गुरुवार, जनवरी 10, 2013

राष्ट्र भाषा "हिंदी"

लो जी आज फिर से नींद ग़ाफूर हो गई है आँखों से | अभी अभी बिग बॉस देख कर बैठा था | सोचा क्या करूँ तो पुरानी स्कूल वाली डाईरी खंगालने लग गया | सोचा कुछ तो ऐसा होगा जो मज़ेदार हाथ लगेगा और मैं उससे ब्लॉग पर पोस्ट कर दूंगा | तो ये एक कविता सामने आई | पढ़कर लगा के आजकल के माहौल के मुताबिक सटीक बैठेगी | सो आपके सम्मुख प्रस्तुत है पढ़ें, आनंद लें और बताएं के कैसी लगी?

लाड़ेज़ और जेंटलमैन
इंडिया एक बहुत बड़ी कंट्री है
इसमें मैनी लैंग्वेज बोलने वाले लोग हैं
हम सब इंडिया के सिटीजन हैं
हिंदी हमारी मदर लैंग्वेज है
इसलिए हिंदी बोलना कंपल्सरी है
एंड हिंदी लिखना नेसेसरी है
पर आज की यंग जनरेशन
हिंदी बोलने और लिखने में शर्म फील करती है
जब भी अपना माउथ खोलती है
इंग्लिश में ही बोलती है
किसी पर्सन की पर्सनेलिटी को
अन्ग्रेज़ीअत में तोलते हैं
लेकिन हिंदी के इम्प्रूवमेंट के लिए
हमें डेली लाइफ में उसे करनी है हिंदी
हमें हिंदी को वर्ल्ड वाइड पहुँचाना है
हिंदी में इंग्लिश मिलाकर
उसका मिक्सचर मीन्स हिंगलिश नहीं बनाना है
दैन ओनली भारत माता के
ड्रीम होंगे सच एंड हमारी
मदर लैंग्वेज हिंदी की होगी इज्ज़त...

बुधवार, जनवरी 09, 2013

वीणा

मेरे मन मस्तिष्क
के तारों को
वीणा मत बनने देना
भगवन
क्योंकी वह वीणा 
जो स्वर निकलती है
ये परिवेश उसे
नहीं स्वीकार पायेगा
स्वयं मैं भी
पथराया सा
अनजान रास्ते
पर बिना स्वर के
उस वीणा को
छेड़ देता हूँ
जिसके स्वर से
ईश्वर तुझे भी रोना
न आ जाये
वो दर्द तेरी
पत्थर की बुत
को भी तोड़ देगा
देख अपनी वीणा को
जो तूने मुझे सौंपी है
बजाने के लिए
एक नियत
स्वर दे
जिससे मैं
आठों पहर
तेरी वीणा से
तेरे ही राग
गया करूँ
मेरे मन मस्तिष्क
को आयाम दे
जिससे मैं कोई
मंजिल देख सकूँ

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

पीड़ा के तोशक

चंद कोमल सासें चुराकर
भवितव्यता से भौहें भिगोकर
हारते खेल की बाज़ी खेलकर
इश्क में परवाह का जुआ लगाकर

कसक की रजाई ओढ़क्रर
ग़म-ए-ज़िन्दगी की नुमाइश
धोखा देते ज़िन्दगी के साल
खोई युवावस्था के दाग़
परिपक्वता की अभिरंजित सरसराहटें

विद्युन्यय तरंगे
व्यंग्यात्मक फुसफुसाहट
पानी का चटकना
बुखार में तेज़ तपना

शठ कड़कड़ाहट
सरकती झनझनाहट
निष्प्रभ अश्रु
बायां खयाल

मायावी मृगतृष्णा
मतिभ्रम उपभोगन
दिमाग़ी शस्त्राभ्यास
विस्फ़ोटक धडकन

अंततः संगीतमय
अंतिम आकलन
फिर निस्तब्धता
कुछ रुकी श्वास
ख़ामोश वृन्द

इस सबका क्या अर्थ है?

पीड़ा के तोशक ओढ़े
हताशा में भी शांत रहना

मैंने सोचा

मैंने सोचा
मैं रो दूंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

मैंने सोचा
मैं मर जाऊंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

पर अब
मैं सोचता हूँ
उन खुशनुमा
पलों के बारे में
जो कभी साथ बिताये थे
मैं रोता हूँ

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
हम कभी खुश थे

मैं रोता हूँ
क्योंकी
मुझे पता है
अब कभी
नहीं मिलेंगे

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
अब एक दुसरे को
कभी देख नहीं पाएंगे

अब दर्द
धीरे धीरे
कम हो रहा है
दिल भी
मेरे और
ज़िन्दगी से साथ
मर गया है

रविवार, जनवरी 06, 2013

The Power of Silence


Are you there? 
Can you hear me?
Possibly not because I am silence
My authority reigns over me and keeps me reserved
The atrocities I see and hear keep me silent
The violence overwhelming or souls keep me silent
The dispute And uncommon regard has me silent
Your wealth and greed have kept me silent
The lack of wisdom and fairness keep me silent
I do not shed a tear when silent
Because to cry would show my inner emotion
And that is silent
You rule the world as if
You only exist not seeing the truth
You have consumed us of a life
Your silence has confused and belittled us
Because your silence equals authority
What happened to you?
You were kind, compassionate and very loving
I understand how our silence has led us
To knowing what we are feeling
What we are thinking
What we love
What we want
And most of all
What is important
Your silence has led me to my ruin
Your silence has led me to my confusion
Your silence has led me to our disputes
Your silence has led me to a world without love
Your silence has killed many before and after me

हे स्त्री

हे स्त्री
तुझे
आर्थिक रूप से
सामाजिक रूप में
कब तक
दासता में
जीना होगा
जगत धारिणी
जगत जननी
नाम से तुझे
सभी जानते हैं
तुलसी भी
सीता का
पुजारी पर
ढोल, गंवार
पशु के साथ
उसने भी
जोड़ा था
तुझे
क्यों
क्या तू
कोई चल अचल
संपत्ति है
एक सवाल
हर स्त्री
पूछती है
पर
पुरुष प्रधान
समाज में
कोई भी
तुझे
मुक्ति नहीं देगा
कभी पिता, पति
कभी पुत्र
कभी भी
दासता से
नहीं छोड़ सकते
शायद तेरे से
ग़ुलाम ही
बेहतर हैं
एक स्तिथि तक...

