रविवार, जुलाई 28, 2013

दर्द और मैं

















दिल के दर्द क्यों दिखलाऊं
दिल की बातें क्यों बतलाऊं
दिल को अपने मैं समझाऊं
जीवन में बस चलता जाऊं
----------------------------------------------------------------
दर्द मेरा बस मेरा ही है
दर्द तेरा बस मेरा भी है
दर्द से बनते रिश्तों में
एहसास बड़ा गहरा भी है
----------------------------------------------------------------
खुशियाँ मेरी जब दी हैं
दुआएं दिल से तब ली हैं
ज़िन्दगी मेरी सब की है
हंसी लबों पर अब भी हैं
----------------------------------------------------------------
रात काली थी चली गई
सुबह सुहानी दिखी नही
किस्मत का ये देखो ज़ोर
सन्नाटे में सुनता हूँ शोर
----------------------------------------------------------------
बातें उनसे होती हैं कई
दिल फिर भी मिलते नहीं
बातें बस बातें ही रहती हैं
ख़ामोशी ही सच कहती हैं
----------------------------------------------------------------
परदे के पीछे वो चुप है
परदे के आगे मैं चुप हूँ
आखीर क्यों वो चुप है
आखीर क्यों मैं चुप हूँ
----------------------------------------------------------------
धोखा कोई देता नही
धोखा कोई खाता नही
सब किस्मत का खेला है
दर्द ही बस अकेला है
----------------------------------------------------------------

सोमवार, जुलाई 22, 2013

स्वराज की मशाल





















मशाल लिए हाथ में 
हर एक खड़ा है 
ये आम आदमी है 
न छोटा है न बड़ा है 
हल्का ही सही 
तमाचा तो लगा है 
चमचों की मुहीम पर 
एक सांचा तो कसा है 
मान लो गर गलती 
तो छोड़ देंगे हम 
जो करेंगे चापलूसी 
उन्हें तोड़ देंगे हम 
'स्वराज' है 
हक हमारा 
इसे ला कर रहेंगे 
अपने विचारों को
अब खुलकर कहेंगे
दिलों में अपने 
जोश अब 
कम होने न पाए 
आओ सब मिलकर 
अब एक हो जाएँ 
आवाज़ सबके 
दिल से 'निर्जन' 
उठती है यही
स्वराज है 
स्वराज है 
हाँ स्वराज है यही

गुरुवार, जुलाई 18, 2013

यहाँ दिल अब पत्थर हैं




















व्यक्ति विशेष यहाँ ऐसे भी हैं
जिनमें शेष अब प्राण नहीं
विचारों से निष्प्राण हैं जो
उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं

कुछ लोग यहाँ ऐसे भी है
जो दोस्त बनकर डसते हैं
मुंह देखे मीठी बातें कर
पीठ पीछे से हँसते हैं

बातें करते हैं बड़ी बड़ी
कलम कागज़ पर घिसते हैं
पर शब्दों में वज़न नहीं
कोरी बातें ही लिखते हैं

कलयुग है यह वाजिब है
भरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं

तू निरा मलंग है 'निर्जन'
ना जाने नफा नुक्सान है क्या
बस दिल से दोस्त बनाकर तू
क्यों खाता है धोखे ये बता?

ख़ामोशी है वीरानों सी
दिल में मगर विश्वास यही
एक दिन तो दोस्त मिलेगा वो
दिल जिसका बेजान नहीं 

रविवार, जुलाई 14, 2013

ऐसे हैं हम





















आदत में हम अपनी
स्वराज ले भिड़ते हैं
ऐसे स्वाराजी है हम

खून में हम अपने
गर्मी ले बढ़ते हैं
ऐसे जोशीले हैं हम

बदल सके जो हमको
ज़माना नहीं बना वो
ऐसे हठीले हैं हम

आसमानों में परिंदों
से आजाद उड़ते हैं
फौलादी हवाओं को
ले साथ फिरते हैं
गहराई सागरों की
मापते फिरते हैं
दोस्त हो या दुश्मन
गर्मजोशी से मिलते हैं

