शनिवार, फ़रवरी 16, 2013

जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ

ब्लॉग मेरा भी देखकर, ऐसा स्नेह बरसाएँ 
लेखन सफल हो जायेगा, जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ
जो फोल्लोवेर मिल जाएँ, सोचता रहता है 'निर्जन'
करता इंतज़ार, कब आयेंगे श्रोतागण

लो श्रोता भी आ गए, चक्कर काटें रोज़
सूना फिर भी पेज है, बिन मीठे का भोज
बिन मीठे का भोज, बता देता है 'निर्जन'
आए तो टिपण्णी करें, जो बन जाये बंधन 

प्रेम आपका देख, लिख डालीं कविताएँ
अब आगे क्या और कहूँ, मन में हैं दुविधाएँ 
मन में हैं दुविधाएँ, लिखता रहता है 'निर्जन'
बस खुश हो जाएँ, मिले सबसे अपना मन

ब्लॉग प्रमोशन हेतु ही, फेसबुक पेज बनाए
कुछ मित्र नए हैं ऐड किये, के अनुकम्पा मिल जाए
के अनुकम्पा मिल जाए, विनती करता है 'निर्जन'
ब्लॉग पसंद जो आए, लाइक भी कीजिए रघुनन्दन

जन मानस दिल पैठ को, अग्रीगेटर जाएँ
अनगिनत अग्रीगेटर पर, ब्लॉग रजिस्टर करवाएँ
ब्लॉग रजिस्टर करवाएँ, दिखता भी है 'निर्जन'
ब्लॉग जाग्रति हेतु ही, बैज चिपकाते है त्रिभुवन

सर्च इंजन सबमिशन है, सबसे ज़रूरी काम
चलाना है ब्लॉग अगर, और कमाना है नाम
और कमाना है नाम, जुगाड़ करता है 'निर्जन'
नित नए विजेट और कोड, अपडेट करता है हर पल

गूगल सर्किल से जोड़ कर, मेसेज करने का रूल
पढ़वाकर अपनी पोस्ट को, प्रशंसा करो वसूल
प्रशंसा करो वसूल, यही तरीका है 'निर्जन'
जो न माने प्यार से, पढ़वाओ जबरन

लिखते हो गर आप भी, ना आएगा काम
पोएम, स्टोरी, आर्टिकल, सब है एक सामान
सब है एक सामान, पते की बात है 'निर्जन'
बेचना है गर मॉल, मार्केटिंग चलेगी स्पेशल

सुनकर गुरुजन वाणी को, फ़ैसला 'निर्जन' लेत
कर्म सदा तू किये जा, मत तू हिम्मत टेक
मत तू हिम्मत टेक, पायेगा तू भी सफ़लता
होगी वाहवाही, भाग जाएगी विफ़लता

शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2013

आली रे आली बसंत ऋतु आली

आली रे आली
बसंत ऋतु आली
पीली पीताम्बरी
बदली छा ली
आली रे आली...

ध्यालीं रे ध्यालीं
माँ शारदा ध्यालीं
पीत वस्त्र, धुप दीप ले
आरती कराली
आली रे आली...

मनाली रे मनाली
पंचमी मनाली
पतंगें निकली
हवा में उड़ालीं
आली रे आली...

खालीं रे खालीं
पीली मिठाइयाँ खालीं
चावल, मेवा, चीनी, केसर, लड्डू  
मिला जी भर भर बनालीं
आली रे आली...

लहलहालीं रे लहलहालीं
फसलें लहलहालीं
सरसों और गेहूं
खेतों में सजालीं
आली रे आली...

जगालीं रे जगालीं
नई उमंगें जगालीं
साथी संग बैठ
सब उम्मीदें सजालीं
आली रे आली...

आली रे आली
बसंत ऋतु आली
मिलजुल सब यारों ने
पंचमी मनाली

सभी मित्रगण को मेरी ओर से बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | माँ सरस्वती सभी पर अपनी कृपा का हाथ सदैव बनायें रखे |

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2013

श्रीमती अनारो देवी – भाग १

श्रीमती अनारो देवी - मुख्य पात्र
श्री गंगा सरन - पति श्रीमती अनारो देवी
श्री साहू हर प्रसाद - पिताजी श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती हिरा देवी - माताजी श्रीमती अनारो देवी
श्री जानकी प्रसाद - पिताजी श्री गंगा सरन
श्रीमती कलावती देवी - माताजी श्री गंगा सरन