पुत्र मोह या मोक्ष मोह

हे पुत्र तुम्हारे कंदन में
शायद
किसी के
सहारे की
या
किसी को
कर्त्तव्य एहसास
करने की
शक्ति थी
तभी तो
मैं
अपनी समृद्धि
के बाद भी
न भूल
पायी
वो आँखें
वो सपना
वो घर
जिसका खोजना
शायद
भगवन के
लिए भी
मुश्किल था
जहाँ
सूरज को भी
आते जाते
शाम हो जाती है
पर उस
उत्तम घर का
स्वामी एक
रत्न है
जिसकी चमक शायद
सूरज से
ज्यादा भी
तभी तो, मैं
अनजाने
परिवेश में
उस को पा गई
तुम्हारे कंदन में
मेरे हृदय की धड़कन
मानो खुद भी
कंदन करने
लगती है
आँखे पथराई सी
धड़कन को
देखना चाहती हैं
सुनना चाहती हैं
पर पुत्र वो
चाहती हैं, अपना
छोड़ा हुआ, वो
सलोना सा मुखड़ा
जिसमें मेरे
दोनों जहाँ थे
अब अपने
कंदन को
कर्म बना डालो
दे दो मुक्ति
मेरे ह्रदय की
धड़कन को
जो शरीर के
रहते भी
उसको विचलित
किये रखती है
मन मस्तिष्क को
मैं तुम्हें
अपार स्नेह स्वरुप
उपहार में देती हूँ
क्योंकि ये शरीर
तुम्हारी ममतामयी का नहीं है

दामिनी की मौत की कहानी, दोस्त की जुबानी (पढ़िये पूरा सच)

