सोमवार, अक्तूबर 28, 2013

कौन निभाता किसका साथ















कौन निभाता किसका साथ 
आती है रह-रह कर यह बात 

मर कर भी ना भूलें जो बातें 
कोई बंधा दे अब ऐसी आस 

गुज़रे लम्हों को लगे जिलाने  
रो रो दिनभर कर ली है रात

सूना यह दिल किसे पुकारे 
दया ना आती जिसको आज 

आना होता अब तो आ जाता 
अपनी कहने सुनने को पास 

कह देता इतना मत रो अब 
यह अपने आपस की बात 

झूठी हसरत सुला कब्र में 
सुबह हुई 'निर्जन' अब जाग 

आती है रह-रह कर यह बात 
कौन निभाता किसका साथ 

बुधवार, अक्तूबर 23, 2013

आराधना - एक सोच

बहुत दिनों से सोच रहा था इस कहानी आगाज़ कैसे करूँ, कैसे शब्दों में बयां करूँ, अब जाकर कुछ सोच विचार कर मन बन पाया है | कहानी शुरू होती है हिंदुस्तान के दिल से यानी मेरी अपनी दिल्ली से | जी हाँ!  भारत की राजधानी दिल्ली | कहानी की नायिका है ‘आराधना’ | एक माध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी, सुन्दर और सुशील कन्या | गोरा रंग, छरहरा बदन, तीखे नयन नक्श, स्वाभाव से बेहद चंचल और नटखट लेकिन बहुत ही अड़ियल है | गुस्सा तो जैसे हमेशा नाक पर धरा रहता है | जीवन में सवाल इतने के तौबा | अगर कोई साथ बैठ जाए तो ये मोहतरमा उनके जीवन का समस्त निचोड़, व्यक्तित्त्व का सारा नाप तौल और जीवन परीक्षण अपने सवालों से ही ले डालें और यदि कोई भूख से तड़पता हो तो इनके सवालों से ही उसका पेट भर जाये | इस लड़की के व्यक्तित्त्व में अनेकों खूबियों के साथ ख़ामियों की शिरकत भी बराबर दुरुस्त थी | जहाँ ये किसी से भी हुई बड़ी से बड़ी लड़ाई, तू तू मैं मैं, बहस, झगड़े इत्यादि को पल में बच्चों की तरह ऐसे भूल जाती जैसे कुछ हुआ ही न हो | वहीँ ना जाने क्यों ये कभी भी किसी पर भरोसा नहीं करती थी | यदि करती भी थी तो समय इतना निकाल देती भरोसा जताने में के गाड़ी प्लेटफार्म से निकल जाती | खैर इधर उधर की बात करने की बनिस्बत कहानी पर आते हैं | यह कहानी है उसके दिल और भरोसे के आपसी तालमेल, मतभेद, वार्तालाप और एक दूसरे के साथ हुए अनुबंध की जिसमें देखना यह है के जीत किसकी होती है | दिल की या भरोसे की |

अचानक यूँ ही एक दिन बात करते आराधना को ख्याल आया के उसका दिल और भरोसा दोनों अपनी जगह से नदारत है | तो लगा इन्हें ढूँढा जाये और लगीं इधर उधर अपने आप पास ढूँढने | ढूँढ मचाते यकायक अपने व्यक्तित्त्व की एक सूनी सी गली में जा पहुंची | माज़ी के कुछ अवशेष उस गली में बिखरे पाए और वहीँ गली के नुक्कड़ पर पड़ी एक पुरानी यादों की अलमारी की सबसे आख़िरी दराज़ में से कुछ आवाजें आती सुनाई पड़ीं | धीरे से आगे बढ़कर दराज़ को खोल कर देखा में उसने अपनी दिल और भरोसे को आपस में बात करते पाया | दोनों आपस में ख़ुसुर-फ़ुसुर करने में लगे थे | धीरे से कान लगाकर सुनने पर पता चला के बात दोनों के बीच मूल्यों और अपने महत्त्व को लेकर बातचीत हो रही थी |

भरोसा दिल से पूछता है, “ऐ दिल! क्या तू मुझपर भरोसा करता है ?”

दिल ने जवाब दिया, “यार! वैसे दिल तो नहीं कर रहा मेरा तुझपर ऐतबार करने को पर क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा “

भरोसा बोला, “यार हम दोनों तो हमेशा एक दुसरे के साथ रहते हैं | इतने समय से दोनों साथ हैं | फिर भी तू ऐसी बातें कर रहा है | मेरे भरोसे का खून कर रहा है | मेरा भरोसा तोड़ रहा है | ये कहाँ का इंसाफ़ हुआ मेरे भाई ?