श्रीमती गार्गी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सुरेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री योगेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री महेन्द्र प्रसाद 'मानू' - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री वीरन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सत्येन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती बीना देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती माधरी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री विनो दप्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी

अब तक के सभी भाग - १०
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ब्रिटिश राज | गुलाम भारत | आज़ादी के लिए जददो जहद ज़ारी थी | इसी टहलुआ हिंदुस्तान के उत्तर प्रदेश प्रान्त के एक छोटे से शहर मुरादाबाद में बसे मोहल्ला दिनदारपुरा के रहने वाले थे साहू हर प्रसाद | ऊँचा लम्बा कद, आकर्षक व्यक्तित्व, रौबीली ज़ोरदार आवाज़ के मालिक जमींदार खानदान में जन्मे मिजाज़ से बहुत ही गर्म और गुस्सैल प्रकृति वाले व्यक्ति थे | मग़रुर किन्तु निडर स्वाभाव के स्वामी थे | हर एक कार्य में दक्ष और बुद्धिकौशल के प्रतीक थे | यद्यपि ज्यादा शिक्षित नहीं थे परन्तु दूरदर्शी गज़ब के थे | बहुत ही सफल उद्यमी भी थे | हर कारोबार की समझ रखने वाले, रसूकदार शक्सियत, बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे | उनके पुरखे उनके लिए अनेकों खेत, खलिहान, रुपया पैसा और साथ में बहुत सारी अकड़ भी छोड़ गए थे | परन्तु एक बात सराहनीय थी के अपनी बुद्धि, विवेक और कार्यकुशलता के चलते उन्होंने ब्याज बट्टा, अनाज की आढ़त, सोना, चांदी, विदेशी साड़ियाँ और कपड़ा, ज़मीन ज़ायदाद, खाने के मसाले, कोयला, मेवा, लकड़ी आदि के थोक व्यापार में बड़ा नाम कमाया | इस के चलते अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘साहू’ के ख़िताब से नवासा | सरकारी काम काज और कोर्ट कचेहरी की भी गज़ब की समझ रखते थे और लोगों के झगड़ों के फैंसले भी करवाया करते थे | सम्मानार्थ सरकारी अदालतों में उन्हें न्यायाधीश के साथ फैसलों में बैठाया जाता था | गज़ब के न्यायकर्ता और परखी नज़र रखते थे वो | लोगों से काम कैसे निकलवाना है इसमें उन्हें महारत हासिल थी | सारे शहर में उनका बहुत ही रुतबा था तथा सभी उनको बहुत आदर और सम्मान दिया करते थे | साहू साब, साहू साब कहते लोगों का मुंह नहीं थकता था | कोई भी उलझन हो, अड़चन हो, आपसी झगडा हो, सब न्याय की आशा लिए उनके पास पधारते थे | और साहू साब भी एक दम सटीक न्याय करते थे | इसलिए सभी उनके कायल थे | उनके इस व्यक्तित्व के विपरीत उनका एक शौक बिलकुल जुदा था | उन्हें पाक कला में बेहद रूचि थी | वैसे तो कहने को दसियों नौकर नौकरानियां थे हवेली में पर जब खाना बनाने का दिल होता या कभी मेहमान नवाज़ी का वक़्त आता तो साहू साब खुद खड़े होकर खाना बनाते और आदेश देकर अपनी देख रेख में स्वादिष्ट व्यंजन बनवाते | मसालों के इस्तमाल से सब्जियों को स्वादिष्ट कैसे बनाया जाये इसका बहुत ही गूढ़ ज्ञान था उन्हें | उनकी दावत के पकवानों को खाकर लोग अपनी उँगलियाँ तक चबा जाया करते थे और उनकी वाह वाही करते नहीं थकते थे | शहर के अनेकों हलवाई उनसे सलाह मशवरा कर के अपने कारोबार को बढ़ा रहे थे और उनके गुणगान करते न चूकते थे |

