मानव जन्म
क्या
एक बुदबुदा है
और
उसका जीवन
एक कर्म
कर्म
अपूर्व कर्म
पर
जब यह कर्म
अधूरा रह जाता है
किसी के प्रति
तब
एक तड़प
मन मस्तिष्क
में लिए
वोह बुदबुदा
नया रूप लिए
फिर आता है
क्यों क्या
कर्म पूरा
करने को
या
किसी को
कर्म में लगाने को
नहीं जानता
जीवन
तू अपने नाम
में पूर्ण है
लेकिन
आत्मा में
पूर्ण नहीं
वोह
तुझसे
कहीं परे
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है
तुझ में
छिपी है
तुझे, शायद
यश देने को
उस की
आवाज़ सुन
उस की बात गुन
तभी तू
पूर्ण जीवन
कहलायेगा
कहलायेगा
पूर्ण पुरुष ||