दिल कुछ सोच के बोला, “यार! सच बतलाऊं दिल तो मेरा भी बहुत चाहता है के तेरे भरोसे पर ऐतबार कर लूं पर क्या करूँ मेरा दिल भी कितना पागल है ये कुछ भी करने से डरता है और सामने जब तुम आते हो ये ज़ोरों से धड़कता है | ऐसा कितनी बार हुआ है ज़िन्दगी के गलियारों में, दिल मेरा टूटा है भरोसे पर किये बीते वादों से |

भरोसे ने यह सुना तो उसकी आँखें नम हो कर झुक गईं | वो बोला, ‘सुन यार दिल हम दोनों एक ही ईमारत के आमने सामने वाले फ्लैट में रहते हैं | बिना दिल की मदद के भरोसे की गाड़ी नहीं चलती और ना बिना भरोसे दिल ही धड़कता है | मैं ये बात मान सकता हूँ कि किसी झूठे भरोसे पर तेरा दिल तार तार हुआ होगा पर क्या यह सही होगा कि किसी एक के कुचले भरोसे की सज़ा दुसरे के ईमानदार भरोसे को दी जाये ?”

दिल खामोश था, सोच रहा था क्या जवाब दे | कुछ देर सोचने के बाद दिन ने कहा, “ऐ दोस्त यकीन मुझको तेरी ईमानदारी पर पूरा है | तेरे भरोसे पर ऐतबार मेरा पूरा है पर ये दिल के जो घाव हर पल टीस देते हैं, कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं जो जीवन भर हरे ही रहते हैं |“

भरोसा समझदार था, पीड़ा दिल की समझ गया, धीरे से दिल के पास गया और अपने हाथ को दिल पर रखकर बोला, “दर्द तेरा जो है मैं समझ गया पर बस इतना करना एक आख़िरी दफ़ा मुझसे मिलकर तू मुझे अपनाने की कोशिश करना | बस यह छोटा सा वादा है तुझसे मैं तुझको दुःख न पहुंचाऊँगा | तेरे टूटने से पहले मैं खुद ही फ़नाह हो जाऊँगा | बस इतना एहसान तू मुझपर करना एक ज़रा हाथ अपना बढ़ा देना | थाम के आँचल मेरा तुम जीने की दुआ करना | फिर जीना क्या है वो मैं बतलाऊंगा | खुशियों से दामन तेरा मैं हर पल भरता जाऊंगा |”

दिल ने सुनकर, नज़रें उठा कर देखा, खुशियाँ भर कर आँखों में भरोसे की बातों पर सोचा, धीरे से मुस्कराया और थाम हाथ भरोसे का आँखों आँखों में विश्वास दर्शाया | सोचा एक मौका तो देना बनता है | पकड़ हाथ भरोसे का दिल जीवन की सीढ़ी चढ़ता है |

आराधना अचंभित खड़ी यह सब सुन और देख रही थी और अपने चेतन मस्तिष्क में कुछ नई खुशियाँ बुन रही थी | सोच रही थी क्या दिल और भरोसे की इस भागीदारी से वो जीवन नया बनाएगी | इस अनोखी भागीदारी को वो क्या कह के बुलाएगी | साथ किसका वो देगी अब ? वो दिल को जीत दिलाएगी या भरोसे को अपनाएगी ?

आखिर में फैसला इंसान खुद ही करता है वो जीवन में भरोसे को चुनता है या अपने दिल की सुनता है | क्योंकि दिल और भरोसा एक दुसरे के पूरख है | जीवन दोनों से ही आगे बढ़ता है | किसी एक का हाथ भी छूट जाये तो इन्सान सालों साल दुःख के आताह दलदल में तड़पता है |
आराधना का फैसला क्या होगा ये मैं अपने सभी पढ़ने वाले दोस्तों पर छोड़ता हूँ | आप ही बताएं आप ही सुझाएँ इस कहानी की शुरुवात अब आगे क्या होगी | 