यूँ तो साहू साब का ब्याह छोटी उम्र में हो गया था | उनकी पत्नी हीरा देवी भी एक संभ्रांत कुल से ताल्लुक रखती थी | उनकी शरीक-ए-हयात की शक्सियत भी उन्ही के माकूल थी | शर्म उनका गहना था और मीठे बोल उनकी फितरत | बला की सुन्दर | बेहद शांत स्वभाव की घरेलू विचारधारा वाली आकर्षित महिला थीं | परन्तु संतान सुख की प्राप्ति उन्हें अनेक वर्षों बाद हुई | ये प्रभु की इच्छा ही थी के इतने वर्षों के इंतज़ार, कामना, पूजा पाठ, दान दक्षिणा, कर्म काण्ड और मेहनत पश्चात उनकी धर्म पत्नी हीरा देवी ने एक चाँद की चांदनी सी पुत्री को जन्म दिया | पुत्री होने पर भी दोनों अत्यंत हर्षित थे | उन्होंने कभी भी पुत्र और पुत्री में भेद भाव नहीं किया था | उनके लिए दोनों का महत्त्व समान था और फिर यह तो इश्वर का प्रसाद थी | इतने जतन के पश्चात संसार में आई थी |

पुत्री थी गज़ब की खूबसूरत | बालिका के मुखमंडल से सूर्य सा तेज उत्पन्न हो रहा था | किशमिश जैसी छोटी छोटी आँखें नन्हे से गोल मटोल चेहरे पर सजी थीं | चिल्गोज़े सी छोटी सी नाक और अंजीर जैसे लालम-लाल गुलाबी गाल के बीच मुनक्का से मीठे होठ मुस्कराहट की मिठास बिखेर रहे थे | उन होटों के ऊपर महीन सा इलाईची जैसा तिल था जो किसी के भी दिल जीतने में पूर्णतः सक्षम था | ऐसा प्रतीत होता था मानो इश्वर ने शुभ की मेवा थाली सजाकर साहू साब के जीवन में भेंट कर दी हो | बिटिया के ज़िन्दगी में आते ही उनके कारोबार में दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की होने लग गई | आते ही वो सबकी लाडली बन गईं | उनकी अनार जैसी सुर्ख रंगत ने सबका मन मोह लिया | साहू साब ने इसी सुन्दरता को देखते उनका नाम अनारो रखा था |

समय का पहिया चलता रहा और ज़िन्दगी भी साथ साथ बढ़ती रही | अब अनारो भी बड़ी हो रही थीं | खेल कूद में उनकी रूचि ज्यादा नहीं थी | न ही सहेलियों के साथ इधर उधर जाया करती | अपनी उम्र के बच्चों से अधिक दिमाग था उनमें और उसे वो सकारात्मक तरीके से उपयोग किया करती थीं | उन्हें अपने पिताजी के साथ समय व्यतीत करना बहुत पसंद था | पढाई लिखाई के आलावा भी उन्हें अपने पिता के स्नेह की छाँव में बहुत कुछ सीखने को मिलता | दुनियादारी, बोल चाल, आचार विचार प्रकट करना, काम क़ाज और कारोबार को समझना उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही शुरू कर दिया था | साहू सब को भी अपनी लाडो से बहुत लगाव था | वो जितना उन्हें सिखाते और बतलाते वो तुरंत ही सीख जातीं | बचपन से ही वो बहुत ही कार्यकुशल बालिका थीं | उनका जीवन को समझने और जीने का नज़रिया बहुत ही साफ़ था | हर समय कुछ न कुछ सीखते रहना और पढ़ते रहना उसकी आदत थी बाक़ी जो थोड़ी बहुत कमीवेशी रह जाती वो पिताजी और माताजी की सोहबत पूरी कर देती | ऐसे ही खेलते कूदते और सीखते कुछ और साल बीत गए |

ग्यारह वर्ष की आयु के आते आते नियति ने उनपर एक बहुत दुःख की गाज गिरा दी | अनारो की माताजी स्वर्ग सिधार गईं | उस उम्र में जब माता के साथ और शिक्षा की सबसे ज्यादा और सक्थ ज़रुरत होती है अनारो एक दम अकेली पड़ गईं | ऐसे समय में उनको साहू साब ने संभाला | वो उनके लिए पिता और माता दोनों का फ़र्ज़ पूरा किया करते | कारोबार के साथ साथ अब वो घर पर और बेटी पर भी पूरा ध्यान दिया करते और अपनी बेटी को अपना सम्पूर्ण समय, शिक्षा, प्यार, लगाव और सम्मान दिया करते | उन्हें पाक कला के गुण भी सिखाते साथ साथ कारोबार की बारीकियां भी समझाते और जीवन को जीने का तरीका सिखलाते | साहू साब के मातहत, अनारो को जीवन के सभी विशेष ज्ञान सीखने को मिल रहे थे और उनके जीवन और बुद्धी दोनों का विकास परस्पर सम्पूर्ण रूप से हो रहा था |