आँखों में हम अपनी
सपने ले जीते हैं
ऐसे मतवाले हैं हम

जिगर में हम अपने
आग ले जलते हैं
ऐसे लड़ाकू हैं हम

दिल में 'निर्जन' अपने
उम्मीद ले चलते हैं
ऐसे आशावादी हैं हम

गुरुवार, जुलाई 11, 2013

हंसी और ग़म



















होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
मुस्कान भी है, आँखे नम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
पास तो है, पर क्या दूरी कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
क्या व्हिस्की और क्या रम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कुछ चलता सा, कुछ कुछ थम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

सोमवार, जुलाई 08, 2013

'स्वराज' की हुंकार















अंतर्मन चीत्कार कर
बहिर्मन प्रतिकार कर
प्रघोष महाघोष कर
निनाद महानाद कर
नाद कर नाद कर
'स्वराज' का प्रणाद कर

साम, दाम, दण्ड, भेद
ह्रदय में रह न जाये खेद
भुलाकर समस्त मतभेद
सीना दुश्मनों का छेद
प्रहार कर प्रहार कर
'स्वराज' की दहाड़ कर

मुल्क अब भी गुलाम है
चाटुकारी आम है
काट चमचो का सर
धरती को स्वाधीन कर
उद्घोष कर उद्घोष कर
'स्वराज' की हुंकार भर

कदम रुकेंगे नहीं
कदम डिगेंगे नहीं
अटल रहे अडिग रहे
सर उठा कर कहे
बढ़ चले बढ़ चले
'स्वराज' पथ पर चढ़े

रणफेरी की ललकार है
मच रहा हाहाकार है
रावणों की फ़ौज है
भक्षकों की मौज है
मार कर मार कर
'स्वराज' का वार कर

शनिवार, जुलाई 06, 2013

ख़ुशी और सुख

















ख़ुशी और सुख के
अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको 
वहां ठिकाने 
जहाँ तेरा ही 
बस डेरा हो 
जहाँ आनंद ने 
घेरा हो 
तेरे उस 
अथाह समुन्द्र में
क्या मैं 
डूब ना जाऊंगा 
उबरने की 
कोई जगह ना हो 
बस मुस्कानों में 
डूबता जाऊंगा  
ले चल मुझे 
एक अनोखे जहाँ में 
कपट, लोभ, नफरत से दूर 
जहाँ तू भी अकेला है 
यहाँ मैं भी अकेला हूँ 
'निर्जन' मीत तू बन ऐसे 
जैसे सागर में फेना है 
ओ मेरे सुख
बस इस दिल में 
एक तेरा ही बसेरा है 
जीवन दुःख से मुक्त हो 
आत्मा बंधन से रिक्त हो 
एक ऐसे खुशहाल संसार में 
जहाँ सिर्फ खुशियों का डेरा हो 
ओ सुख के अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको वहां ठिकाने

शुक्रवार, जुलाई 05, 2013

एक मुलाकत 'सच्चे बादशाह' के साथ

















अभी हाल ही में अमृतसर जाने का अवसर प्राप्त हुआ | अगर दुसरे शब्दों में बयां करूँ तो अचानक ही बैठे बैठे 'दरबार साहब- हरमिंदर साहिब' से बुलावा आ गया | तो बस उठे और चल पड़े कदम 'वाहे गुरु' को सीस नावाने | 'दरबार साहब' के समक्ष अपने को जब खड़ा पाया तो एह्साह हुआ के जीवन में सब कुछ कितना छोटा है, बेमानी है और मिथ्या है | कुछ एक ऐसी परिस्थितियां जिनमे इंसान अपने को कमज़ोर महसूस करने लगता है, हालातों का गुलाम होने लगता है और उस पर एक नकारात्मक सोच काबिज़ होने लगती है ये सब 'हुज़ूर साहब' के सामने कुछ भी नहीं हैं | उनके दर्शन करते ही एक नई स्फूर्ति, नया जोश, नई सोच, नया विश्वास, नई उमंग, नए विचार और जीवन संतुलन के प्रति नया दार्शनिक नजरिया उनके आशीर्वाद से आपके समक्ष दिव्यज्योति बन कर आपके आसपास के वातावरण को प्रकाशित करता है और जीवन जीने की नई शक्ति प्रदान करता है | 'सच्चे बादशाह' के दरबार के कोई कभी खाली हाथ नहीं जाता | मैंने भी अपने जीवन के कुछ क्षण उनके साथ वार्तालाप करने में और 'श्री गुरु ग्रन्थ साहिब' के दर्शन करने में व्यतीत किये और उनका जो जवाब मुझे मिला वो मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | मुझे लगा उन्होंने मेरे सवालों के जवाब कुछ इस प्रकार से दिए : 

