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शनिवार, मई 09, 2015

उस रोज़












मुस्कुराते गुलाबों की महक वैसी ना होगी
तेरी शोख हंसी की खनक वैसी ना होगी

तितलियों जैसी शोख़ी तेरी वैसी ना होगी
ख्व़ाब लिए नैनों की चमक वैसी ना होगी

तेरी मीठी बोली की चहक वैसी ना होगी
अल्हड़ जवानी की छनक वैसी ना होगी

उस रोज़ तू होगी मगर ऐसी तो ना होगी

चांदी जैसे बालों से सर तेरा सजा होगा
दमकते चेहरे पर सिलवट का समां होगा

करारी इस बोली से गला तेरा रुंधा होगा
सूरज सी निगाहों पर चश्मे भी जमा होगा

तेज़ क़दमों में तेरे सुस्ती का आलम होगा
थक कर चूर पसीने में भीगा दामन होगा

उस रोज़ तू होगी मगर शायद ऐसी होगी

मगर उन सिलवटों में नूर तेरा यही होगा
ढ़लती आँखों में भी जवां इश्क यही होगा

सुस्त कदम सही मुझ तक ही आना होगा
गला रुंधा सही मुझे से ही बतियाना होगा

दिल से देखा सपना मेरा तब भी पूरा होगा
सांझ ढले मेरे हाथों में बस हाथ तेरा होगा

उस रोज़ भी तू ही होगी साथ तेरा मेरा होगा
तेरा और मेरा यह अब जन्मो का नाता होगा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, अप्रैल 25, 2015

"हम" - एक सूर्योदय

इस तेज़ी से विकसित होती संभ्रांत और शिष्टाचारी नस्ल में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिन्हें रोज़मर्रा की बोलचाल वाली ज़िन्दगी में यदा-कदा ही तवज्जो मिलती होगी। ऐसे असंख्य वचनों की श्रृंखला में कुछ ऐसे भी होते हैं जो दिल को छू जाते हैं और अपने वशीभूत कर मोहित कर लेते हैं। प्राय: उन्हें हम बातों में एक आदत के रूप में प्रयोग तो करते हैं परन्तु उनके कारण जीवन में उत्पन्न होने वाली सृजनात्मक शक्ति और उर्जा को कभी पहचान नहीं पाते। मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे शब्दों के महत्त्व को उजागर करना बेहद ज़रूरी है, उनमें से दो शब्द 'मैं' और 'तुम' हैं - जब ये दो एक साथ मिलते हैं तब एक एतिहासिक, ओजस्वी, विकासशील और अपनत्व से लबरेज़ शब्द की रचना होती है जिसे कहा जाता है - 'हम'...

"हम" वैसे हौले से बुदबुदाये 'अगर' से ज्यादा कुछ नहीं है। या फिर काले घने अंधकार में बने धुंए के छल्ले की तरह है। यह पानी के होंठ पर उफ़नते साबुन के बुलबुले की भाँती है
यह तार्रुफ़ के नक़ाब के ज़रिए से स्पर्श और अनुभव करती चमकदार चमचमाती आँखें और लजाती उँगलियाँ है। "हम" पास-पास पर अलग-अलग, मगर फिर भी एक साथ, कंधे से कन्धा मिलाकर दौड़ती अलैदा क़िताबों का, गलियारा है, जो कभी एक दुसरे को पुकारते नहीं हैं परन्तु फिर भी एक दूजे की गूँज की अनुगूंज के कंपन में अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। "हम" वो अजनबी है, जो अनजान होकर भी किसी के लिए अपरिचित नहीं है। एक परतदार कागज़ के टुकड़े पर अस्पष्ट लिखे वादे की तरह जिसे रात के अंधरे में दरवाज़े की दरार के बीचो-बीच धीरे से खिसका कर दुबका दिया गया है।

हमारे दरमियां आनंददायक चमकदार इन्द्रधनुषी संभावनाओं का सजीला संसार पनप रहा है, हमारी सजग आँखें स्पष्ट रूप से एक दुसरे के इर्द-गिर्द नृत्य का आनंद प्राप्त कर रही हैं। हमें एक ऐसे कमरे में धकेल दिया गया है जहाँ सूरज की किरणों की धुल छन-छन कर चहक रही है, होठ हथेलियों का रूप बना दुआ कर रहे हैं, उँगलियाँ सियाह काले गहरे तेल के छल्लों में फँसी हैं और धुंधले पड़ते गड्ढेदार गालों को तलाश रही हैं। शब्दों और शब्दांश के घुमावदार चक्रव्यू से भविष्य उधड़ रहा है, क्षणभर में सब कुछ बिख़र जाता है और हम सोचते हैं, हमें सब ज्ञात है कि हमारी ज़िन्दगी कहाँ, कब और कैसे आगे जाएगी।