अब अनारो चौदह वर्ष की हो गई थी | देखने में वैसे तो छोटी कद काठी की थीं परन्तु छहरहराह बदन, फुर्तीली, पतली दुबली, गोरी चिट्टी, चमेली के तेल लगाये बंधे हुए घने काले सियाह बालों की कमर को छूती लम्बी नागिन सी चोटी, हिरनी जैसी चमकती आँखें, तीखे नक्श, सुर्ख गुलाबी होठ, अनार के दानो सी उनकी हंसी, माथे पर सूरज सा तेज लिए कुमकुम की बिंदिया, हाथों में रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों के साथ सोने का जडाऊ काम के कंगन, विदेशी सिल्क की महीन काम वाले बॉर्डर की साडी पहने सबसे अलग ही नज़र आतीं | उनके मुखमंडल के तेज, पहनावे, आचार, विचार, व्यव्हार और बातचीत से साफ़ झलकता के वो एक खानदानी और उच्चवर्गीय राजसी परिवार की महिला हैं | पिता की परवरिश का असर उनके परिवेश से साफ़ चमकता था | उनके चेहरे पर काला तिल उनकी नज़र का टीका बन गया था जो उन्हें नज़र-ए-बद से बचाता था | साहू साहब को अब उनके ब्याह की चिंता सताने लग गई थी | उन्होंने ने एक अच्छा सा खानदान देखना शुरू कर दिया था जहाँ वो अनारो को ब्याह सकें | काफी रिश्तों पर गौर फरमाने के पश्च्तात आख़िरकार उन्हें सफलता प्राप्त हुई और मेरठ शहर के एक ज़हीन और मशहूर-ओ-मारूफ खानदान में उन्होंने अनारो का रिश्ता पक्का कर दिया |

खानदान उनके रुतबे की टक्कर का था | यदि ज्यादा नहीं था तो कम भी नहीं था | बढ़िया कारोबार था | लड़के का नाम गंगा सरन था | बेहद सुन्दर, छह फुट लम्बाई, चौड़ा हाड़, मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी, वाक् कुशल, व्यव्हार कुशल, निश्छल स्वाभाव तथा मृदुभाषी थे | उनका अपना विदेशी कपड़े का व्यापार और कारोबार था | सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी राज्यों में विदेश से कपड़ा मंगवाकर उपलब्ध कराना तथा उसकी थोक बिक्री एवं फुटकर बिक्री भी किया करते थे | बहुत ही संपन्न परिवार था | साहू साब को पूरा यकीन था की उनकी पुत्री उस परिवार में बेहद खुश रहेगी | लड़का भी उन्हें बेहद पसंद था | आखिर विवाह दिवस आया और अनारो का कन्यादान करके साहू साब अपने कर्त्तव्य से मुक्त्त हुए और अनारो पराई हो गई | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

बेहद ज़रूरी है

दर्द में मुस्कराना बेहद ज़रूरी है
दर्द में प्रीत निभाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में संभल जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में दिल लगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में समझ जगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में खुद से लड़ना बेहद ज़रूरी है
दर्द को काबू करना बेहद ज़रूरी है
दर्द को ना जताना बेहद ज़रूरी है
दर्द को पी जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को अपनाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को जीत जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द तो सिर्फ अपना है "निर्जन"
दर्द को दर्द में यह समझाना बेहद ज़रूरी है |

हे प्रभु

हे प्रभु
तुम्हारे ध्यान में
एक
अपूर्व शक्ति है
पर
स्वासों में
तुम्हारे स्वरुप
की
एक अजीब
और
शांत सी
सिहरन
जो
स्मृतिमात्र से
तन मन दोनों को
रोमांचित
किये जाती है

मंगलवार, फ़रवरी 12, 2013

दिल की दास्ताँ - अंतिम भाग

सुधांशु ने मुड़ कर देखा, और मुस्करा दिया | उसकी आँखें नम थी और होटों पर मुस्कान थी | दुःख और सुख का ऐसा समन्वय उसके जीवन में एक अरसे बाद आया था | जिस दिन का उसे बेसब्री से इंतज़ार था वो बरसों बाद आज आ ही गया था | लालाजी उसके सामने खड़े थे | वो झट से लालाजी के गले लग गया | अश्रुपूरित नयनो से और कांपती आवाज़ में उसने पूछ ही लिया,

"इतनी देर, इतनी देर क्यों की, दददू?"