पुत्र 
अपनी भटकन 
मुझे 
क़र्ज़ रूप में 
ही दे दो 
अपने 
मन मस्तिष्क 
का वो शून्य 
जिसमें तुम खो कर 
अपने आप को 
अस्तित्वहीन सा 
पाते हो 
जीवन की एक
गौरव भरी 
सजीव शक्ति 
उस क़र्ज़ के बदले 
मैं तुम्हे देता हूँ 
जिस को 
स्वीकारने पर 
तुम स्वयं 
एक नई दिशा 
बनाओगे 
चेतना स्फूर्ति
कर्म भरा जीवन 
तुम पाओगे 
एक निश्चित धरातल 
जिसमें भटकन का 
कोई स्थान नहीं होगा 
सिर्फ
अथाह कर्म का सागर 
यश और 
समृद्धि का एक रत्न 
उज्जवल आकाश 
निर्मल धारा
सूर्या का तेज 
चन्द्र की शीतलता 
तब तुम्हारा मेरा ऋण
पूरा होगा 
एक कुशल 
व्यापारी की भांति 
हम एक दुसरे के 
सच्चे मित्र होंगे

बस इतना सा कहा उन्होंने मुझसे और मैं माथा टेक कर उनका शुक्रिया अदा कर मुस्कराता हुआ उनसे मिलकर प्रसादी और लंगर  ग्रहण कर वापस चला आया | 

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फ़तेह | जो बोले सो निहाल 'सत श्री आकाल' | 

जैसे गुरु साहब ने मेरे ऊपर मेहर रखी वैसे ही सभी पर कृपा करते हैं | 

शनिवार, जून 29, 2013

यह भारत है देश मेरा



यह भारत है देश मेरा
इस देश के लोग निराले हैं
कुछ मरने मिटने वाले हैं
कुछ करते घोटाले हैं

कुछ देश के भक्त यहाँ
कुछ के ठाठ निराले हैं
कुछ नेता के चमचे हैं
कुछ बाबर के साले हैं

जिहादी गुंडे कितने
देखो दाढ़ी वाले हैं
गंगा के घाट पे बैठे हैं
जितने कंठी वाले हैं

झुकते हैं कुछ काबे पर
कुछ मंदिर में जाते हैं
इंसानियत क्या होती है
ये इसका पता न पाते हैं

मैं करता बात 'स्वराज' की हूँ
इन सबमें सबसे काला हूँ
मैं 'निर्जन' भारत माता की
पावन मिटटी का पाला हूँ

यह भारत है देश मेरा...

'स्वराज' लिखूंगा












कलम उठा दीवारों पर, 'स्वराज' लिखूंगा
अपने दिल से उठती हर, आवाज़ लिखूंगा

मशाल उठा हाथों में, धर्म का ज्ञान कहूँगा
अपने शब्दों से क्रांति का, मान कहूँगा

बातें न कर के, अब बस मैं कर्म करूँगा
राष्ट्र-हित में सही है जो, वह धर्म करूँगा

गीता का पाठ, सिखाता है देश पर मिटना
भिड़ना दुश्मन से, और सर काट कर लड़ना  
 
अब न बैठो ठूंठ, समय मत और गंवाओ
युद्ध करो जवानों, जंग का बिगुल बजाओ

गर्म खून में जोश है कितना, कितनी है रवानी
'निर्जन' हो जा तयार, भारत की है लाज बचानी