हमारा पूरा वजूद एक परछाई के आगे छलांग लगाने की कोशिश में लगा है वो भी एक ऐसी शक्ति के साथ जो हर उस चीज़ को रौंदकर आगे बढ़ जाएगी जिसे कभी हमने सच समझा होगा। हमें अभी भी हमारे पैर नहीं मिले हैं लेकिन हम दोनों एक साथ उन्हें तलाश करने में जुटे हैं, लड़खड़ाते लुढ़कते कमज़ोर घुटनों और छिलते-छिपटे-चिरते टखनों के साथ ठोकरें खाते हुए, हँसते हुए उन्हें एक साथ खोज रहे हैं क्योंकि इसमें ना तो कुछ नया है और ना ही कुछ पुराना। हम तो बस अपने मिज़ाज, मनोभाव, धड़कन, नब्ज और नाड़ी के स्पंदन को दर्ज कर रहे हैं और उन्हें पूरी रात नाचने के लिए पुनरावृत्ति पर रख रहे हैं।

और अचानक, समस्त संसार में सबसे ख़ूबसूरत लफ्ज़ है 'यदि'... यकायक, सबसे आकर्षक, उत्कृष्ट, दिव्य, रमणीय शायद समूचे विश्वलोक में "हम" है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

शादी का चस्का



















शादी के पंडाल में, दी हमने एंट्री मार
देखा अपना यार तो, बैठा है पैर पसार
बैठा है पैर पसार, दुल्हन से नैन लड़ाए
साली देख क़रीब में, मंद मंद मुस्काए

गुम हो गई मुस्कान, ज्यूं साडू जी आए
बोले जीजा राम राम, कहाँ नज़र लगाए
कहाँ नज़र लगाए, सासू जी को बतलाऊं
फेरे पड़ने से पहले, नए रंग दिखलाऊं 

यार का उड़ गया रंग, मैंने ताड़के देखा
बन गए महाबली, पार कर लक्ष्मण रेखा
पार कर लक्ष्मण रेखा, पहुंचे यार के पास
मैं अब तेरे साथ हूँ, मत हो यार उदास

पाकर हमें समीप, हिम्मत दुल्हे ने जुटाई
फिर से नज़र उठा, साली की ओर लगाई
साली की ओर लगाई, साडू से बोला दूल्हा
बीवी संग साली आएगी, स्कीम मैं नहीं भूला

साडू से आँख मिलाई, कहा बुलाओ सासु
अभी हो जाए फैंसला, हम में कौन है धांसू
हममें कौन है धांसू, आस्तीन अपनी चढ़ाओ
सासुजी ही क्या, सभी घरवालों को ले आओ

देख साडू की रोती सूरत, ख़ूब हंसी उड़ाई
दुल्हन बैठी पास में, मन ही मन मुस्कुराई
मन ही मन मुस्कुराई, मान पति पर करती
जैसे को तैसा मिला, शान अब मेरी बढ़ती

मिला गामा पहलवान, जीजाजी खिसियाए
बात बदल बारातियों से, झेंप कर फ़रमाए
झेंप कर फ़रमाए, आइये जयमाला कर लें
सभी अपने हाथों को, इन फूलों से भर लें

पूर्ण हुई जय माला, दी सबने खूब बधाई
रिश्तेदारों ने फिर, खाने पर दौड़ लगाई
खाने पर दौड़ लगाई, हाय ये मारा-मारी
भोजन के सामने, भूल गए हर रिश्तेदारी

निपटा कर भोजन, सबने फिर दौड़ लगाई
फेरों की तैयारी में, भागी साली औ भौजाई
भागी साली औ भौजाई, दूल्हा-दुल्हन लाओ
खेलेंगे दूसरी पारी, टी ट्वेंटी का मैच बनाओ

प्रथम चरण में दूल्हा, द्वितीय में दुल्हन आगे
बेचारा ऐसे ही, उम्र भर बीवी के पीछे भागे
उम्र भर बीवी के पीछे भागे, ये नाच नचाए
हर बात पर देखो, ये नखरे वखरे दिखलाए

चूहे बिल्ली सा खेल, असल अब होगा चालू
कभी बनेगा ये शेर, कभी बन जायेगा कालू
कभी बन जायेगा कालू , इसकी शामत आई
जीवन के इस शो में, सदा रहेगी आगे भौजाई

हुआ शुरू शो असली, टॉम एंड जेरी का देखो
रंग-बिरंगा देख तमाशा, प्यार के सिक्के फेंको
प्यार के सिक्के फेंको, चस्का ऐसा 'निर्जन' यार
जो पाले वो तड़ीपार और जो ना पाले वो बेकार