"लालाजी, चुप रहे और उसे गले से लगा लिया और धीरे धीरे उसकी कमर सहलाते रहे और प्यार से सर पर हाथ फेरते रहे"

दोनों फिर साथ में घुमने निकल पड़े और एक शांत स्थान पर जाकर बैठ गए | दोनों खामोश थे | काफी देर तक दोनों सुकून के साथ उस चुप्पी को सुनते रहे | फिर अचानक लालाजी ने धीरे से कहा,

"देर तो हो गई बेटा, इस बार कुछ ज्यादा ही देर हो गई | पर देर आए दुरुस्त आए | अब से मैं तेरे साथ हूँ | हर सुख दुःख में |"

सुधांशु ने भी हामी में चुप चाप सर हिला दिया और दोनों घंटो साथ बैठे रहे | उस दिन सुधांशु और लालाजी के बीच एक नए रिश्ते ने जन्म लिया और वो रिश्ता था दोस्ती का, प्यार का , आदर का, सम्मान का | उस एक दिन में सुधांशु को वो सब कुछ मिल गया जो उसने बरसों से नहीं पाया था | दादा और पोते ने मिलकर उस दिन खूब मज़े किये | लालाजी ने भी जम कर मीठा खाया | दोनों की पसंदीदा मिठाई जलेबियाँ ही थीं और आखिर में लालाजी ने अपने हाथ से आखरी जलेबी उठाई और आशीर्वाद देते हुए अपने पोते को खिलाई और बोले,

"जिस तरह इस जलेबी की मिठास तुम्हारे मुंह को मीठा कर रही है उसी तरह से मेरा आशीर्वाद है के आगे तुम्हारी ज़िन्दगी भी ऐसे ही मीठी बनी रहे | चलो अब घर चलते हैं |"

लाला जी के हाथ से छड़ी लेते हुए सुधांशु ने उनका हाथ थाम लिया और अपने कंधे पर रख लिया | और फिर हंसी मजाक करते, हँसते खिलखिलाते दोनों घर की ओर चल पड़े |"

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मूड बदल जायेगा

गुमां करते हैं कुछ लोग अपनी
अहमकाना हरकतों का
दम भरते हैं अपने झूठे
अहंकार के ऊँचे पर्वतों का
गुरूर करते हैं वो आज
चाँद कागज़ के पर्चों का
जहाँ आज वो खड़े हैं
वहां वक़्त मुझको भी
एक दिन ले जायेगा
जब किस्मत बदलेगी मेरी
वक़्त उनको बतलायेगा
हैं वो भी फ़कत इंसान ही
कोई ख़ुदा तो नहीं
दुआ करता है 'निर्जन'
हर क्षण
जल्द ही गॉड का भी
मूड बदल जायेगा

रविवार, फ़रवरी 10, 2013

दिल का विसर्जन हो गया

कुछ संजोये लम्हात मेरे
कुछ धुंधली सी तेरी यादें
कुछ पल साथ गुज़ारे जो
कुछ भूली बिसरी सी रातें
कुछ मीठी मीठी थीं बातें
कुछ गीत साथ में थे गाते
कुछ शिकवे थे हमने बाटें 
कुछ खटपट थीं तेरी मेरी
कुछ नाज़ुक थे अपने वादे
कुछ आँखों में गुज़रीं रातें 
कुछ नयनो की खुमारी वो
कुछ अदाएं मोहक प्यारी वो
कुछ सीने से गिरता आँचल
कुछ मदहोशी बिखरी हर पल
इन सबको साथ समेट के मैं
लहरों में स्वाह  कर आया हूँ
इस मौनी मावश को "निर्जन"
दिल का विसर्जन कर आया हूँ

वीणा

हे ईश्वर
तुम्हारी
स्नेह भरी
वीणा को
सुनकर
प्यासा मन
तृप्त हो जाता है
तृप्त हो जाती है
प्यास
जो एक
मरुस्थल पर
शीतल झरने
की तरह
बहते हैं
मेरे जीवन में
मेरी हर श्वाश में