नमाज़ में वो थी















नमाज़ में वो थी, पर ऐसा लगा कि
दुआ हमारी, कबूल हो गई
सजदे में वो थी, पर ऐसा लगा कि
खुदा हमारी, वो रसूल हो गई
आयतों में वो थी, पर ऐसा लगा कि
ज़िन्दगी हमारी, नूर हो गई
तज्बी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
मुख़्लिस हमारी, हबीब हो गई
मदीने में वो थी, पर ऐसा लगा कि
तसव्वुफ़ हमारी, मादूम हो गई
ज़िन्दगी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
'निर्जन' ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से
महरूम हो गई, महरूम हो गई

मुख़्लिस - दिल की साफ
हबीब - दोस्त
तसव्वुफ़ - भक्ति
मादूम - धुंदली हो गई 

गुरुवार, जून 27, 2013

स्वराज या गुंडाराज – मर्ज़ी है आपकी क्योंकि देश है आपका

अपनी बात को मैं इन दो पंक्तियों के माध्यम से आरम्भ कर रहा हूँ 

कुछ ज़बानों पर हैं ताले, कुछ तलवों में हैं छाले
पर कहते हैं कहने वाले, के स्वराज चल रहा है 
किस हाल से हमारा यह समाज गुज़र रहा है ? 
'सब चलता है' के नारे पर स्वराज जल रहा है

स्वराज की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज भारत की पीड़ित और त्रस्त आम जनता देश में बदलाव की आस लगाये मुंह ताकती बैठी है | हिंसा, गरीबी, भुखमरी, शोषण, महंगाई, बेरोज़गारी, उंच नीच, नक्सलवाद, आर्थिक विषमता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं की आग में जनता फतिंगों की तरह भुन रही है और हमारे लोकशाही पहलवान उन्हें दिन-बा-दिन और ज्यादा गर्म करते जा रहे हैं | 

आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और जनक माननीय श्री अरविन्द कजरीवाल द्वारा दिखाई गई स्वराज की तस्वीर ने लोगों के दिलों में एक क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित की थी | उनके अनुसार नए स्वराजगर्भी भारत में भ्रष्टाचारियों की खिलाफ जेल का प्रावधान होगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल होगा, चोर बाजारियों और बेईमानों की संपत्ति ज़ब्त होगी, रिश्वतखोरों को नौकरियों से बर्ख़ास्त किया जायेगा, कोर्ट में केस आने पर फटाफट सुनवाई होगी और जल्द से जल्द फैसलें दिए जायेंगे, पुलिसिया गुंडाराज पर अंकुश कसा जायेगा, व्यापारियों को एक सम्मान जनक स्थान दिया जायेगा, महिलाओं की रक्षा और सुरक्षा सर्वोपरि होगी और भी न जाने ऐसी कितनी ही बातें जो जनता का दिल बहलाने को ग़ालिब-ए-ख्याल बन खुशियों का एक सब्ज़बाग़ बनाने में सफल रहीं | आम आदमी के भीतर एक निश्चय, विश्वास और आत्मसम्मान ने जन्म लिया और लोग स्वराज के इस सपने से जुड़ते चले गए |

उधर दूसरी ओर स्वराज के अंतर्गत पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज में कहा गया है के - 

- देश की राजनीति को बदला जायेगा आम जनता को अपने साथ जोड़ा जायेगा 
- भ्रष्टाचार को दूर करने का नियंत्रण सीधा जनता के हाथ में होगा 
- सामाजिक भेद भाव, छुआ छूत और अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा 
- धर्म के नाम पर समाज नहीं बंटने दिया जायेगा 
- आर्थिक और सामाजिक नीतियों में बदलाव होगा 
- हर एक विषय में जनता की भागीदारी को महत्त्व दिया जायेगा 
- बेहतरीन स्वस्थ्य एवं शिक्षा योजनायें बनाई जायेंगी 
- जनता को ख़ारिज करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिजेक्ट )
- जनता को मन्सूख करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिकॉल )
- जनता को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार होगा ( राईट तो स्पीक )