सोमवार, अक्तूबर 21, 2013

धोखेबाज़ दोस्त

















अब ऐतबार के लायक रहा नहीं जहाँ
दोस्त बन के देते हैं धोखा कहाँ कहाँ

दर्द-ए-दिल बताओ जो अपना जान के
दो मुंहे डसते हैं ये फन अपना तान के

ना करना भरोसा दुनिया पर तुम कभी
दुखेगा दिल तुम्हारा सोचो ये तुम अभी

छिपा कर दिल के घाव रखो सबसे जुदा
दुनिया में मिलेगा पगपग पर नया खुदा

बातों में उनकी आकर पछताओगे तुम
सीने में खंजर घोंप के हो जायेंगे ये गुम

गुज़ारिश 'निर्जन' करता तुमसे है यही
भरोसा न करना ऐसों पर रहेगा सदा सही

सोमवार, अक्तूबर 14, 2013

जीवन हर पल बदल रहा है















जब मैं छोटा बच्चा था, दुनिया बड़ी सी लगती थी
घर से विद्यालय के रास्ते में, कई दुकाने सजती थीं
लल्लू छोले भठूरे की दूकान, चाट का ठेला, बर्फ का गोला
मूंग दाल के लड्डू का खोमचा, हलवाई के रसीले पकवान
और भी ना जाने क्या क्या था, जीवन के यह रस ज्यादा था
आज वहां पर बड़ी दुकाने हैं, बड़े बड़े पार्लर और शोरूम हैं
भीड़ तो बहुत दिखाई देती है, फिर भी सब कुछ कितना सूना है
लगता है जीवन सिमट रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है

जब मैं छोटा बच्चा था, शामें लम्बी होती थीं मेरी
हर शाम साथ गुज़रती थीं, मुझसे ही बातें करती सी
छत पर घंटो पतंगे उड़ाता था, गलियों में दौड़ लगाता था
शाम तलक थक कर चूर होकर, मैं घर को वापस आता था
माँ की गोदी में सर रखकर, बस अनजाने ही सो जाता था
अब सब मस्ती वो लुप्त हुई, जीवन में शामें भी सुप्त हुई
अब दिन तो ढल जाता है, पर सीधे रात को पाता है
लगता है वक़्त सिमट रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है

जब मैं छोटा बच्चा था, तब खेल बहुत हुआ करते थे
पापा के डर से हम, पड़ोसी की छत पर कूदा करते थे
लंगड़ी टांग, इस्टापू, छुपान छुपाई, पोषम पा,
टिप्पी टिप्पी टैप, पकड़म पकड़ाई, उंच नींच का पपड़ा
कितने ही ढेरों खेल थे जब, मिलकर साथ में खेलें थे सब
सब मिलकर केक काटते थे, आपस में प्यार बांटते थे
तब सब साथ में चलते थे, गले प्यार से मिलते थे
अब इन्टरनेट का दौर है जी, मल्टीप्लेक्स का जोर है जी
फुर्सत किसी को मिलती नहीं, आदत किसी की पड़ती नहीं
लगता है ज़िन्दगी भाग रही है, जीवन हर पल बदल रहा है

जब मैं छोटा बच्चा था, तब दोस्त बहुत से मेरे थे
तब दोस्ती गहरी होती थी, साथ में सब मिल खेलते थे
मिल बैठ के बाँट के खाते थे, सब मटर यूँही भुनाते थे
जब हँसना रोना साथ में था, कम्बल में सोना साथ में था
इश्क विश्क की बातें साँझा थीं, हीर की और राँझा की
अब भी कई दोस्त हैं मेरे, पर दोस्ती न जाने कहाँ गई
ट्रैफिक सिग्नल पर मिलते हैं, या फसबुक पर खिलते हैं
हाई-हेल्लो बस कर के ये, अपने अपने रास्ते चलते हैं
होली, दिवाली, जन्मदिन, नव वर्ष के मेसेज आ जाते हैं
लगता है रिश्ते बदल रहे हैं, जीवन हर पल बदल रहा है

अब शायद मैं बड़ा हो गया हूँ, जीवन को खूब समझता हूँ
जीवन का शायद सबसे बड़ा सच यही है 'निर्जन'
जो अक्सर शमशान घाट के बाहर लिखा होता है
'मंजिल तो यही थी, बस ज़िन्दगी गुज़र गई यहाँ आते आते"
ज़िन्दगी के लम्हे बहुत छोटे हैं, कल का कुछ पता नहीं
आने वाला कल सिर्फ एक सपना है, जो पल पास है वही अपना है
उम्मीदों से भर कर जीवन को, जीने का प्रयास अब करना है
जीवन को जीवन सा जीना है, नहीं काट काट कर मरना है
लगता है जीवन संभल रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है