दिल्ली गैंगरेप की पीड़ित लड़की जिसकी मौत हो चुकी है उनके पुरुष मित्र और इस केस में एकमात्र गवाह ने शुक्रवार को पहली बार इस मसले पर ज़ी न्यूज़ से बात की। बातचीत में पीड़िता के दोस्त ने बताया कि 16 दिसंबर 2012 की रात हैवानियत वाली घटना के बाद भी उनकी दोस्त जीना चाहती थी। 
उस भयावह रात क्या-क्या हुआ, उसे विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस की तीन-तीन पीसीआर वैन आई और पुलिस थानों को लेकर उलझी रही। उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक का समय लगा दिया गया।
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस आई और उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक समय लगा दिया। उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। गैंगरेप के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। 
उन्होंने कहा, ‘इस भयावह घटना पर मीडिया में बहुत सारी चीजें आई हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि हमारे साथ उस रात क्या हुआ। मैं बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने उस रात किन-किन मुश्किलों का सामना किया।’  उन्होंने उम्मीद जताई कि इस त्रासदपूर्ण घटना से अन्य लोग सबक सीखेंगे और दूसरे का जीवन बचाने के लिए आगे आएंगे। 
उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने 16 दिसंबर की रात उन्हें बस में चढ़ने के लिए प्रलोभन दिया। पीड़ित लड़की के दोस्त ने बताया, ‘बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे। बस में सवार लोग पहले भी शायद अपराध में शामिल थे। 
ऐसा लगा कि बस में सवार आरोपी पहले से तैयार थे। ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा बस में सवार अन्य सभी यात्री की तरह बर्ताव कर रहे थे। हमने उन्हें किराए के रूप में 20 रुपए भी दिए। इसके बाद वे मेरी दोस्त पर कमेंट करने लगे। इसके बाद हमारी उनसे नोकझोंक शुरू हो गई।’
उन्होंने बताया, ‘मैंने उनमें से तीन को पीटा लेकिन तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड लेकर आए और मुझ पर वार किया। मेरे बेहोश होने से पहले वे मेरी दोस्त को खींच कर ले गए।’ पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘हमें बस से फेंकने से पहले अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए उन्होंने हमारे मोबाइल छीने और कपड़े फाड़ दिए।’ 
पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘जहां से उन्होंने हमें बस में चढ़ाया, उसके बाद करीब ढाई घंटे तक वे हमें इधर-उधर घुमाते रहे। हम चिल्ला रहे थे। हम चाह रहे थे कि बाहर लोगों तक हमारी आवाज पहुंचे लेकिन उन्होंने बस के अंदर लाइट बंद कर दी थी। यहां तक कि मेरी दोस्त उनके साथ लड़ी। उसने मुझे बचाने की कोशिश की। मेरी दोस्त ने 100 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसका मोबाइल छीन लिया।’
उन्होंने कहा, ‘बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें बस से कुचलकर मारने की कोशिश की लेकिन समय रहते मैंने अपनी दोस्त को बस के नीचे आने से पहले खींच लिया। हम बिना कपड़ों के थे। हमने वहां से गुजरने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की। करीब 25 मिनट तक कई ऑटो, कार और बाइक वाले वहां से अपने वाहन की गति धीमी करते और हमें देखते हुए गुजरे लेकिन कोई भी वहां नहीं रुका। तभी गश्त पर निकला कोई व्यक्ति वहां रुका और उसने पुलिस को सूचित किया। 
पीड़िता के दोस्त ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि बस से फेंके जाने के करीब 45 मिनट बाद तक घटनास्थल पर तीन-तीन पीसीआर वैन पहुंचीं लेकिन करीब आधे घंटे तक वे लोग इस बात को लेकर आपस में उलझते रहे कि यह फलां थाने का मामला है, यह फलां थाने का मामला है। अंतत: एक पीसीआर वैन में हमने अपनी दोस्त को डाला। वहां खड़े लोगों में से किसी ने उनकी मदद नहीं की। संभव है लोग ये सोच रहे हों कि उनके हाथ में खून लग जाएगा। दोस्त को वैन में चढ़ाने में पुलिस ने मदद नहीं की क्योंकि उनके शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था। घटनास्थल से सफदरजंग अस्पताल तक जाने में पीसीआर वैन को दो घंटे से अधिक समय लग गए। 
दिवंगत लड़की के दोस्त ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ किसी ने भी हमें कपड़े नहीं दिए और न ही एम्बुलेंस बुलाई। उन्होंने कहा, ‘वहां खड़े लोग केवल हमें देख रहे थे।’ उन्होंने बताया कि शरीर ढकने के लिए कई बार अनुरोध करने पर किसी ने बेड शीट का एक टुकड़ा दिया। उन्होंने बताया,‘वहां खड़े लोगों में से किसी ने हमारी मदद नहीं की। लोग शायद इस बात से भयभीत थे कि यदि वे हमारी मदद करते हैं तो वे इस घटना के गवाह बन जाएंगे और बाद में उन्हें पुलिस और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे।’
उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि अस्पताल में हमें इंतजार करना पड़ा और मैंने वहां आते-जाते लोगों से शरीर पर कुछ डालने के लिए कपड़े मांगे। मैंने एक अजनबी से उनका मोबाइल मांगा और अपने रिश्तेदारों को फोन किया। मैंने अपने रिश्तेदारों से बस इतना कहा कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं। मेरे रिश्तेदारों के अस्पताल पहुंचने के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो सका।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर पर चोट लगी थी। मैं इस हालत में नहीं था कि चल-फिर सकूं। यहां तक कि दो सप्ताह तक मैं इस योग्य नहीं था कि मैं अपने हाथ हिला सकूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार मुझे अपने पैतृक घर ले जाना चाहता था लेकिन मैंने दिल्ली में रुकने का फैसला किया ताकि मैं पुलिस की मदद कर सकूं। डॉक्टरों की सलाह पर ही मैं अपने घर गया और वहां इलाज कराना शुरू किया।’
उन्होंने कहा, ‘जब मैं अस्पताल में अपनी दोस्त से मिला था तो वह मुस्कुरा रही थीं। वह लिख सकती थीं और चीजों को लेकर आशावान थीं। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह जीना नहीं चाहतीं।’ उन्होंने बताया, ‘पीड़िता ने मुझसे कहा था कि यदि मैं वहां नहीं होता तो वह पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती। मैंने फैसला किया था कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाऊंगा।’
पीड़िता के दोस्त ने बताया कि उनकी दोस्त इलाज के खर्च को लेकर चिंतित थी। उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का हौसला बढ़ाए रखने के लिए मुझे उनके पास रहने के लिए कहा गया।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने महिला एसडीएम को जब पहली बार बयान दिया तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। उन आरोपियों ने मेरी दोस्त के साथ जो कुछ किया, उस पर मैं विश्वास नहीं कर सका। यहां तक जानवर भी जब अपना शिकार करते हैं तो वे अपने शिकार से इस तरह की क्रूरता के साथ पेश नहीं आते।’
दिवंगत लड़की के दोस्त ने कहा, ‘मेरी दोस्त ने यह सब कुछ सहा और उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि आरोपियों को फांसी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें जलाकर मारा जाना चाहिए।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने एसडीएम को जो पहला बयान दिया वह सही था। मेरी दोस्त ने काफी प्रयास के बाद अपना बयान दिया था। बयान देते समय वह खांस रही थीं और उनके शरीर से रक्तस्राव हो रहा था। बयान देने को लेकर न तो किसी तरह का दबाव था और न ही हस्तक्षेप। लेकिन एसडीएम ने जब कहा कि बयान दर्ज करते समय उन पर दबाव था तो मुझे लगा कि सभी प्रयास व्यर्थ हो गए। महिला एसडीएम का यह कहना कि बयान दबाव में दर्ज किए गए, गलत है।’
यह पूछे जाने पर कि इस तरह की घटना दोबारा से न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वह क्या सुझाव देना चाहेंगे। इस पर दोस्त ने कहा, ‘पुलिस को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो अस्पताल पहुंचाया जाए। पीड़ित को भर्ती कराने के लिए पुलिस को सरकारी अस्पताल नहीं ढूढ़ना चाहिए। साथ ही गवाहों को भी परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि कोई मोमबत्तियां जलाकर किसी की मानसिकता को नहीं बदल सकता। उन्होंने कहा, ‘आपको सड़क पर मदद मांग रहे लोगों की सहायता करनी होगी।’ उन्होंने कहा, ‘विरोध-प्रदर्शन और बदलाव की कवायद केवल मेरी दोस्त के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी होना चाहिए।’
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा समिति से वह चाहते हैं कि वह महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर करने और शिकायतकर्ता के लिए आसान कानून बनाने के लिए उपाय सुझाए। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ढेर सारे कानून हैं लेकिन आम जनता पुलिस के पास जाने से डरती है क्योंकि उसे भय है कि पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज करेगी अथवा नहीं। आप एक मसले के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह फास्ट ट्रैक कोर्ट हर मामले के लिए क्यों नहीं।’
पीड़िता के दोस्त ने खुलासा किया, ‘मेरे इलाज के बारे में जानने के लिए सरकार की तरफ से किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया। मैं अपने इलाज का खर्च स्वयं उठा रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का इलाज यदि अच्छे अस्पताल में शुरू किया गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती।’ 
बता दें कि गैंगरेप पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में किया गया था। इसके बाद उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया। पीड़िता के दोस्त ने यह भी बताया कि पुलिस के कुछ अधिकारी ऐसे भी थे जो यह चाहते थे कि वह यह कहें कि पुलिस मामले में अच्छा काम कर रही है। 
उन्होंने बताया, ‘पुलिस अपना काम करने का श्रेय क्यों लेना चाहती थी? सभी लोग यदि अपना काम अच्छी तरह करते तो इस मामले में कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती।’ पीड़िता के दोस्त ने कहा, ‘हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है। मेरे परिवार में यदि वकील नहीं होते तो मैं इस मामले में अपनी लड़ाई जारी नहीं रख पाता।’
उन्होंने कहा, ‘मैं चार दिनों तक पुलिस स्टेशन में रहा, जबकि मुझे इसकी जगह अस्पताल में होना चाहिए था। मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मामले में दिल्ली पुलिस को स्वयं आकलन करना चाहिए कि उसने अच्छा काम किया है अथवा नहीं।’
उन्होंने  कहा, ‘यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं तो उसकी मदद कीजिए। उस रात किसी एक व्यक्ति ने यदि मेरी मदद की होती तो आपके सामने कुछ और तस्वीर होतीं। मेट्रो स्टेशन बंद करने और लोगों को अपनी बात कहने से रोकने की कोई जरूरत नहीं है। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जिसमें लोगों का विश्वास कायम रहे।’
उन्होंने बताया, ‘हादसे की रात मैं अपनी दोस्त को छोड़कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा। ऐसी घड़ी में यहां तक कि जानवर भी अपने साथी को छोड़कर नहीं भांगेंगे। मुझे कोई अफसोस नहीं है। लेकिन मेरी इच्छा है कि शायद उसकी मदद के लिए मैं कुछ कर पाया होता। कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने ऑटो क्यों नहीं किया, क्यों अपनी दोस्त को उस बस तक ले गया।’

