एक परित्यक्त और एकांत अजीरा
बन गया है बिस्तर मेरा
जो कभी क्रीड़ास्थल था
आज बन्दी गृह बन गया है मेरा
बाध्य हो गया हूँ मैं
तुम्हारे सान्निध्य से
या की तुम्हारे अभाव से
अब अकेला ही पसरा हूँ
अपने ख्यालों के साथ
संवेदिक स्मरणशक्ति
प्रयत्न करती है
तुम्हे फिर जिलाने को
अवयव उलझे,
कुंचित, आश्वासक हैं
शायद मैं भी धीरे धीरे
खो जाऊं निद्रा में
और खो जाऊं
महत्वाकांशी स्वप्न नगरी में
वापस तुम्हारे पास...
बन गया है बिस्तर मेरा
जो कभी क्रीड़ास्थल था
आज बन्दी गृह बन गया है मेरा
बाध्य हो गया हूँ मैं
तुम्हारे सान्निध्य से
या की तुम्हारे अभाव से
अब अकेला ही पसरा हूँ
अपने ख्यालों के साथ
संवेदिक स्मरणशक्ति
प्रयत्न करती है
तुम्हे फिर जिलाने को
अवयव उलझे,
कुंचित, आश्वासक हैं
शायद मैं भी धीरे धीरे
खो जाऊं निद्रा में
और खो जाऊं
महत्वाकांशी स्वप्न नगरी में
वापस तुम्हारे पास...