुल-ए-गुलिस्तां, लुगात-ए-इश्क़
हर दिल फ़रीद, दीवान-ए-ज़ीस्त
अलफ़ाज़ होते नहीं मुकम्मल मेरे 
पुर-सुकून शक्सियत तेरी जैसे 
महकती फ़ज़ा-ए-गुलशन 'निर्जन'
हो सुबहो या शामें या रातों की बेदारी  
तुझको देखा आज तलक नहीं है
फ़िर भी 
तुझको सोचा बहुत है हर पल मैंने.... 

लुगात : शब्दकोष, dictionary
दीवान : उर्दू में किसी कवि या शायर की रचनाओं का संग्रह, collection of poems in urdu
ज़ीस्त : ज़िन्दगी, life
अलफ़ाज़ : शब्द, words
मुकम्मल : पूरे, complete
पुर-सुकून : शांत, peaceful/tranquil
बेदारी : अनिद्रा, wakefullness

बुधवार, जनवरी 15, 2014

देखे होंगे


















मेरी तरह उसने भी तो रातों में
चाँद से लिपटते तारे देखे होंगे
चांदनी के आगोश में सिमटते
वो मदहोश नज़ारे देखे होंगे
रात के आसमान में धीरे से
खिसकते बादल देखे होंगे
छत की मुंडेर को थामे वो
रातों में मुझे ढूँढ़ते तो होंगे
सियाह रात के सर्द कुहरे में
बंद होठ धीरे से मुस्कुराते होंगे
अनकहे अनछुए एहसास उसके
दिल में भी धड़कते मचलते होंगे
बस कह नहीं पाता है वो
दिल की बात 'निर्जन' तुझसे
ये बात दीगर है कि सपने तो
उसने भी वही देखे होंगे...

मंगलवार, जनवरी 07, 2014

दिल का पैगाम





















उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल दरिया है, रूप कमल है, सोच है आह्लम
हंसी ख़ियाबां, नज़र निगाहबां, ऐसी हैं ख़ानम
ख़ुदाई इबादत, इश्क़ की बरकत, जैसे हो ईमान
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल अज़ीज़ है, अदा अदीवा है, मिजाज़ है शबनम
खून गरम है, बातें नरम हैं, शक्सियत में है बचपन
लड़ती रोज़ है, भिड़ती रोज़ है, जिरह उनका काम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

जब से मिला हूँ, तब से खिला हूँ, बनते सारे काम
मुस्कुराहटें, सरसराहटें, रहती सुबहों और शाम
दुआ रब से, मांगी है कब से, मिल जाये ये ईनाम
सोच रहा है 'निर्जन' उनको दे, कैसे दिल का पैगाम

आमद : आने
आह्लम : कल्पनाशील
ख़ियाबां : फूलों की क्यारी
निगाहबां : देख भाल करने वाला
ख़ानुम(ख़ानम) : राजकुमारी
अज़ीज़ : प्रिय
अदा : श्रृंगार, सुन्दरता
अदीवा : लुभावनी
शबनम : ओस
जिरह : बहस