शनिवार, जनवरी 05, 2013

किसी की नज़र न लगे

तेरी आशिकी का मिजाज़
मुझे क़ातिलाना लगे
जो बुरा न माने तू
कुछ अदाएँ चुरालूं तुझसे
आलम दिल का ये है अब
न जाने क्यों हर बेगाना
मुझे दीवाना लगे

तेरी नज़रों में बहता सागर
मुझे मयखाना लगे
जो बुरा न माने तू
कुछ जाम चुरालूं इनसे
आलम नज़रों का ये है अब
न जाने क्यों सियाह रात
तेरा काजल लगे

अब और क्या कहे
'निर्जन' तुझसे
बस इतनी दुआ है रब से
मेरे इन एहसासों को
किसी की नज़र न लगे

सोच

जागते बीत गयी ज़िन्दगी यूँ ही 
नज़रे गाफिल हैं ख्वाबों से अब तो 
नींद तो अब क्या ही आएगी 'निर्जन'
मौत आएगी तब सो लेंगे ज़रा...

गुरुवार, जनवरी 03, 2013

पराजय, नुकसान, असफलता, द्वेष, इर्ष्या के लक्षण

वो सर्वप्रथम स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है | आप भूल जाते हैं आप क्या कर रहे थे, क्या किया था तथा क्या करने वाले थे | विचार शीघ्रगामी तरीके से मस्तिष्क छोड़ने लगते हैं जब तक खालीपन की प्रतिध्वनि सुनाई नहीं देने लगती | फिर सपने | फिर विलम्ब, सम्मिश्रण, प्रतिगम - परिवर्तन | फिर अनुभव | फिर भाषा | फिर सन्तुलन | और इसके पश्चात आपकी मृत्यु |

आपका मस्तिष्क कुतूहलपूर्ण ढंगे से जल्दी जल्दी आपको विचलित करेगा | अलगाव की भावना सामान्यतः प्रारम्भिक प्रतीक है: आपने अपने आप को बिसूरना प्रारंभ कर दिया है | जैसे जैसे मर्ज़ अग्रगमन करता है, आप नुक़सान करने लगेंगे और पराजित होने लगेंगे | आप मुलाक़ात और मेल मिलाप में असफल होने लगेंगे जो आपकी ज़िन्दगी की तरक्क़ी में अहमियत रखती हैं | आपक निजी जीवन अस्त व्यस्त होने लगेगा | आपका मंजन आपके घर की चाबी और चाबियाँ आपकी बीवी और बीवी आपकी दुश्मन और दुश्मन आपके माता पिता बन जायेंगे |

इस परिस्थिति की सम्पूर्णता एक अनाम वियोग के इन्द्रियज्ञान से अधिकृत होगी | आप संभवतः समझेंगे और प्रतीत होगा जैसे आप भूतग्रस्त, आत्मसात्, अपहृत, मृत, बदले हुए इंसान हैं | आपके ज़िन्दगी के ज़ायके पुनर्भिविन्यासित होंगे | आप नई उत्कट इच्छाओं, अधिहृषता, अंधभक्ति की उधारना करेंगे | इसी समय आपकी अरुचि विसर्जित होने लगेगी | समस्त संसार से विच्छेद होने लागेगा | आपके विचार स्वयं प्रभावशून्य होते प्रतीत होंगे |

प्रारंभिक आसार अहानिकर होंगे; सामान्य परिणाम जैसे तनाव और हार्मोनल असंतुलन: हलकी अन्यमनस्कता, एकाग्रता में कठिनाई, स्तब्ध भावनाएं, कुत्सित स्मृति | लपस के लिए आकस्मिक उत्तेजना | काल्पनिक विचारधारा का सत्याभास होना | ख्वाबों का अत्यंत आक्रामक होना और सपनो को स्मरणशक्ति द्वारा याद करने में क्षीर्ण होना | अनिश्चितता के भाव द्वारा अनुसरण अन्यथा प्रत्यक्ष वस्तुएं के लिए जैसे स्पष्ट सरूपता | संदेह, सामान्य स्तिथि में सभी वस्तुओं पर |