ऐसों से साड्डी बग़ावत है

फिल्में बनाई ऐसी है क्यों
फाड़ देवांगे पोस्टर नू
बोल लिखे गाने के जो
भ्रष्ट करें दिमागां को
बंद करो कुड़ियों का बैंड
तां पावेंगे दिल दा चैन  
जो खोला तुमने है मुहं
तोड़ देवांगे दान्तं नू
लिखी किताब काहे को यूँ
जला देयांगे जद छपेगा तू
वैलेंटाइन मनायेगा क्यों
जंगलियों दे जूते खायेगा तू 
वो डायरेक्टर भद्दा है
साड्डी संस्कृति नाल धब्बा है
उसकी कलाकृति नंगी है
ओ सोच नाल फिरंगी है
कपडे वैसे पहने क्यों
हिंदी नारी अबला है तू
जात को तू तो मुल्ला है
भग पाकी रस्ता खुल्ला है
महाकुंभ में नहायेगा
राजनीति दिखलायेगा
पुतले रोज़ जलाएंगे
नौटंकी मचाएंगे
जूतों के हार चढ़ाएंगे
फूहड़ नज़रिया बतलायेंगे
घरों में घुसना जायज़ है
जद ब्रेकिंग न्यूज़ कवायत है
जड़ खरीद ग़ुलाम हैं ये
जीवन दा एही मुक़ाम है ये  
वेल्ले कितने लोग हैं वो 
जेड़े झक झक बक बक करदे यो 
फ़िजूल भौंकना आदत है
ऐसों से साड्डी बग़ावत है

शनिवार, फ़रवरी 09, 2013

दिल की दास्ताँ – भाग ३

आखिरकार  दिन, महीने और फिर साल गुज़रे और निज़ाम ऐसे ही चलता रहा | पंद्रह साल से ज्यादा बीत गए थे | सुधांशु २८ साल का हो गया था | आपसी मन मुटाव के चलते रिश्तों के बीच के एहसास भी सूली चढ़ चुके थे | लालाजी और समस्त परिवार एक तरफ और सुधांशु दूसरी तरफ | प्यार तो दिलों में बहुत था पर वक़्त ने उस प्यार को एक दुसरे तक कभी पहुँचने नहीं दिया | दुसरे शब्दों में कहूँ तो वक़्त ही 'मैं' बन गया था | और उस 'मैं' के रहते सब कुछ खत्म होता गया |

कहते हैं इंसान अच्छा या बुरा नहीं होता | जो होता है वक़्त होता है | सच कहूँ तो मुझे आज भी इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं है | इंसान तो इंसान है और उसका स्वाभाव उसके वश में है इसमें वक़्त का अच्छा और बुरा होने से क्या लेना देना | व्यव्हार इंसान के काबू में होना चाहियें चाहे फिर वक़्त कैसा भी हो | जिस व्यक्ति को अपने व्यव्हार और वाक्शक्ति पर नियंत्रण नहीं वो इन्सान कमज़ोर होता है | ऐसा मैं मानता हूँ ज़रूरी नहीं के हर कोई ऐसा ही सोचता हो |

सुधांशु की भी यही सोच था | उसका स्वभाव उसके वश में था और उसकी सभी इन्द्रियां भी | इसके चलते उसने एक चुप्पी साध ली थी | न वो बुरा कहना चाहता था न सुनना | न कोई शिकवा न किसी से कोई शिकायत | बस एक मौन था और दिल में दर्द का उमड़ता तूफ़ान जो उसे अन्दर ही अन्दर बहाए ले जा रहा था हर एक परिस्थिति और अपनों से दूर | करना बहुत कुछ चाहता था सबके लिए पर कद्र किसको है यह सोचता था | कर्मठता परिपूर्ण थी उसमें | हर एक कार्य में दक्ष था | अपने मतलब का हर काम करना वो भली भांति जानता था | आखिरकार लाला जी का खून था | चारों चूल चौकस और चौकन्ना | दिमाग तो उसका फेर्रारी से भी तेज़ दौड़ता था | अपने काम से और अपनी मेहनत से आज वो नौकरी में भी शिखर पर पहुँच चुका था | उसने बहुत ही कम उम्र में बहुत कुछ हासिल कर लिया था परन्तु दिल और हाथ एकदम ख़ाली थे | पैसा तो कमाया पर उसका मोह कभी नहीं किया | सारी कमाई दूसरों पर खर्च कर देता | एक पैसा न जोड़ता | घर में सभी के लिए कुछ न कुछ लेकर आता सिर्फ लालाजी और उनकी धर्म पत्नी के लिए नहीं | दिल तो बहुत करता पर कुछ ऐसा था जो उसे रोक देता | लालाजी ने भी तो आजतक ऐसा ही किया था | दिल तो उनका भी बहुत था करने को पर किया आज तक कुछ नहीं | दिलाया कुछ नहीं | 