--- तुषार रस्तोगी ---

सोमवार, अप्रैल 13, 2015

फेसबुकिया आशिक़

कल एक फेसबुक मित्र के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण मेरा दिल यह रचना लिखने के लिए विवश हो उठा। मैं पहले तो कुछ संजीदा और उपदेशात्मक बनाकर कहने की सोच रहा था क्योंकि मुद्दा बड़ा ही गंभीर था और नारी के मान-मर्यादा से भी जुड़ा था। परन्तु फिर मैंने इस बात को बड़े ही सहज रूप से प्रस्तुत करने का विचार बनाया क्योंकि जैसे मेरे ज़्यादातर मित्र मेरी आदत से वाकिफ़ हैं मुझे बातों को पेचीदा बनाकर पेश करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आता और ना ही बड़े-बड़े जटिल अल्फाज़ों और लफ़्ज़ों को पढ़ने का कोई शौक़ रहा है और ना ही दूसरों को पढ़ाने में कोई लुत्फ़ आता है तो सोचा इस बार भी अगर जूता मारना ही है तो क्यों ना हास्य की चाशनी में लपेटकर, हंसी की तश्तरी में सजाकर परोसा जाए। तो हाज़िर है जनाब-ए-आली आप सबके सामने एक आचार संबंधी, विचारशील मुद्दे पर, लिखी मेरी अपरिहासी और विचारवान रचना। आशा है मेरी कोशिश कुछ तो रंग लाएगी। एक नवचेतना का आगाज़ कर कुछ ख़ास खारिश-खुजली वाले वर्ग के लोगों में आत्मज्ञान का एक नया सूर्योदय कर पायेगी। शायद इसे पढ़कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाए, उनकी आत्मा चित्कार कर उन्हें धिक्कारे और वो सही राह पर आ जाएँ। ऐसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है :














देखो मित्रों, बला सरनाम
फेसबुक है, जिसका नाम
कायरों को, मिला वरदान
आते हैं सब वो, सीना तान

अकाउंट बना, मारें वो एंट्री
प्रोफाइल ऑफ़, हाई जेन्ट्री
छोड़-छाड़ के, अपना काम
चिपके हैं सब, सुबहों-शाम

देखी लड़की, दिल लो थाम
रिक्वेस्ट भेजो, करो सलाम
आशिक़ी का, नया आयाम
भेजो मेसेज, हो गया काम

छुरी बगल में, मुंह में राम
शोशेबाज़ी है, इनका काम
ओछापन कर, हैं बदनाम
आवारा छिछोरे, घसीटाराम

बनते हैं, दर्द-ए-दिल का बाम
पढ़ते हैं झूठा, इश्क़ कलाम 
इनबॉक्स में, करते हैं मैसेज
मंशा रख, क्लियर हो पैसेज

रेस्पोंस में जब, खाते ये जूती
नर्वसनेस में, बज जाती तूती
देख बिदकते, अपना अंजाम
पीठ दिखा, भग जाते ये आम

पोक की कोक, है इनको भाती
इनकी दुनिया से, भिन्न प्रजाति
बेहया बेशर्म, ये लिप्सा के मारे
सूतो इन्हें, दिखाओ दिन में तारे

'निर्जन' सुनो, हर ख़ास-ओ-आम
आरती उतार, दो नेग सरेआम
ब्लाक करो, औ बेलन लो हाथ
करो धुनाई, दो इनको सौगात

लातों के भूत, बातों से ना माने
तार दो बक्खर, लगो लतियाने
उधेड़ने पर ही, शायद ये माने
मजनू के भाई, लैला के दीवाने

--- तुषार रस्तोगी ---

शनिवार, मार्च 28, 2015

ये कहानी है













बारिश आग सी लग रही है क्या रवानी है
अनगिनत खुशियों से लिखी ये कहानी है

इस दिल में आज भी सुलगता है इश्क़ तेरा
हर एक सुकूं आरज़ू की वजह ये कहानी है

दिल दहकता है बारिश की हर बूँद के साथ
मेर परवान चढ़ते इश्क़ की भी ये कहानी है

तसल्ली होती है तेरे ख़याल से रूह को मेरी 
उफ़नती साँसों की रवानी की ये कहानी है

काश कोई पूछे उस दिल से जुड़ने की वजह
इश्क़ में फिसलते मेरे वजूद की ये कहानी है

माँगा है उसने मुझसे इस बेचैनी की सुराग़
इस राज़ को राज़ ना रखने की ये कहानी है

इन लबों पर सजी हैं दुआएं उसके ही लिए
हर पनपती ख्वाहिश की अब ये कहानी है

दो हाथ जब भी उठते हैं अब दुआ के लिए
'निर्जन' मैंने से माँगा है तुझे ये कहानी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 26, 2015

एक सवाल ?


















सांस लेना
प्रार्थना करना
बोलना
खाना
पीना
उठना
बैठना
हँसना
रोना
नाचना
गाना
पढ़ना
लिखना
लड़ना
बहस करना
खेलना
काम करना
कलाकारी
रंग भरना
प्यार करना
शोक करना
चोट लगना
खून बहना

जीना
मरना

यह समस्त प्राणीयों में
स्वाभाविक है

'निर्जन' प्रश्न सभी से यही कि
जाति,
रंग,
ऊँच,
नीच,
कामुकता,
धर्म,
लिंग,
के आधार पर
हम आपस में
एक दुसरे को
इतना अलग कैसे करते है ?

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 25, 2015

जीवन क्या है ?