सनकीपन - ज़बर्दस्त प्रवृत्ति उत्पन्न होना | विश्वास, क्रियापद्धति तथा अन्य ज्ञानरहित आचरण - जिसमें बढ़ी हुई आध्यात्मिकता - असामान्य नहीं है | संभवतः आप अंतर्निहित दिमाग़ी संवेदना से त्रस्त - खाना, पीना, सोना, करना, धोना सभी निष्फल होंगे |

आप प्रायः तुच्छ तथा निरर्थक वस्तुओं से, सम्भावित वस्तुओं से और पूर्वकालिक वस्तुओं से भयभीत होंने लगेंगे | आपके विचार जो अपने दिमाग में दौड़ रहे होंगे - ऐसे प्रतीत होंगे जैसे किसी बंद परिपथ पर रफ़्तार से दौड़ रहे हों | और समय के साथ वो विचार अस्पष्ट, अस्पृश्य और सहभागी करने योग्य नहीं रहेंगे | आपकी चित्त वृत्ति का प्रकृति प्रत्यक्षीकरण का भी यही हाल होगा जब तक वो गूढ़ नहीं होते और फिर बाद मे वह धुंधले पड़ने लग जायेंगे |

ध्यान केन्द्रित करने, तर्क सिद्ध निष्कर्ष निकलने, संचारण करने, जानकारी ग्रहण करने में कठिनाई उत्पन्न होगी | दूसरों के सुझाव, वार्तालाप, व्याख्यान सभी व्यर्थ लगेंगे | आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा | आपकी सोचने, समझने, सुनने, देखने, जानने की क्षमता कुंद हो जाएगी | आप रंग भेद का फर्क भी अलग दिखने लगेगा | ये भी हो सकता है के इस स्तिथि में आप पढ़ना-लिखना, चेहरे पहचानना भूल जाएँ | यह भी मुमकिन है और सत्याभास है के आप मतिभ्रम हो जाएँ या आगे जाकर पूर्ण रूप से दृष्टिहीन हो जाएँ | आप दूसरों पर चढ़ने लगें, उन्हें गिराने लगें, ठोकरें खाने लगें तथा आखिर में पूर्ण रूप से ध्वस्त हो जाएँ |

अंत में वो घूम फिर कर आपकी याददाश्त में वापस आता है | आप भूल जाते हैं आप कौन हैं | आप किस तरह ज़िन्दगी जीते हैं | किस तरह कार्य करने में विश्वास रखते हैं | इस बीमारी के कुछ विशेष निर्धारित लक्षण होते हैं जो अच्छे से अच्छे व्यक्ति की स्मृति, प्रवीणता, कौशल, विवेक, निपुणता, विद्या, हुनर तथा गुण को नष्ट कर देते है | आपको जकड़ लेते हैं | यदि आप इसकी ओर ध्यानाकर्षित करते हैं, इसका इंतज़ार करते हैं तो समझिये आप ख़त्म और उसके आगे, उसके बाद कुछ नहीं है |

अतः इन लक्षणों से सदा ही बच कर जीवन जियें |

बुधवार, जनवरी 02, 2013

Last Day of 2012


Its very much like just another day in my daily routine life. Family, Kids, Computer and Sleep. Nothing new as such. Life is such a routine nowdays. My morning started with cup of tea with family members which is usually a daily event because without this the bowel movement seems impossible. After having that special sip of lovingly prepared Ramdev tea and playing with children and all the ho-halla of the morning events comes the time to freshen up  get relaxed. In this chilling winters of Delhi, its really next to impossible to survive without the hot water even for the daily motion activity I wish I can have it. So next comes the relaxation part when I came and sit in front of my laptop. My room, my bed, my quilt and my laptop with wifi internet. As soon as I lay there, start surfing my daily websites, checking out my mails and blogs and just as I open up the notepad to scribble a few lines there came the voice calling out my name.

"Beta! Aaj khane mein kya pasand karoge?" 

Gosh!! its Ma. She was asking what would i like to have in lunch. 

The moment i can give a respond to her question another bouncer came from her. 

"Idli bani hain. Wahi kha lena. Baache to wahi khayenge"

I generally don't like Rava Idlis very much so I said why not have some rice dosa or rice idli. She said ok but you have to go and buy some stuff from the market. I was feeling a bit lazy so requested my sister and wife to go and get the stuff from the market and specially the dosa batter and Nariyal for chutney from the Keralite shop. The went to the market and got the stuff. 

During all this time I was enjoying with my kids, teaching them how to do their holidays homework of hindi, english and maths. Followed up by the Art Session after all that work. Immediately, after getting over with art session, was the request to play Doraemon or Ramayan movie on television. I just tell you today's kids have a bag full of energy in them and they can never get tired. I was literally exhausted after all this session and went to rest.

To cut the long story short its that we all had dosa, kids had idli with the coconut chutney prepared by me and sambhar prepared by my wife. 

After all that long day with family came the night. I was busy fixing up my laptop operating system. Oops! Oh! Sorry! I forgot to tell this that I messed around with my laptop OS the other day, when I was trying to upgrade it and install Windows 8 64bit version over Windows 7 32bit but end up fucking up my laptop. 

So it's several minutes past midnight of December 31st 2012. Two and a half hours ago, my family had just eaten dinner. Mother had made her typical desi ghee dosa, sambar and coconut chutney. It was delicious. I ate a lot. Then the round of sweet dish chana chikki, gazak, moongphali chikki, til chikki and gazak biscuits the speciality of the day. Off course we all had the dinner together and enjoyed a lot. 