आम आदमी पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज का सबसे अभिन्न कदम है प्रत्याशीयों की चुनावी प्रक्रिया जिसमें कहा गया है के चुनाव में खड़ा होने वाला उम्मीदवार - आम जनता में से ( फ्रॉम दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के द्वारा ( बाय दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के साथ (विथ दा कॉमन पीपल) की पद्दति के द्वारा चयनित होगा | यहीं पर पार्टी और आम आदमी की जीत होती है | 

परन्तु दुर्भाग्यवश पिछले कुछ समय से पार्टी की कुछ फैसलों और कार्यप्रणाली को लेकर और स्वराज के मुखौटे को लेकर अनेक सवाल खड़े होते जा रहे हैं | पार्टी की कारगुजारियों और हुक्मराना रवैये को लेकर आम आदमी के दिल में पार्टी और स्वराज के प्रति सवालिया निशान लगते जा रहे हैं | जैसे - 

- क्या 'आप' भी राजनीति और राजनेताओं का शिकार हो रही है ?
- क्या 'आप' का संभावित और तथाकथित स्वराजनामा अपने लक्ष्य से भटक रहा है ?
- क्या 'आप' अपनी दूरदर्शिता का स्वयं क़त्ल करने में जुट गई है ?
- क्या 'आप' को साख चाहियें या चुनावी राख चाहियें ?
- क्या 'आप' बिकाऊ उम्मीदवारों को अपने स्तम्भ बनाकर खड़ा करना चाहती है ?
- क्या 'आप' को जीताऊ, नामी, और सरनामी उम्मीदवारों की ज़रुरत है ?
- क्या 'आप' की नीतियां और आदर्श बेमानी हो रहे हैं ?
- क्या 'आप' में आम जनता का महत्त्व कम हो रहा है ?
- आज के परिवेश में 'आप' में आम आदमी के लिए स्थान कहाँ है ? 
- क्या 'आप' आज भी आम आदमी की आवाज़ है ?
- क्या 'आप' को कुछ एक चंद लोग मिलकर चलने लगे हैं ?
- क्या 'आप' में सरगना और गुटबाज़ी हो रही है ?
- क्या 'आप' में भाई भतीजावाद जन्म ले रहा है ? 
- क्या 'आप' में कार्यकर्ताओं की अहमियत कम हो रही है ? 
- क्या 'आप' में आला कमान वाली स्तिथि बन्ने लगी है ?
- क्या 'आप' भेड़ियों और भेड़चाल के दवाब में आ रही है ?
- क्या 'आप' अपनी छवि के साथ समझौता करने पर आमादा है ?

मेरा इन सवालों को उठाने का उद्देश्य भी यही है के यह सवाल आप तक पहुंचे और आप अपने स्वीकारोक्ति / सुझाव / टिप्पणियां हमारे इस अभियान तक पहुचाएं जिससे हम स्वराज की एक साकारात्मक छवि रखने में कायम रह सकें | इस लेख के ज़रिये मैं सभी से पुरजोर अनुरोध करता हूँ के ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे इस आन्दोलन से जुड़ें और अपना वक्तव्य हम तक पहुंचाएं और आज एक आम नागरिक के नज़रिए से हमें बतलाएं के आपको कुछ रसूकदारों की मनमानी का राज चाहियें, आलाकमान और उनके पप्पूओं की सांठ-गाँठ चाहियें, गुंडाराज चाहियें या फिर स्वराज चाहियें? चुनना है आपको क्योंकि यह ज़िम्मेदारी है आम आदमी की क्योंकि देश है आपका और भविष्य भी है आपका | इसे बिगड़ना और बनाना दोनों जनता के हाथों में है | इसलिए खुलकर सामने आयें और अपने विचार प्रकट करें |

आखिर में अपनी बात को विराम देने के लिए मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा के 

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है 
देखना है जोर कितना, बाज़ू-ए-क़तील में है 
वादा-ए-स्वराज अब, रह न जाए बातों में 
खून तो खौला हुआ, अब सभी के दिल में है 
वक़्त आने दो बता देंगे, तुम्हे ए अहमकों 
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है

जय स्वराज | जय भारत माता | जय हिंदी