रविवार, अक्तूबर 13, 2013

दुर्गा द्वारा मरना होगा





















हर ओर हैं आज दरिन्दे
कब तक तुम ऐसे रोओगी
भारत की धरती कब तक
अपने अश्कों से धोओगी

क्षत्राणी, वीरांगनाओं की
इस ओजस्वी भूमि पर
समर भयंकर सम्मुख सेना में
हैं लाखों रावण रणभूमि पर

हाथों उनके लाज तुम अपनी
ऐसे कब तक खोओगी
मस्तक झुका पिट पिट कर
चिर निद्रा में सोओगी

मान यदि रखना है अपना
चलो हाथ में खड़क उठा
इस दशहरा के अवसर पर
उद्घोष करो तुम बिगुल बजा

कर हुंकार लड़ो रावण से
दो तुम उसको धुल चटा
धूल-धूसरित मस्तक करने को
बढ़ो प्रत्यंचा पर तीर चढ़ा

रावण धराशायी करने को
चंडी बन आगे बढ़ना होगा
साध निशाना नाभि पर
संधान अचूक करना होगा

इस बार दशहरे पर तुमको
प्रकृति का नियम बदलना होगा
राम के हाथों मुक्ति ना पाकर
रावण को दुर्गा द्वारा मरना होगा

क्यों ???

क्यों दिल उसके इंतज़ार में सदा रहता है
मिलता है रोज़ मगर दिल तनहा रहता है

पास है जो उसे दुनिया बुरा ही कहती है
देखा नहीं जिसे उसने उसे ख़ुदा कहती है

नफरत अपनों से अपनों को छुड़ा देती है
फासला दिलों में यह कितना बढ़ा देती है

बस चंद मासूम से शब्दों का लहू है 'निर्जन'
दुनिया जिसे मेरे ज़ख्मों की दवा कहती है

शुक्रवार, अक्तूबर 11, 2013

वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे



वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
इसके फ़रेब की आंधी में उजड़ जाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

झूठ और धोखे की फितरत का ये बाशिंदा है
ये तो बस जनता है हर हाल में भी जिंदा है
काम क्यों कर दे वो कल जिस पर शर्मिंदा हो
तुम जो शर्मिंदा हुए देश को भी झुकाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

क्यों कोई चोर अब देश का मेहमान रहे
घूस खाना है इमां इसका ये बदनाम बड़े
राजनीति में ये उम्रभर तो बेईमान रहे
सर पे बैठाओगे इसको तो पछताओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

एक ये क्या अभी बैठे हैं लुटेरे कितने
अभी गूंजेंगे गुनाहों के फ़साने कितने
पार्टियाँ तुमको सुनाएंगी तराने कितने
क्यों समझते हो बदलाव ये कल लायेंगे

वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
इसके फ़रेब की आंधी में उजड़ जाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे 

शनिवार, अक्तूबर 05, 2013

कुछ शब्द



















कुछ शब्द
अटपटे से
चटपटे से
खट्टी अंबी से
चटकीले नींबू से
काट पीट कर
बीन बटोर कर
धो धा कर
साफ़ कर के
धुप लगा कर
हवा में सुखा कर
मसालों में मिलकर
तेल में भिगोकर
मर्तबान में भरकर
ताख पर रख दिए हैं
जब पक जायेंगे
फिर निकालूँगा
शब्दों का नया अचार
सबको चखाऊंगा
चटखारे दिलवाऊंगा
क्योंकि 'निर्जन' अनुसार
शब्दों के अचार का भी
अपना ही मज़ा होता है
वैसे भी अचार तो
हर मौसम में स्वाद देता है

गुरुवार, अक्तूबर 03, 2013

भरोसा

















भरोसा क्या है ?
एक पल
वह मन्दता भरा क्षण
जिसमें कोई अपने सभी कवच
उतार फेंकता है
अपनी सभी अरक्षितता को
किसी के समक्ष खोलता है
पर ऐसा कोई क्यों चाहता है ?
ऐसा मैं क्यों चाहता हूँ ?

क्या यह संभव है
बारम्बार प्रहार के बाद
भरोसा बनाये रखना
दिल में, दिमाग में और पीठ पीछे
उन से जिन्हें बेहद चाहा
पर ऐसा कोई क्यों चाहेगा ?
ऐसा मैं क्यों चाहता हूँ ?