Like I said, I had eaten a lot, so I felt having a promenade around my house stairs. I immediately reentered my house stairs: the smell of gunpowder gets on my nerves. 

Its really been chilling winters going on so me and my family are not very observing of New Year local traditions. Meeting other people, going or visiting here and here. We just have our own way of enjoying by spending time together and chit chatting. Two hours past the former events, i was thinking to ignite a few fireworks with my kids. We have saved a few of phooljhadis from diwali to have a good time at new year midnight. 

Midnight arrived. Yes! its midnight! Unsurprisingly, the level of noise has risen. The fog has grown more thicker. Its really chilling as we go up the house terrace, from where we can see fireworks coming even from places far from the house. I don't just notice the fireworks; the sky is red: freaking blood red. I wanted to ignite the fireworks; but each time i see towards the sky i see fireworks soaring into the black and red dense night, leaving behind the grey cloud of gases and dust. Soon after, seening all that i dropped the idea of igniting the phooljhadi because of my kids health issues as its freezing cold. We all agreed to come down and close all the windows and doors becuse of the heavy noice and gunpowder released into the air. Later, I must have acknowledged that the smell of the gunpowder that i described earlier was trival; the smell of gunpowder pas midnight is mundane, at least comparatively. Because of winters the people down on the streets burn all sorts of things like paper, wood, plastic and what not. Imagine what's the smell of the air in a country where half the population is burning waste things at the same time. 

Also, I can hear the drunk people shouting Happy New Year and all sorts of other dramatics with local slang abuses, songs and slogans. People are enjoying it but I feel they are also crossing the limits. A few young guys, I saw from my terrace were drinking at the corner of the street and then throwing the empty bottles and breaking them. There was noise and shout everywhere. It was not really human like behaviour. 

Well all these described activities releases dangerous amount of gases into the air. Both fireworks and firecrackers and other noise makers usually contain gunpowder, which releases sulphur salts and carbondioxide into the air. Burning plastics, paint boxes, wood and papers provokes combustion of these things. Both fireworks and firecrackers also contribute to noise pollution for days: people like kids, old and medical patients have to suffer a lot. Color giving salts from fireworks are made of metals in cholorate or perchlorate form, resulting in a thicker airborn particle density. Fireworks worsen light pollution which has been inconspiciously detrimental to human health for decades.  I have not yet taken into account the danger posed by storage, commercial or domestic, of fireworks and firecrackers. Oops, I just did. also, let's take into account the amounts of paper, wood, plastics and whatever materials consumed for production of these novelties. Really, I could make an extensive list of inflammatory but sensible accusations at them, but i just wanted to be "brief".

Its about time I openly admit it: I hate fireworks, firecrackers and people who burn things in open in winters. Plus, I'm Hindustani, which makes my disdain for fireworks pretty much interesteing. I grew up in Delhi, which makes my disdain for these things as much peculiar. Firecrackers make a mess out of my house. I had to ask the sweeper in the morning to sweep it off. 

Frankly, its not like I have a grudge against holidays or celebrations: but only Diwali and New Year Celebrations. But, alas! no one can help to stop all this. After all this tamasha i came back to my room, after my kids are sleep and the whole house was quite at 3.00am in the morning i was sitting on my chair and fixing up my laptop operating system issues. Nothing special was there in the last day of the year too. It was just the same as on in the usual daily life. 

By the way, have a Blasting and Prosperous New Year. Ji Aaya Nu Nava Saal. Enjoy.

नव वर्ष की शुभकामनायें


नया साल

मतलब

नयी आकंशायें
उन सभी चीज़ों के लिए
जिनकी मैंने कामना की है
और जो मुझे चाहियें

अपने हर सपने
अपनी हर सुखद धारणा
को बिना डरे प्रवाहित करना

ज़िन्दगी को एक बार फिर से
नयी उमंगों से भर कर
जीने का मौका देना

उन सभी गलतियों को
फिर से न दोहराना
जो मैंने अपने जीवन के
अब तक के अनुभवों से
सीखी हैं

अपने समाज को
सुरक्षित महसूस करवाना
और किसी भी अनहोनी का
मिलकर सामना करना

थोडा और बुद्धिमान
थोडा और सुदृढ़
बनकर जीवन के
नए पथ पर चलना

नव वर्ष
आरम्भ हो चुका है
अब समय है
पीछे मुड़कर न देखने का
केवल आगे देखकर
विजय पथ पर बढ़ने का
इस सोच के साथ के
ये साल मेरी ज़िन्दगी में
सर्वश्रेष्ठ समय लेकर आएगा

मेरी ओर से
मेरे सब मित्रगण
मेरे सभी शत्रुगण
मेरे सभी सहयोगी
मेरे सभी असहयोगी
मेरे सभी परिचित
मेरे सभी अपरिचित
मेरे सभी ज्ञानियों
मेरे सभी अज्ञानीयों
मेरे सभी चाहनेवाले
मेरे सभी नाचाहनेवाले
मेरे सभी देशवासियों
मेरे सभी विदेशवासियों
को नव वर्ष की
शुभकामनायें

आप सभी का नया साल मंगलमय हो ...!

Happy New Year 2013

Yes welcoming another new year in the calendar of our life and saying goodbye to another one. But i don't think anyone has given it a thought from this angle as i see it. It's days like today that make me realize how little I am concerned with what year it happens to be. I see poems, stories, movies, art, paintings, articles, people, friends, enemies, websites, facebook statuses, listen to songs and so much more all about how 2013 is some amazing phenomenon, a new god or goddess to be ushered in and worshiped. But in reality, it's just a number, a human contrivance. An imaginary concept, an arbitrarily set number to an arbitrarily set date; 2013 is nothing more than a marker for human organization of time and history. And yet, we seem to view it as a natural occurrence, some great transformation of the earth and time itself, the chance to change ourselves as people. But the earth still spins as it did yesterday, the plants and creatures know that we're still in winter and that the snow won't stop falling for this imaginary phenomenon of ours; all while we're celebrating what we call a life-changing turnover in time.