इसी के चलते सुधांशु का रिश्ता पक्का हो गया | लड़की उसने स्वयं पसंद की थी | उसने लव मैरिज करने का फैसला किया था | परिवार भी जैसे तैसे मान गया था | परन्तु लालाजी सहमत न थे | फिर भी अनमने बुझे दिल से वो शादी में शामिल हुए | शादी हुई और सुधांशु के जीवन का एक नया दौर आरम्भ हुआ | शुरुवाती दिनों में सब कुछ अच्छा लग रहा था | परन्तु जीवन के कुछ और इम्तिहानो से और बेहद बुरे दौर से गुज़ारना अभी बाकि था | शादी के कुछ समय बाद ही खटपट शुरू हो गई | न विचार मिलते थे दोनों के न ही व्यव्हार और सोच | उसको धर्मपत्नी से और बीवी को उससे शिकायतें रहने लगी | झगडा बढ़ते बढ़ते परिवारों के बीच पहुँच गया | दिलों में खटास और मन मुटाव के चलते कलह और आरोप प्रत्यारोप अपने चरम सीमा पार कर गए | बुजुर्गों का अपमान और उपेक्षा उसके लिए आम बात थी । न आदर न सम्मान । रिश्ते उसके लिए सिर्फ उपयोग की वस्तु रह गए थे । वो नाम के लिए पुत्र-वधु तो बनी थी पर कुल-वधु कभी नहीं बन पाई । अपने जीवन में उसे किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं था । बड़ों से लिहाज़ और छोटों से तहज़ीब और अदब से किस तरह पेश आना चाहियें था ये उसकी परवरिश में शुमार नहीं था । अपनी बात किसी से न कहने की कवायत के चलते फासला बढ़ता जा रहा था | न बोले तुम न मैंने कुछ कहा ने एक दीवार खड़ी कर दी रिश्तों में | वो हर बात पीता और अन्दर ही अन्दर घुट घुट कर जीता रहता | काम पर जाता तो वहां से वापस आने का दिल न करता | घर में कलेश का माहौल रहने लगा था | उसका दम घुटने लगा था | रोज़ रोज़ वही चिक चिक | वही महाभारत रोज़ रोज़ आखिर कौन कब तक बर्दाश्त करेगा | इस सब के चलते उसके एक संतान ने जन्म लिया | संतान के आने से जीवन में फूलों की बरसात हो गई हो | मेघा की झड़ी लग गई | खुशिओं की बरखा बरस गई | जितना लगाव और मोह उसे अपनी संतान से था उतना किसी से भी नहीं था | अपनी माँ के बाद अगर वो किसी को सच में चाहता था और जान देता था वो उसकी संतान ही थी | बीवी के और उसके बीच के रिश्ते परस्पर बिगड़ रहे थे | किसी तरह वो अपनी शादी को बचने का प्रयास करता रहा | कभी प्यार की खातिर कभी बेटी की खातिर |

परन्तु कहते हैं न औरत चाहे तो घर को स्वर्ग बना दे या फिर नरक | ये सब उसके हाथ में होता है | एक गलत इंसान और एक बिना सोचे लिए गया फैसला आपकी ज़िन्दगी को हमेशा के लिए तबाह कर सकता है | सुधांशु के साथ भी यही हुआ | एक दिन उसके सारे भ्रम टूट गए | उसके भरोसे का खून हो गया | जिस रिश्ते को उसने प्यार का रिश्ता समझा था उस रिश्ते में दरअसल प्यार तो कभी था ही नहीं | जिसे वो जीवन संगिनी समझे बैठा था वो तो किसी और की ही थी | अपने जीवन के इस अध्याय के सच सामने पाकर वो बिखर गया | अन्दर से पूर्णतः टूट गया | पर कहता किस से सुनता कौन उसकी | कहना और शिकायत करना तो उसने सीखा ही नहीं था | इसलिए खामोश रहा | सहता रहा | ज़िन्दगी सबसे बड़ा आघात उसे तब लगा जिस दिन उसे मालूम हुआ के किसी और के लिए उसकी बीवी ने उसे छोड़ दिया और उसकी संतान को भी लेकर घर से चली गई | इसी कशमकश और उलझनों के चलते उनका अलगाव होने की नौबत आ गई | भरसक प्रयास किया रिश्ते को बचने का परन्तु नतीजा कुछ न निकला | बड़े बूढों का साया सर पर रहते हुए भी ऐसे दिन देखने को नसीब होंगे उसने कभी सोचा न था | आख़िरकार उसका घरोंदा टूट गया | संतान से भी विच्छेद हो गया | अब वो एक दम अकेला था | इसका सबसे ज्यादा दुःख लालाजी को ही था | उनके रहते उनके खून की ऐसी हालत वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे | पर अपने दिल की बात कहना कहाँ आता था उन्हें | अब सुधांशु एक दम खामोश हो चुका था | खून के आंसू पी पी कर उसके दिल के ज़ख्म भी सूख चुके थे | पर वो बहुत ही हौसलें वाला इंसान था | जीवन का ये वार भी सह गया | प्रभु की एक और लीला समझ कर उसने उनका धन्यवाद् दिया और कहा के शायद इसमें भी कोई अच्छाई ही होगी जो आपने मेरे साथ ऐसा किया | जीवन के तमाशे के किरदार तो आपने लिख कर भेजे हैं मैं उन्हें बदलने वाला कौन हूँ | भगवान् पर उसका भरोसा अटल था  | ऐसे झटकों से अक्सर लोग तबाह हो बिखर जाया करते हैं | पर वो संभल गया | अच्छे बुरे और अपने पराये की पहचान उसे भली भांति हो गई थी | पुराने लोग कह गए हैं के दर्द जब दिल के पार हो जाये और हद से गुज़र जाये तो होटों पर मुस्कान बन कर छलकता है | वही उसके साथ हुआ | अपने भीतर के दर्द से बचपन से लड़ते लड़ते वो इतना मज़बूत हो गया था के आज उसके सामने जो परिस्थिति थी वो उसके लिए कहीं न कहीं तयार था | दिल से कहूँ तो उसने अपने आपको इतनी बेहतरीन तरह से संभाला के आज उसके समस्त परिवार को भी उस पर नाज़ था |