क्या ऐसा संभव है
इस पृथ्वी पर कोई ऐसा एक
प्राणी हो जिस पर
जो भरोसे के काबिल हो
जो जीवन भर दूसरों की भांति
मेरे भरोसे का क़त्ल न करे
पर ऐसा कोई क्यों चाहेगा ?
ऐसा 'निर्जन' क्यों चाहता है ?

शुक्रवार, सितंबर 20, 2013

यारी में ज़रा संभलना













आज के दिन जीवन में एक बार फिर से कुछ ऐसे कठिन मोड़ आये कुछ ऐसे अनुभव हुए जहाँ दिल, एहसास, जज़्बात और अपनेपन की परख ज़िन्दगी की कसौटी पर दम तोड़ती नज़र आई | एक ही क्षण में प्यार, मित्रता, मान और सम्मान जैसे पुकारे जाने वाले और दम भरने वाले शब्द और लोग जीवन के तराजू पर खुद को तौलते दिखाई देने लगे | एक ही रात में ऐसा हुआ कि अपने जीवन से दो ऐसे लोग जिन्हें सही मायने में अपना माना था, वह अपने ही निजी अनुभवों, दृष्टिकोण और अपनी अनोखी सोच के कारण साथ छोड़ कर जाने की बातें करने लगे | शायद एक तो चला ही गया | दूसरा भी तयारी में बैठा है |

हम भी चुप चाप नज़ारा देखे जा रहे हैं | कारण कुछ भी रहा हो अब अपना ह्रदय भी संवेदनहीन, पत्थर दिल और निर्मोही बन गया है | जिन्हें अपना माना उनके अचानक रास्ता बदल लेने से शायद कभी ये दुखता भी था परन्तु अब सिर्फ जाने वालों के लिए दुआएं देकर, मुस्करा कर चुप हो जाया करता है | ज़िन्दगी में एक तो आपके आंसुओं की और दूसरा दुख की कोई कीमत नहीं है | दूसरों की नज़र में ये हमेशा व्यर्थ ही होते हैं | आप इन्हें जितना अन्दर और अपने पास रखेंगे सुखी रहेंगे | क्योंकि इस पूँजी का मोल या तो आप स्वयं लगा सकते हैं जिन्होंने इसे जिया है और सामना किया है या सिर्फ वही व्यक्ति लगा सकता है जो सच में आपका अपना हो और आपको सच में समझता हो | सिर्फ कहने भर से और बड़े बड़े दावे करने से कोई दोस्त या अपना नहीं बना करता है | बीच राह साथ छोड़ने वालों से कैसा गिला शिकवा जिन्हें इस एहसास की कीमत का मोल ही न हो | जीवन ने यही सिखाया है कि

"जिसे जाना है उसे सदैव आज़ाद छोड़ दो, यदि वह सच में आपका है और आपकी किस्मत में है तो एक दिन वापस ज़रूर आएगा और यदि नहीं आता तो समझ लेना वह आपका कभी था ही नहीं"

ज़िन्दगी सभी को समय समय पर नया सबक सिखाती है | मैंने भी जीवन की पाठशाला में बहुत कुछ सीखा है | इसलिए बस जाने वालों से सिर्फ इतना कहूँगा कि यदि कोई गलती हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ | कहा सुना माफ़ करना | बजरंगबली आपके ऊपर अपना आशीर्वाद बनाये रखें | आप जीवन में उन्नति करें और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ें | जीवन में ज़्यादातर सबको, सब कुछ नहीं मिला करता है | तो शायद मेरी ज़िन्दगी में भी दोस्तों और अपनों का साथ शायद नहीं लिखा है | इसलिए भगवान् जो दे रहे हैं और आगे जो भी देंगे उसी में खुश रहता हूँ | कहीं पढ़ा था मैंने एक बार, "चुप्पी सबसे अच्छी दोस्त है, कभी धोखा नहीं देती" इसलिए आज भी मौन हूँ |  पहले जब दिल दुखता था तब आंसू बनकर पिघलता था पर अब तो मुस्कान बनकर चमकता है | तो साब बस मन की व्यथा को अपने शब्दों में ढाल कर मंद मंद मुस्करा रहा हूँ और कुछ बचे कुचे आंसू भी खुद से छिपा रहा हूँ |

ऐ दिल धीरे चलना
दोस्ती में भरोसा
सोच के करना
जी बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं
इस यारी में
यार तू धीरे चलना
यारी में ज़रा
संभलना