रविवार, दिसंबर 30, 2012

पहचान

मिलेगी बहार तब मुझे न सुहायेगी
मिलेगी जब दिवाली तब मुझे न सुहायेगी
तब...
कर्म में लग जा
सुख समृद्धि तुझे
स्वयं मिल जायेगी
और
जब कोई न
रहेगा
जिंदगी तुझे सताएगी
आएगी याद
तब
याद ही
तुझे तड़पाएगी
आनसो की कीमत को
जान
अपने को
तू
खुद पहचान
नहीं तो, तेरी ही
आत्मा तुझे
सताएगी
जब बहार आएगी
तब वो
भी तुझे
शायद
नहीं सुहाएगी
जीवन का मोती
तू
क्यों सोकर खोता है
अपने को पहचान
ये मोती
अनमोल है
जिसको हम
किसी कीमत पर
न खोते न पाते हैं
दिवस गंवाकर
फिर क्या हो
जो रो रो कर
गाते हैं
किस्मत दगा
किया करती है
गाते हैं, बतलाते हैं
अपने को तू जान रे, बंदे
मोती को पहचान
अपने परखी
तू स्वयं ही मान ...

शनिवार, दिसंबर 29, 2012

काश! वो जी पाती

सुबह सवेरे उठकर रोज़मर्रा की दिनचर्या के बाद जब लैपटॉप खोल कर बैठा और फेसबुक खोला तो धक् रह गया | हर तरफ़ा एक ही खबर थी के 'रेस्ट इन पीस् दामिनी' | तब पता चला के वो लड़की जिसके साथ अत्याचार हुआ था, वो ब्रह्मलीन हो गई  | खून में पढ़ते ही उबाल आया | दिल तो किया के उन दरिंदों को जिन्होंने यह काम किया है वही सज़ा मिले जो इस फूल सी बच्ची को मिली है | सरे बाज़ार बीच चौराहे पर मुह कला कर के, नंगा कर के उनके पिछवाड़े में भी गरम गरम दहकता हुआ सरिया डलवा देना चाहियें जिससे उन्हें भी ये एहसास तो हो जाये के दर्द किस चिड़िया का नाम है | परन्तु फिर आक्रोश और गुस्सा दोनों हताशा और निराशा में तब्दील हो कर धीरे धीरे शांत होते चले गए | सोचा घर बैठ कर चुप चाप फेसबुक पर स्टेट्स अपडेट करने से या फिर आपस में बात करने से क्या होने वाला है ? यही सोचने लग गया | क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उसके लिए ? कुछ नहीं बस कुछ नहीं होगा अब | एक और केस बन कर रह जायेगा यह कांड भी | सरकारी दफ्तर में सालों दर सालों धुल में लिपटी पड़ी होगी उसकी फाइल और जो मुजरिम हैं वो मौज ले रहे होंगे |

फिर ख्यालों में रह रह कर एक और बात आती है के अब सिर्फ मौन रहकर या फिर मोम बत्तियाँ जलाकर, या मुह पर काली पत्तियां बांधकर, या सत्याग्रह करने से कुछ हस्सिल नहीं हो सकता | जिस तरह पिछले दिनों इंडिया गेट को जलियांवाला बाग बनाया गया उसको देखते तो आज क्रांति की ही ज़रूरत है | हाथ में मशाल लेकर आज ऐसी भ्रष्ट और नंगी सरकार को फूँक देने का समय है | जिस सरकार राज मैं  नारी का कोई अस्तित्व नहीं, कोई गरिमा नहीं, कोई सुरक्षा नहीं जबकि कहने को तो इस सरकार की मुखिया भी एक स्त्री ही है और फिर भी नारी के प्रति कोई पीड नहीं है उसके मन में | तो ऐसी सरकार का क्या अचार डालना है | गिरा दो ऐसी सरकार को, भस्म कर दो ऐसी दोगली मानसिकता वाली सत्ता की पुजारिन को |

बात भले ही ज़रा तीखी लग रही हो और काल्पनिक भी परन्तु आज भारत फिर से गुलामी की कगार पर है | किसी समय मैं ऐसा वीभत्स शासन मुग़ल और अंग्रेजो द्वारा किया गया था | वही समय आज फिर से लौट आया है | आज एक फिरंगी महिला अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए देश को दीमक की भांति धीरे धीरे अंदर से खोखला कर रही है और हम उससे बर्दाश्त कर रहे हैं और तमाशा भी देख रहे हैं और ताली भी बजा रहे हैं | यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से रोज कहीं नहीं कहीं खून की होली खेली जायेगी, अस्मतें लूटी जाएँगी और अराजकता का नंगा नाच होते देर नहीं लगेगी |

आज जागने का समय है | वो जिसे कहते थे दामिनी, वो जिसे कहते थे अमानत या निर्भया वो तो चली गई पर हमें जागने को कह गई | एक और लक्ष्मीबाई लड़ते लड़ते आज शहीद हो गई पर ज़ुल्म के आगे झुकी नहीं |  किसी भी स्त्री के साथ ऐसा दुर्व्यवहार न हो, कोई और दु:शासन पैदा ही न हो जो नारी का चीर हरण कर सके, उनके सम्मान को गरिमा को चोट पंहुचा सके | अब वक्त है जब की इन भेड़ की खाल में बैठे भेड़ियों को जड़ समेत उखाड फेंका जाये | खत्म कर देना चाहियें ऐसे नामर्द सोच वाले रंगे सियारों को, सरेआम सज़ा मिलनी चाहियें ऐसे सपोलों को जो अपना ही नहीं अपने माता पिता और देश दोनों का नाम खराब करते हैं |