जीवन, प्रभु की लिखी सुन्दर कविता है
जीवन, ख़ुद के लिए स्वयं लिखी गीता है

जीवन, गर्मी की रात में आती कपकपी है
जीवन, मुश्किलातों में मिलती थपथपी है

जीवन, कानों के बीच का अंतरिक्ष है
जीवन, गालों के बीच खिलता वृक्ष है

जीवन, गीत है जिसे हर कोई सुनता है
जीवन, सपना है जो हर कोई बुनता है

जीवन, मधुर यादों का बहता झरना है
जीवन, प्यारी बातों को जेब में भरना है

जीवन, अपनों से जी भर कर लड़ना है
जीवन, सही के लिए ग़लत से भिड़ना है

जीवन, झूठमूठ का रूठना - मानना है
जीवन, ज़्यादा सा खोना ज़रा सा पाना है

जीवन, स्थान है जिसे सिर्फ आप जानते हैं
जीवन, ज्ञान है जिसे सिर्फ आप मानते हैं

जीवन, बर्फ़ के बीच से उगती कुशा है
जीवन, बहकते पल में मिलती दिशा है

जीवन, प्रियेसी के हाथों का छूना है
जीवन, पान पर लगा कत्था चूना है

जीवन, रेत में पिघलता एक महल है
जीवन, इंसानी क़िताब की रहल है

जीवन, गले में अटकी एक मीठी हंसी है
जीवन, जान में लिपटी बड़ी लम्बी फंसी है

जीवन, दमदार हौंसलों से दौड़ती रवानी है
जीवन, मासूम बच्चों से बढ़ती कहानी है

जीवन, कभी ख़ामोश ना रहने वाली ख़ुशी है
जीवन, 'निर्जन' युद्ध है जहाँ योद्धा ही सुखी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, मार्च 22, 2015

मैं यहाँ नहीं हूँ


















 
मैं हूँ नारी
मैं हूँ प्रताड़ित

मैं हूँ मरती
मैं हूँ छिद्ती
मैं हूँ दबती
मैं हूँ जलती

मैं हूँ उबरती

मैं हूँ क्षत-विक्षत
मैं हूँ हत-आहत
मैं हूँ विकृत
मैं हूँ लटकती

मैं हूँ बलि

मैं हूँ पीड़ित
मैं हूँ भूतनी
मैं हूँ पिशाचनी
मैं हूँ डंकिनी

मैं हूँ फ़रिश्ता

मैं हूँ आहत
मैं हूँ दाग़ी
मैं हूँ व्यथित
मैं हूँ मुक्ति

मैं हूँ पवित्र

मैं हूँ मौन
मैं हूँ अंधी
मैं हूँ अँधेरा
मैं हूँ खंडित

मैं हूँ दृष्टि

मैं हूँ निर्योग्य
मैं हूँ असत्य
मैं हूँ अशिष्ट
मैं हूँ बधिर

मैं हूँ सत्य

मैं हूँ भक्षक
मैं हूँ लिप्सा*
मैं हूँ तृष्णा*
मैं हूँ ईर्ष्या

मैं हूँ तृप्ति

मैं हूँ कोप
मैं हूँ सुस्ती
मैं हूँ व्यर्थ
मैं हूँ बंजर

मैं हूँ प्रतिष्ठा

मैं हूँ निर्बल
मैं हूँ दुर्बल
मैं हूँ निष्प्राण
मैं हूँ उद्दंड

मैं हूँ प्रबल

मैं हूँ दोषी
मैं हूँ अप्रत्यक्ष*
मैं हूँ अक्षुत*
मैं हूँ विस्मृत

मैं हूँ प्रमुख

मैं हूँ नगण्य*
मैं हूँ कलह
मैं हूँ अदृश्य
मैं हूँ आदी*

मैं हूँ अनादी*

मैं हूँ अपराधी
मैं हूँ प्रतिवादी

वो हैं नियम
वो हैं अनुशासन
वो हैं समाज
वो हैं व्यवस्था
वो हैं अजगर

वो हैं शासक
वो हैं पंचायत
वो हैं साक्ष्य
वो हैं दर्शक
वो हैं निर्णायक

मैं हूँ आशा
मैं हूँ किरण
मैं हूँ जन्मना*
मैं हूँ शांति
मैं हूँ सानंदा*

'निर्जन'
मैं यहाँ नहीं हूँ...

लिप्सा - lust
तृष्णा - fantasy
अप्रत्यक्ष - unseen
अक्षुत - unheard
नगण्य - unimportant
आदी - used
अनादी - unending
जन्मना - germinate
सानंदा - pleasure, goddess lakshmi

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 18, 2015

ये

















ये पकड़ता है इंसान
ये पालता है आत्मा
ये लांघता है सीमा
ये सताता है कर्म

बर्फ़ सा ठंडा, अग्नि सा गर्म, श्याम-श्वेत एहसास,
अनोखा, अनदेखा, आज़ाद, अनियंत्रित