क्यों हो रोते
अश्क़ छिपाए
ऐसे जीते हो
क्यों सब लुटाये
ये तो उनकी
नज़र का भरम है
लगते हो जो
तुम ही पराये
जी बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं
इस यारी में
यार तू धीरे चलना
यारी में ज़रा
संभलना

दोस्तों में
क्यों दिल लगाये
काहे मुफ्त में
दिल को दुखाये
नाम यारी जो
नाज़ुक बहुत है
आके दिल पे
फूटेंगे छाले
जी बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं
इस यारी में
यार तू धीरे चलना
यारी में ज़रा
संभलना

हो गई है जो
अपनों से अनबन
चुप देखा करे
बैठा 'निर्जन'
जीवन की ये
बातें अजब हैं
हो अकेला तो भी
क्या है उलझन
जी बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं
इस यारी में
यार तू धीरे चलना
यारी में ज़रा
संभलना

बस अब शायद इससे ज्यादा और कुछ नहीं लिखा जायेगा |

करो जो दोस्ती तो धोखा खाने का दम भी रखना
अपनों से मिलते हैं आंसू यह तोहफ़ा सर रखना
दिल से रोना कुछ बे-मुरव्वतों को याद करके
'निर्जन' ऐसा मौका ज़िन्दगी में साथ कम रखना

शनिवार, सितंबर 14, 2013

हिंदी को प्रणाम















आता है साल में एक बार
कहते जिसे 'हिंदी दिवस'
क्यों इसे मनाने के लिए
हम सभी होते हैं विवश

हिन्द की बदकिस्मती
हिंदी यहाँ लाचार है
पाती कोई दूजी ज़बां
यहाँ प्यार बेशुमार है

काश! हिंदी भी यहाँ
बिंदी बनकर चमकती
सूर्य की भाँती दमकती
अँधेरे में ना सिसकती

आओ मिलकर लें अहद
हिंदी को आगे लायेंगे
अपनी मातृभाषा को हम
माता समझ अपनाएंगे

शर्म न आये किसी को
अब हिंदी के उपयोग में
मान अब सब मिल करें
हिंदी के सदुपयोग में

हाथ जोड़े करता वंदन
'निर्जन' हिंदी भाषा को
अर्जी है हम आगे बढ़ाएं
राष्ट्रभाषा, मातृभाषा को 

गुरुवार, सितंबर 12, 2013

बाबाजी की बूटी














बुराई को अच्छाई से
अकडू को सुताई से
महंगाई को सस्ताई से
क्लीन कर दीजिये

भूख को तृप्ति में
आशा को मुक्ति में
भोग को युक्ति में
तल्लीन कर दीजिये

उंचाई को गहराई में
अँधेरे को परछाई में
कसाव को ढिलाई में
लीन कर दीजिये

दिल की रैम से
टेंशन के स्पैम को
री-साईकल बिन में
विलीन कर दीजिये

किस्मत के मारों के
आत्मा के गार्डन को
पॉजिटिव विचारों से
ग्रीन कर दीजिये

अमीरी और गरीबी के
भेद को मिटाइये
सारे समाज को
मिस्टर बीन बनाइये

प्रसारण 'निर्जन' का
सीधा दिखलाइये
रूकावट कहीं भी हो
पर खेद ना बतलाइये

समस्या की
मिडिल फिंगर पर
सोलियुशन की रिंग डाल
मीन बन जाइए

ट्रॉमा को भगाईये
हाथ अपना बढ़ाईये
बाबाजी की बूटी का
एंजोयमेंट आज़माइए

ग़म भूल जाइए
लाइफ को सजाइए
सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए

सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए...

रविवार, सितंबर 08, 2013

दिल मेरा तुझ पर मरता है













तेरी मुस्कराहट में मेरा अक्स झलकेगा
नज़रें झुकेंगी तेरी तब अश्क छलकेगा
पलट के देखेगी सरे राह मुझको पायेगी
तू जो छोड़ेगी मेरा साथ बहुत पछताएगी

हर एक आहट एहसास मेरा करवाएगी
मेरी साँसों की हवा दिल तेरा छु जाएगी
बहते दरिया रोज़ किस्सा मेरा सुनायेंगे
तू ना चाहेगी तब भी मेरी याद आएगी