उसके स्वाभाव में अचानक एक भव्य परिवर्तन हुआ | जो इंसान “एंग्री यंग मैन” के ख़िताब की पराकाष्ठा को भी पार कर चुका था, ख़ामोशी, अना, जिद, चिडचिड़ाहट, जवाबदेहि, मुन्ह्ज़ोरी, कडवाहट, बदजुबानी,  जिसके पर्यायवाची हुआ करते थे | जो प्राणी या तो बोलता ही नही था या बोलता था तो काटने को दौड़ता था आज वो एक दम शांत था | उसके स्वभाव में एक ठहराव था | अपने प्यार को दर्शाने का ये तरीका उसने कब और कैसे छोड़ दिया इससे सब अनजान थे | आज एक पूर्णतः बदला हुआ सुधांशु सबके समक्ष था | अब उसका व्यव्हार और आचरण एक दम उसके स्वाभाव के विपरीत था | शायद एक गलत फैसले और गलत रिश्ते के तजुर्बे ने उसे ये भी सिखा दिया था के अपने अपने ही होते हैं और पराये कभी अपने नहीं होते | किसी पर भरोसा बहुत सोच समझ कर करना चाहियें |

वो इतवार का दिन था | इन्ही सभी ख़यालों में डूबा सुधांशु चुप चाप अपने कमरे में बैठा था | अचानक किसी ने अपना हाथ उसके काँधे पर रखा और पुछा,

"बेटा, किस सोच में बैठा है ? सब ठीक है न | रात सोया नहीं क्या ? कुछ तकलीफ तो नहीं है ? मैं तेरे साथ हूँ और तेरे पास भी | डरता और घबराता क्यों है | चल उठ खड़ा हो | मेरे गले तो लग जा ज़रा | अरसा हो गया तुझे सीने से लगाये | दिल तरस गया तेरे दिल की धड़कन को महसूस करने के लिए | तेरे मन की आवाज़ सुनने के लिए कान तरस गए | ऐसी भी कैसी नाराजगी? चल आ आज बहार चलते हैं | साथ में घूमेंगे और छोले कुलचे खायेंगे | थोड़ी हवाखोरी भी हो जाएगी | क्या कहता है ? चलें ? तयार है न मेरे शेर ? बता |"  क्रमशः

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

गुरुवार, फ़रवरी 07, 2013

टूटा फूटा जीवन है

टूटा फूटा जीवन है
बोझिल है तन मेरा
जीवन एक अँधेरा है
कब पाऊंगा सवेरा
दशा बुरी है शवासन की
प्रभु ध्यान करो कुछ मेरा
दशा सुधारो इस दीनन की
कल्याण करो तुम मेरा
ध्यायुं रोज़ मनाऊं तुमको
सुनो अर्ज़ इस मन की
अब तो करो कृपा परमेश्वर
डगर सुझाओ जीवन की
टूटा फूटा जीवन है...