ये बहाता है आग
ये जनता है आकांक्षा
ये पालता है मरुस्थल
ये थामता है तूफां

घने सपनो के कोहरे में, चित्कार कर पुकारता
हर पल भेदता ह्रदय, फिर तोड़ता अपार

ये कुचलता है अविश्वास
ये निचोड़ता है बंधन
ये चौंकाता है जीवन
ये बांधता है आस

चीनी सा मीठा, नीम सा कड़वा
मिर्ची सा तीखा, नींबू सा खट्टा

ये रति देवी सा ललचाता है
ये वशीभूत कर तड़पाता है
ये बातों से बहलाता है
ये शिकार बना फंसाता है

नसों में रेंगता, ह्रदय में घूमता
स्वेच्छा को दबाता, भावों को सताता

ये गलाता है अहं
ये दफनाता है गुमान
ये चुभाता है चिंता
ये गिराता है झूठ

काम देव के धनुष-बाण सा
किसी भी पल चल जाता है

ये आत्मा गिरफ़्त में लेता है
ये काल से जीवन खींचता है
ये मध्यरात्री में सिसकता है
ये सूर्योदय में कूंजन करता है
ये महासागर शांत करता है
ये सुस्थिर लहर लाता है

गोधूलि बेला के आगमन पर
ख़ुशियाँ घर में भर लाता अपार

ये जमाता है विश्वास
ये रिझाता है एहसास
ये ढांकता है उम्मीद
ये छिपाता है जज़्बात

सौभाग्य नयन भिगाता, आंसू-मुस्कान के साथ
नित नव गीत सुनाता भूल पुरानी बात

ये पीछा करता है
ये ढूँढ ही लाता है
ये भीतर समाता है
ये गुदगुदाता है
ये ख़ुद से, 'निर्जन'
ख़ुद को मिलवाता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, मार्च 16, 2015

मांगता हूँ














हर सुबह
सोकर उठता हूँ मैं
करवट लेकर
तुम्हारा मुस्काता
चेहरा देखता हूँ

हर समय 
लब चूमता हूँ मैं
आँखें बंद कर 
तुम्हे अपने पास
बाहों में ढूँढता हूँ

हर पल
याद करता हूँ मैं
इस इश्क़ को
कितने जतन से
संजोये रखता हूँ

हर लम्हा
महसूस करता हूँ मैं
तुम्हारी आँखें को
भीतर गहराई तक
इरादे जानता हूँ

हर जन्म
चाहता हूँ मैं
सिमटी रहो तुम
बाहों में 'निर्जन'
रब से मांगता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 12, 2015

सुनो ना

सुनो ना, कुछ लम्हों के लिए ही सही, सुनो तो सही

अब एकाग्रचित्त होकर लम्बी सांस लो, "हाँ - लो तो सही, अगर सांस नहीं भी लेना चाह रही हो तब भी - लो ना - प्लीज़"। अपने कानो में गूंजती हुई अपने दिल की लरज़ती धड़कनो को ज़रा सुनो तो सही और अपनी नसों में मेरे इश्क़ के जुनूनी लावा को समुंदरी लहरों सा बहता हुआ महसूस करो तो सही। इस कायनात में पसरी ख़ामोशी के स्पर्श को अपनी कोमल देह को छूते हुए अनुभव करो तो सही।

अब ज़रा अपनी आँखें बंद करो और ह्रदय के अंतर तक फैली उस कालिमा का विश्लेषण तो करो। जब तलक तुम्हे अपने मन के श्याम छिद्र में कोई थामने लायक नज़र ना आए तब तक सिर्फ़ उस कालिख़ के आभास का रसपान करो। तब तक इंतज़ार करो जब तक तुम्हारी साँसे इस खेल में तुम्हारे हारने का इशारा नहीं करतीं और फिर धीरे से अपनी आँखों को खोलो,

अरे! और सुनो तो:

देखो, ये तुम हो...

अद्भुत, अनोखी, आश्चर्यजनक, प्रशंसनीय, चमत्कारिक। तुम्हारा होना मुझे सर्दी की उस लोरी की याद दिलाता है, जिस सिर्फ मेरे लिए बड़े ही रहस्मयता के साथ गाया गया था जिससे उसका आनंद कोई और ना उठा सके। पर शायद, ये शर्म की बात है क्योंकि तुम क़ुदरत के सबसे हसीन गीतों में से एक जो हो।

तुम प्रेम की आतिशबाज़ी की वो चमक हो जिससे मेरे जीवन का व्योम प्रकाशमय हो उठा है परन्तु इस अग्निक्रीड़ा के विपरीत तुम सदा मेरी दुनिया को देदीप्यमान, प्रकाशित, प्रज्वलित और उत्साहित करती रहना।

या फिर तुम जैसी हो, जो भी हो वैसी ही रहना, मेरे लिए इतना ही पर्याप्त से अधिक है।

मुझे इतना तो ज्ञात है कि इस संसार में जादू होता है क्योंकि तुम मेरे सामने हो। मनोहर, दिलकश, तिलिस्मी, आकर्षण, रूपवान, मायावी इंद्रजाल जिसने मुझे अपने वशीभूत कर लिया है।