आज ग़म है तो कल ख़ुशी भी आएगी
रोते रोते ज़िन्दगी कभी तो मुस्कराएगी
आज हालात हैं तू भीड़ में भी है तनहा
कहता है दिल जुदा तू भी जी न पायेगी

तेरे दिल में रहूँगा मैं बस यादें बनकर
तेरे होटों पर रहूँगा मैं मुस्कान बनकर
तू रोकेगी फिर भी मैं आ ही जाऊंगा
तेरे सपनो को आसमान बन सजाऊंगा

सियाह रातों में मैं चाँद बन कर देखूंगा
अपनी चांदनी को तेरे दिल तक भेजूंगा
मोहब्बत 'निर्जन' सोच कर नहीं करता
दिल मेरा यूँ ही तो तुझ पर नहीं मरता 

शुक्रवार, सितंबर 06, 2013

यादें













वो यादें गुज़रे लम्हों की
जिस पल यारों साथ रहे
वो अनजानी दुनिया थी
खुशियों से आबाद रहे
वो उम्र गुज़ारी थी हमने
जब रोते रोते हँसते थे
बस कहते थे न सुनते थे
हम तुम जब मिलते थे
वो अपने चेहरे खिलते थे
पुर्लुफ्त वो आलम होता था
जब रातों को बातें करते थे
मैं सोच के कितना हँसता हूँ
उन बातों पर बचपन की
बस यही पुरानी याद बनी
'निर्जन' बातें उन लम्हों की
लड़ लड़ कर हम साथ रहे
ये यादें है उस अपनेपन की
वो यादें गुज़रे लम्हों की ....

एक दिन देश के नाम - स्वराज मार्ग (स्वयं सेवी संस्था) द्वारा समर्पित एक दिवस देश और देश वासियों के नाम


























































स्वराज मार्ग की छटा नई
एक शाम देश के नाम रही
हर दिल से धारा बही वहीं
जन जन हैं कहता खूब रही

बस जन सेवा की इच्छा से
हर एक व्यक्ति जुड़ा कहीं
बूँद बूँद से बन कर साग़र
नव चेतना सब में लीन हुई

पुरषार्थ से है किया सृजन
जन मानस हो रहे मगन
निशुल्क चिकित्सा सेवा से
मानव ह्रदय में लगी लगन

मित्र वकील भी खूब आये
जनता को अपनी ये भाये
काले सफ़ेद ने नाम किया
लोगों से मिल काम किया

संध्या बेला फिर घिर आई
नव क्रांति स्वराज की लाई
नव अंकुरित शिशुओं ने भी
अपनी प्रतिभा जब दिखलाई

ज्यों ही संध्या विस्तार हुआ
कवि कटार को धार दिया
आगाज़ कवि सम्मेल्लन का
फिर शंखनाद के साथ हुआ

कविता की 'निर्जन' बात करे
रसीले हास्य से शुरुवात करें
वीर, देश प्रेम, श्रृंगार, व्यंग
सभी रसों का रसपान किया

समापन समय जब आया
खुशियाँ और ग़म था लाया
विदा सब को सप्रेम किया
दिल में चित्रों को फ्रेम किया

जन स्वराज फिर लायेंगे
हम लौट के वापस आयेंगे
स्वराज मार्ग पर चलकर
हम देश भविष्य बनायेंगे 

सोमवार, सितंबर 02, 2013

मेरी तौबा

















गल्बा-ए-इश्क़ के गुल्ज़ारों में
खिला गुलाबी रुखस़ार तौबा

दमकता हुस्न बेहिसाब तेरा
रात में खिला महताब तौबा

खिज़ा रसीदा सहराओं में
हसरतें दिल-कुशा तौबा

आब-ए-जबीं पे परिसा जुल्फें
दमकते चेहरे पे नक़ाब तौबा

उससे मुलाक़ात यकीनन बाक़ी
है अधूरा ख्वाब 'निर्जन' तौबा

भरे हैं आब-ए-चश्म से सागर
आतिश आब-ए-तल्ख़ सी तौबा

इश्तियाक़ हसरत-ए-दीदार ऐसी
अफ़साने लिख जाएँ तो तौबा

लिखो इख्लास अब तुम मेरा
मैं कहता हूँ मेरी तौबा ....