मेरा ऐसा मानना है के यदि इंसान बेटे की कामना करता है, तो उससे जिंदगी के बुनयादी पाठ भी सिखाए | नारी जो एक माँ है, बेटी है, बहिन है, साथी है, दुर्गा सरस्वती का स्वरुप है  उसकी इज्ज़त करना भी सिखाए | उसे यह भी समझाना और एहसास करना चाहियें के समय आने पर नारी काली, कपाली और चंडिका का रूप भी धारण कर सकती है | अथ: उससे कमज़ोर समझने की गलती कभी न करे | और अपनी सोच पर काबू रखें |

बस ईश्वर से अब यही प्रार्थना है के उस बच्ची की आत्मा को शांति प्रदान तब हो जब उसके गुनाहगारों को उसी के जैसी सज़ा मिले और उसके परिवारजन को यह दुःख बर्दाश करने की शक्ति प्रदान करें और लड़ने की भी जिस से वो अपने इस अपमान के इन्साफ के लिए लड़ाई जारी रख सकें |

भगवान हिंदुस्तानियों को अब तो अक्ल दे और सोचने समझने की शक्ति दे | आँखें नम हैं और दिल में विद्रोह की भावनाओं के साथ यही विश्राम देता हूँ | बस यही आखरी भावना आती है मन मैं मेरे

काश! वो बच्ची बच जाती और ठीक होकर अपनी जिंदगी जी पाती....काश!

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

दहेज़

हमें मिटाना है इस देश से दहेज़ का नामो निशान
क्योंकि इससे होती है मानवता बदनाम
जब वधु सुसराल में आती है
शुरुवात में वो बहुत सुख पाती है
फिर जब शुरू होते हैं उसके दुःख के दिन
अपमान, यातनाएं, शोषण वो पाती है
रोज़मर्राह की जिंदगी उसकी नासूर बन जाती है
फिर जब जाती है पुलिस और कोर्ट में वो
मुकदमा दायर करती है
अमानवीय व्यव्हार का सामना
वो वहाँ भी करती है
डरकर और चालाकी से फिर
वही सुसराल वाले
प्यार से उससे बुलाते हैं
सर को भी सहलाते है
घर वापस भी बुलाते हैं
फिर सुसराल वापस जाकर वो
घुट घुट कर जीते हैं
कुछ दिन सुखमय बीतते हैं
फिर वही कलह को पीती है
मर पिटाई गाली गलोच में
हर पर कुढती रहती है
झेल दुःख के पल कुछ और समय
वो षड्यंत्र का शिकार हो जाती है
मूक बधिर कमज़ोर बकरी की भांति
कसाई के हाथों मर जाती है
या जला दी जाती है 

गुरुवार, दिसंबर 27, 2012

भारतीय नारी

ये कविता लिखी गई थी मेरे शुरुवाती शिक्षा के दिनों में | स्कूल मैगज़ीन के लिए मेरा छोटा सा प्रयास था यह उम्मीद भी नहीं थी के यह प्रकाशित होगी परन्तु करिश्मा हुआ और मेरी कविता को छपने का मान मिला | इसलिए आपके साथ आज इसे साँझा कर रहा हूँ |

मुझसे पुछा किसी ने
क्या बताओगे तुम मुझे
मेरी कविता का क्या है विस्तार ?
मेरी कविता का कौन है आधार ?
व्यक्तित्व सम्मोहक
स्वाभाव में शीतलता
अस्तित्व जिसका ममतामयी
छवि भावनात्मक
हृदय में केवल प्रेम, प्यार और दुलार है
काया जिसकी कोमल
एहसास जिसका निर्मल
अपने में परिपूर्ण
चाहत और स्नेह का
जिसके पास भंडार है
जो औरों को समर्पित
जिसके अंचल में बचपन
बाहों में सुन्दर जवानी
जीवन के अंतर्गत में
इन आँखों का मायावी संसार है
क्रोध में ज्वाला
आंसू में शक्ति है
गरिमा मन सम्मान बनाये रखने के लिए
जो हर एक क्षण तलवार है
संसार में इतनी उत्क्रष्ट छवि
जो सचमुच ही महान है
बलिदानों की मूरत है
सत्य का पर्याय है
वो सिर्फ भारतीय नारी है
ऐसा मेरा विचार है 

Cable Mania

This is one poem from a old poetry hamper of mine when i was in school. That time Cable TV was introduced in the Indian market and the year was 1991 or 1992 i hardly remember it now. But i was really happy to have cable t.v at my home. I wrote this poem that during that time only. I hope it will help you recall your past days when you also like to enjoy the cable t.v and the teleserials. 

Has Cable TV really brought 
Entertainment and Fun
Let's peep into a house
Where Cable TV has just come
Oh Dear! Everyone is irritated
At Papa's love for 'BBC'
Didi wants to watch 'Channel V'
Dadi wants to make Pakwans with 'Khana Khazana'
Oh my! This Cable TV has driven everyone 'Deewana'
Mamma is afraid to see horror show in 'Raat'
But now Bhaiya always says 'Banegi Apni Baat'
There are quarrels and shouts
And now there is no 'Shanti' in the house
Books are waiting in their stand
Poor remote control jumps from hand to hand 
Now who will decide, if 
This Cable TV is a boon or a curse on this land

What are you ?

On the walls of many American walls hangs a plaque commemorating the statement of the late President John F. Kennedy: 

"Ask not what your country can do for you, But ask what you can do for your country"

This statement appeared in an article written by Khalil Gibran in Arabic, over fifty years ago. The heading of this article can be translated either as " The New Deal" or "The New Frontier". Gibran's words when translated from Arabic into English are as follows: 

"Are you a politician asking - What your country can do for you or A zealous one asking What you can do for your country".

If you are the first, then you are a Parasite;
If you are the second, then you are an Oasis in Desert.