मैं तुम्हे एक ऐसा इन्द्रधनुष उपहार स्वरुप देना चाहता हूं जो इस जीवन की हर मुश्किलातों को मिटा दे। मैं तुम्हे वो दर्पण भेंट करना चाहता हूँ जो तुम्हे दिखाए और जताए कि तुम कितनी निराली और अनोखी हो।

मैं इन महासागरों को सुखा देना चाहता हूँ, यदि यह तुम्हारे डर को मिटा सकता है, मैं उम्मीद, भरोसा, विश्वास, अरमान, आशा, आश्वसन का एक पुलिंदा बनाकर और धरती, अभ्र, पेड़ों, हवाओं, नदी, नालों, झरनों, पर मुस्कुराते चहरों का रंग लेप कर तुम्हे नज़राना स्वरुप पेश-ए-ख़िदमत करना चाहता हूँ यदि ये सब तुम्हारे मासूम से मुलायम गालों पर मुस्कान की चमचमाती लकीर बनाने में कामयाब हो सकें तो। मैं तुम्हारे पास निशा ज्योति की शक्ति भेजना चाहता हूँ जो सभी  कुस्वप्नों, विरूप प्राणीयों, दुःस्वप्नों और भयावह अनुभवों का आजीवन संहार कर सकें। मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारा हाथ थाम कर स्वछन्द उन्मुक्त परिमण्डल में उड़ान भरना चाहता हूँ यदि ऐसा करने से तुम्हारा अकेलापन दूर हो सके तो और इस द्रुतगति के अंत में तुम और मैं ज़मीन पर लेट कर, नीलाभ को तांकते सिर्फ मन्नत मांगने के लिए तमन्ना करते, सिर्फ उम्मीद के लिए उम्मीद करते, और इस सब के अंत में, मैं तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लिए शांति, आनंद, आराम, तृप्ति, संतुष्टि, ऋणमुक्ति हो तुम्हारे साथ संतोष की नींद सो सकूँ।

कभी-कभी, मैं अपने आप में एक ख़ाली मकां जैसा महसूस करता हूँ जो सांसारिक और भौतिकवादी झूठ का लबादा ओढ़े खड़ा है और असत्य के पीछे छिपा है जिसे देखने की गरज़ किसी को नहीं है, ना कोई इसके बारे में सोचता है और ना ही कोई पसंद करता है। इस घर की अस्तित्त्व रुपी खिड़कियाँ और दरवाज़े, दुनिया को दूर रखने के लिए हमेशा बंद ही रहती हैं,

लेकिन सुनो:

इस मकां को घर बनाने की सिर्फ जो एक चाबी मेरे पास है,

मैं पूरे दिल से, हक़ से, प्यार से, इत्मीनान से, भरोसे से, बेख़ौफ़ - वो "तुम्हे" ही देना चाहता हूँ।

और सुनो ध्यान दो:

"मुझे तुम पर खुद से ज़्यादा ऐतबार है, भरोसा है, यक़ीन खुद से ज़्यादा इतना है कि बिना कोई भी सवाल किये और आँखें मूँद कर तुम जहां कहोगी मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।"

बस और कुछ बचा नहीं है कहने को मेरी ज़िन्दगी में जो कुछ भी है वो यहीं इन्ही चंद लफ़्ज़ों में समेट कर तुम तक पहुंचा दिया है।

अच्छा हाँ सुनो तो:

मैं ये इकरार करता हूं और इज़हार करता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बेहद, बहुत, हद से ज्यादा प्यार करता हूँ।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, मार्च 08, 2015

स्त्री













स्त्री होना, एक सहज सा
अनुभव है
क्यों, क्या
क्या वो सब है
कुछ नहीं
नारी के रूप को
सुन, गुन
मैं संतुष्ट नहीं था
बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका
इनका स्वरुप भी
कितना विस्तृत
हो सकता, जितना
ब्रह्मांड, का होता है
जब जाना, नारी 
उस वट वृक्ष
को जन्म देती है
जिसकी पूजा
संसार करता है
जिसकी जड़
इतनी विशाल होती है
कि जब थका मुसाफ़िर
उसके तले
विश्राम करता है
तब कुछ क्षण बाद ही
वो पाता है
शांति का प्रसाद
सुखांत, देता हुआ
उसकी शाखा को पाता है
हँसते हुए, उसके पत्तों को
प्रणय स्वरुप, उसकी जड़ों को

पृथ्वी ( स्त्री ) तू धन्य है
प्रत्येक पीड़ा को हरने वाले
वृक्ष की जननी
तू धन्य ही धन्य है
क्योंकि ये शक्ति आकाश ( पुरुष )
पर भी नहीं है
निर्मल, कोमल, अप्रतिबंधित प्रेम
एक अनोखी शक्ति है
जो एक निर्जीव प्राणी में
जीवन की चेतना का
संचार करती है
एक अनोखी दृष्टि का
जिसमें  ईश्वर
स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है |