गल्बा-ए-इश्क़ - प्यार का जूनून
गुलज़ार - उपवन
रुखस़ार - ग़ाल
खिज़ा - पतझड़
रसीदा - मिला है
सहरा - रेगिस्तान
दिल-कुशा - मनोहर
जबीं- माथा
आब-ए-चश्म-आंसू
आब-ए-तल्ख़ - शराब
आतिश-आग
इश्तियाक़-चाह, इच्छा, लालसा
हसरत-ए-दीदार - ललक , आरज़ू
अफ़साने - कहानियां, किस्से
इख्लास= प्यार, प्रेम

शुक्रवार, अगस्त 30, 2013

दिल जला के उसको याद किया



















चाहत से भरे उस सागर में
बहती लहरों की गागर में  
अपने दिल को आज़ाद किया
दिल जला के उसको याद किया

उन मतवाली रातों में
उसकी नशीली बातों में
चुप रहकर खुद को बर्बाद किया
दिल जला के उसको याद किया

एक नज़र जब उसको देखा
दिल जिगर चाहत में फेंका
जा मस्जिद में फ़रियाद किया
दिल जला के उसको याद किया

इस जीवन के बही खातों में
उन बीते ख्वाबों और रातों में
जाग खुद अपने से बात किया
दिल जला के उसको याद किया

उन कलियों के खिलने से पहले
उन गलियों में मिलने से पहले
आशिक दिल ही दिल आबाद हुआ
दिल जला के उसको याद किया

दिल जला के उसको याद किया 

थी वो





















कभी लगता है ज़िन्दगी थी वो
दिल ये मेरा कहे अजनबी थी वो

वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे

सोचा शरीक-ए-ग़म थी वो
कभी मुझसे मिलके हम थी वो

बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे

दिल से बेज़ार बेज़ुबान थी वो
आरज़ू तार तार बदगुमान थी वो

घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे

दिल से जुड़े लोगों में थी वो
मेरी आँखों में ज़िन्दगी थी वो

शुक्रवार, अगस्त 23, 2013

राखी का बंधन

राखी के पवन पर्व पर अपनी प्यारी बहन के लिए लिखी मेरी कविता....













राखी है बंधन जीत का
भाई बहन कि प्रीत का

रिश्तों का एहसास है 
बहन-भाई कि आस है 

बंधन बचपन के मीत का
पक्के धागे कि रीत का

पर्व राखी का पावन है
जैसे शीतल सावन है

भाई-बहन कि लाज का 
अनकहे जज़्बात का

आँखों का विश्वास है
यह अपनों कि बात है

दिलों कि धड़कन का
साथ में खेले बचपन का

राखी का यह त्यौहार है
इसमें प्यार ही प्यार है

मंगलवार, अगस्त 20, 2013

बी रिलैक्स


एक कविता अपने कुछ विशेष दोस्तों के नाम । 


















दफ्तर अपना खोल के 
रिलैक्स हुए सब जाएँ 
रख कंपनी दा नाम ये 
बैठ स्वयं इतरायें

कुर्सी बड़ी बस एक है
जो दांव लगे सो बैठ
बाक़ी जो रह जाएँ है
हो जाएँ साइड में सैट

बन्दे अपने मुस्तैद हैं 
बकरचंद सरनाम 
दबा कर मीटिंग करें 
कौनो नहीं और काम

काटम काटी पर लगे 
एक दूजे की आप 
काटें आपस में पेंच ये 
फिर करते मेल मिलाप 

मोटा मोटी खूब कहें 
रिजल्ट मिले न कोये
एग्ज़ीक्यूटर फ्रसट्रेट है 
प्लानर बैठा रोये 

पढ़ो पढ़ो का राग है
प्रवक्ता जी समझाएं 
दो मिनट ये पाएं जो 
बात अपनी बतलाएं

पंडत जी बदनाम है 
खाने पर जाते टूट 
भैयन तेरी मौज है 
जो लूट सके सो लूट

हम इमोशनल बालक हैं
करें ईमानदारी से काम
मेहनत कर के पाएंगे
हम अपना ईनाम

मसाला मिर्ची आचार हैं
तैड़ फैड़ का काम
काज सबरे निपटात हैं
न देखें फिर अंजाम

अपने भी शामिल हैं
इन लीग ऑफ़ जेंटलमैन
मुस्करा अवलोकन करें
बैठ उते दिन रैन

कुल जमा ‘निर्जन’ कहे
अब तक सब है ठीक 
कभी कभी मायूस हो 
हम भी जाते झीक 

सच्चे सब इंसान यहाँ 
रखते हैं सब ईमान
ना किसी से बैर भाव 
ऐसे अपने मित्र महान