उसका ( वात्सल्य, श्रृंगार, मित्रता, काम, वफ़ा, प्रीती )
ईश्वरीय दर्शन
'निर्जन' अब हर घड़ी हर पल चाहूँगा
जिससे कभी मैं अपने आप को
नहीं भूल पाऊंगा
क्योंकि मैं भी
स्नेह से बंधा, प्रेम को समेटे
सुख की नींद सोना चाहता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, मार्च 07, 2015

होली हो ली













होली
रंग बिरंगी
हो ली
मन मस्तिष्क को
रंगती हुई, आई
जीवन की होली
एक दिन हुई
होली में जीवन
एक दिन मिला
खुश हो गए
माता-पिता
बंधू बांधव
पर आज पुराने
जीवन की होली
फिर से खेली
नए बंधू के साथ
मौज मस्ती
की छीटें
सिन्धु से, ये
तकदीर का
तमाशा है 'निर्जन'
एक नट की तरह

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

कलि
















सूर्य की पहली रूपहली किरण
जब इस धरातल पर पड़ी
दमक उठा पर्वतों पर उसका सोना
झरनों नदियों में चमकी चांदी की लड़ी
उसके हँसते ही अंकुर भी लहलहा उठे
कलियों की आँखों में आया पानी
कहता है चमन 'निर्जन'
ऐ मुझे रौशन करने वाले ख़ुदा
अब कोई माली ही मुझे मिटाएगा
हर फूल को चमन से जुदा कराएगा
यूं तो आसमां भी तेरी मुट्ठी में है
चांद तारे भी तेरी जागीर हैं
ऐ मेरे! परवर-दिगार-ए-आलम
क्या ?
एक फूल की इतनी ही उम्र लिखी है
खिलता है ज्यों ही घड़ी भर को वो
उजड़ने की उसकी वो आख़िरी घड़ी है
कोई वहशी किस पल आएगा
ये सोच
आज कलि बेहोश पड़ी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, फ़रवरी 22, 2015

होली की सौगात














इस होली मिलकर चलें
अपनाएं प्रेम की राह
जीवन का स्वागत करें
दिल की यही है चाह
ग़म हो जाए उड़न छू
उन्नति के भर लें रंग
जीवन को प्रेम प्रमाण दें
अपनों को लेकर संग
प्रभु को हम भूलें नहीं
रोज़ करें गुणगान
त्यागें आलस्य सभी 
नित्य दें कर्म पर ध्यान
बातें करें धर्म की सदा
करें अपनों का मान
प्रेम से जियें सभी तो
बढ़े आन और शान
छोड़ जात-पात का भेद
स्नेह बंधन में बांधें सबको
करें एक दाता की बात
जो जीवन देता है सबको
साथ मिल जुल कर बैठें
करें ख़ुशी से अठखेलियाँ
घर आंगन स्वर्ग बन जायेगा
एकता का मंदिर कहलायेगा
वृद्ध युवा बालक बंधू सभी
साथ मिलकर धूम मचाएं
हर एक कोने में हो शोर
खुशियों से घर जाए झूम
खिल जाए तिनका तिनका
जब प्रेम की बांधें मनका
जीवन कटे सन्यासी जैसा
सच्चाई से करो बरजोरी
जो रूठे हैं मना लें उनको
 
यही होती है सच्ची होली
क्षण भर में हल हो जायेंगे
सब गिले शिकवे माफ़
जीवन में रंग लाएगी 'निर्जन'
होली की यही सौगात

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 16, 2015

इश्क़ है उनसे











बिलकुल सच, दिल से कहा है
बेहद-बेशक़ इश्क़ है, उनसे मेरा
प्यार करता हूँ, बे-तहाशा उन्हें
रहता हूँ मैं सच, बेतक़ल्लुफ़
मौज़ूदगी में, उनकी सदा

आग़ाज़-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
दरमियां-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
अंजाम-ए-इश्क़ भी, उन्ही से मेरा
बाक़ी दिल में जो भी, बचा गया है
बख़ुदा वो सब भी, उन्ही से मेरा

हाथ थाम कर उनका मैं, मन में,
कलमा-ए-इश्क़, दोहराता रहा
गुनगुनाता रहा, इश्क़ में ऐसे
जिस तरह भंवरा, कलि से
बेख़ौफ़ इश्क़, फरमाता रहा

साथ जब भी, हम दो हैं होते
दिल ज़ोरों से, धड़कता है मेरा
इससे मुकम्मल, इश्क़ क्या होगा ?
पेट दुखता है, हंस-हंस कर
वजूद तरो-ताज़ा, हो जाता है मेरा

आवाज़ उनकी, अब ना सुनूं तो
'निर्जन' दिन मेरा, ढ़लता नही
उनसे है, रूह्दारी, इश्क़िया ख़ुमारी
बेक़रारी, कलमकारी की बीमारी
उनके बिन, जीवन मेरा चलता नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, फ़रवरी 14, 2015

मुझे इश्क़ है, तुम से















मुझे बेपनाह इश्क़ है, तुम से
मुझे सरोकार है बस, तुम से

मुझे इश्क़ है तेरी मीठी, बातों से
मुझे इश्क़ है तेरे कोमल, स्पर्श से

मुझे इश्क़ है तेरी मधुर, मुस्कान से 
मुझे इश्क़ है तेरे विचारमग्न, ह्रदय से

मुझे इश्क़ है तेरी असीमित, ख़ुशी से
मुझे इश्क़ है तेरे जीवन में, रूचि से

मुझे इश्क़ है तेरी पाक़, रूह से
मुझे इश्क़ है तेरे हर, कतरा-ए-लहू से

मुझे इश्क़ है तेरे, इश्क़-ए-जुनूं से
मुझे इश्क़ रहेगा तेरे, वफ़ा-ए-सुकूं से

मुझे इश्क़ है पूरे दिल से, तुम से
मुझे इश्क़ है हद-ए-दीवानगी तक, तुम से

मुझे इश्क़ है आग़ाज़ से, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा अंजाम तक, तुम से

मैं तेरे साथ हूँ हर पल, हर लम्हा
है अनंतकाल दूर अब, एक कदम से

मेरा जज़्बा-ए-इश्क़, बढ़ रहा है 
दिन-रात हैं मेरे, अब तुम से

तुम्हारे इश्क़ का यह, ख़ज़ाना
संजोता है 'निर्जन' आत्मा से, मन से

मेरी चाहतों में अरमां, हैं कितने
जताता रहूँगा यूँ ही मैं, तुम से

इतना ही कहूँगा अब मैं, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा सदा ही, तुम से

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, फ़रवरी 12, 2015

तेरी आँखें













बद्र-ए-बहार से सुर्ख तेरे चेहरे पर
बादः सी नशीली क़ातिलाना तेरी आँखें

मदहोश मदमस्त सूफ़ियाना नशीली
'अत्फ़-ओ-लुत्फ़ से भरी तेरी आँखें

वो पलकें उठें तो दीवाना कर दें
वो पलकें गिरें तो मस्ताना कर दें

मैं इनके करम का तालिब हूँ
मेरी तो हुब्ब-ए-वस्ल हैं तेरी आँखें

वो तड़पाती तरसाती आवारा बनाती हैं
करें कुछ तो ख़याल मेरा तेरी आँखें

हैं जीने-मरने का सबब मेरे
यह रूह-ए-घरक तेरी आँखें

आरा'इश पलकें आब-ए-आ'इना हैं
खुदा का कमाल-ओ-जमाल हैं तेरी आँखें

अक़ीदा-ए-तअश्शुक हैं अबसार तेरे
हैं काबिल-ए-परस्तिश तेरी आँखें

आशिक बहुत क़त्ल हुए होंगे 'निर्जन'
गुल-ए-हुस्न ज़रा अब संभाल तेरी आँखें

बद्र-ए-बहार - full moon glory, beauty & delight
बादः - wine & spirits
'अत्फ़ - kindness, affection
तालिब - seeker
हुब्ब - desire
वस्ल - union, meeting
रूह - spirit
घरक - drowning
आरा'इश - decorating, adoring, beauty
आब-ए-आ'इना - polish of a mirror
अक़ीदा - religion
तअश्शुक - love, affection
अबसार - eyes
परस्तिश - offering prayer
गुल - rose
हुस्न - beauty and elegance


--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

सवाब-ए-इश्क़














अपने मुस्तकबिल में चाहता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

इश्क़ से लबरेज़ दिल को मेरे
वो शान-ए-हाल मिल जाए

उनकी मदहोश आंखों में
मेरा खोया ख़्वाब मिल जाए

गुज़रते हुए लम्हातों में
इंतज़ार-ए-सौगात मिल जाए

सरगर्म मोहब्बत को मेरी
ख़ुशनुमा एहसास मिल जाए

अछाईयां जो हैं दामन में मेरे 
उनका वो कारदार मिल जाए

आरज़ुओं से तरसती नज़रों को
वो गुल-ए-गुलज़ार मिल जाए

जो हैं ज़िन्दगी से ज्यादा अज़ीज़
वो यार-प्यार-दिलदार मिल जाए

अपने मुस्तकबिल में ढूँढता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

जान-ए-इस्तिक्बाल - Life of our future
सवाब - Blessing
शान-ए-हाल - Dignity of our present
सरगर्म - Diligent
कारदार - Manager


--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जनवरी 25, 2015

ज़िक्र-ए-इश्क़














गुफ़्तगू-ए-इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम समझते ही रह गए उन्हें ख़यालों की तरह

लोग करते रहे ज़िक्र-ए-जुनूं दीवानों की तरह
अरमां जब टूट गए थे मय के प्यालों की तरह

फ़लसफ़ा-ए-इश्क़ उम्मीद है बारिशों की तरह
दिल जो भी भीगा रोशन रहा उजालों की तरह

अंजाम-ए-मोहब्बत जागा फिर वफ़ा की तरह
वक़्त ने पेश किया हमको मिलासलों की तरह

ज़िक्र-ए-इश्क़ जब होगा वां बहारों की तरह
याद आएगा 'निर्जन' उन्हें हवालों की तरह

वां - वहां

--- तुषार राज रस्तोगी ---