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शनिवार, अप्रैल 20, 2013

बदल रहा है

















दुनिया बदल रही है
ज़माना बदल रहा है
इंसानी फितरत का
फ़साना बदल रहा है

भूख बदल रही है
भोजन बदल रहा है
विकृत हाथों का
निशाना बदल रहा है

आचार बदल रहा है
विचार बदल रहा है
भेड़िये दरिंदों सा
किरदार बदल रहा है

सलीका बदल रहा है
तरीका बदल रहा है
विकृत यौनइच्छा का
पैमाना बदल रहा है

बीवी बदल रहा है
बेटी बदल रहा है
हैवानी हदों का
जुर्माना बदल रहा है

दिल्ली बदल रही  है
दिल वाला बदल रहा है
वीभत्स कुकृत्यों से
दिल्लीनामा बदल रहा है

लिखना बदल रहा है
सुनाना बदल रहा है
'निर्जन' फरमाने को
अफसाना बदल रहा है

ऐ मुर्दों अब तो जागो
कब्रों से उठ के आओ
अब सोते रहने का
मौसम बदल रहा है

मंगलवार, अप्रैल 16, 2013

बड़ी हुई बच्ची














कल कहीं पढ़ा था मैंने
कुछ लिखा किसी ने
ऐसा भी
बड़ा हुआ एक बच्चा
सच्ची बहुत बड़ा बच्चा
पाता है शादी कर के
पत्नी रूप में एक ग़च्चा
अम्मा बन सर बैठती है
झेलती है वो जीवन भर
नाज़ और नखरे अपने
अपना अस्तित्व
अरमान और सपने
स्वाह चूल्हे चौके में करती है
खुद सदा चुप रहकर वो
बच्चे के कसीदे पढ़ती है
पालती है वो मुन्ना को
लल्ला लल्ला करती है
'निर्जन' कहता
कलयुग में
क्या ?
सच्ची ऐसा होता है
उस अम्मा को सब ने झेला है
वो हिटलर की छाया रेखा है
वो भी बड़ी हुई बच्ची है
हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है
माता पिता परेशां होकर
जो मुसीबत दान में देते हैं
सुख से न जीने देती है
न ख़ुशी से मरने देती है
सुबह सवेरे उठते ही
ऍफ़ एम् चालू करती है
लेडी वैम्पायर बन कर वो
जीवन के सब रस पीती है
भूल कभी कुछ हो जाये
दहाड़ मार कर रोती है
चुप करने में उसको फिर
जेब भी ढीली होती है
चैन नहीं तब भी आता
सर आसमान पर लेती है
बहस अकड़ के करती वो
है नहीं किसी से डरती वो
गलती चाहे बच्ची की हो
फिर भी है अम्मा बनती वो
उस बच्ची रुपी अम्मा में
अहम किसी से कम नही
आये कोई झुकाए मुझको
ऐसा किसी में दम नही
योगदान जो जीवन में
वो बच्चे के देती है
सही समय आने पर वो
ब्याज समेत वसूल लेती है
कम ना समझें बच्ची को
ये शातिर ख़िलाड़ी होती है
हत्थे इसके जो चढ़ जाओ
ये पटक पटक कर धोती है
कल कहीं....

रविवार, अप्रैल 14, 2013

कौन गलत था कौन सही

उस दिन क्यों सोचा मैंने
शायद इश्क मैं करता हूँ
आह! पर क्या वह मेरे
जीवन की सबसे बड़ी गलती थी
कुछ उतावले, बचकाने जज़्बातों ने
दिखलाये ना जाने मुझे कितने अवसाद

अरसा गुज़र गया तब से
पर रञ्ज आज भी करता हूँ
उसकी कपटी आँखों को
मैं सोच रातों को जगता हूँ
शर्मिंदा खुद से रहता हूँ
अब खुद को कोसा करता हूँ

मुद्दत हुई बिछड़े हुए, पर
दिल आज भी डरता है
वो नाम सामने आते ही
एक सन्नाटे से भरता है
गलती तो सबसे होती है
पर क्या कोई ऐसा भी करता है

कौन ग़लत था कौन सही
यह सवाल आज तक है बना
जीवन में इसके रहते ही
है रोष सामने रहा तना
मैं जब भी कुछ बतलाऊंगा
वो सोचेगा झूठ कही

जब सही वक़्त अब आएगा
वो स्वयं उसे समझाएगा
तब वो खुद ही पहचानेगा
गलती किसकी थी मानेगा
बस कुछ बरस की देर रही
सब जानेंगे और मानेंगे
कौन गलत था कौन सही

बुधवार, अप्रैल 10, 2013

मेरा बचपन

जीवन की पथरीली
राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती
आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली
चुभन में घुटते घुटते
याद आती है
सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में
जकड़े जीवन में
याद आती है
उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन
सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन
अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन
साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में
हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी
हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी
हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी
कब वापस आएगा
सलोना बचपन
हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता
बचपन
कभी कभी नानी की कहानी
कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन\
था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है
बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ
छिप गया मेरा बचपन

सोमवार, अप्रैल 08, 2013

जय सियाराम

दिन ढल जाये, हाय
रात जो आये
शाम के आँचल में
तारे छिपाए
रात काली और अँधियारा गहराए
पूछूँ मैं खुद से, अब
कैसे जिया जाए
चाँद पास आए, और
मुझे समझाए
ज़िन्दगी के फलसफे
मुझे बतलाए
सुन बस दिल की
और दे अंजाम
बिगड़े हुए हैं जो
बनेंगे तेरे
जीवन के काम
हँस के गुज़ार तू
सुबह हो या शाम
ख़ुशी से तू मिल सबसे
ले प्रभु का नाम
ज़िन्दगी में पा जायेगा
सुख फिर तमाम
जीतेगा हर बाज़ी तू
कोई हो मैदान
डर ना किसी से अब
साथ हैं तेरे राम
बोलो सियावर रामचन्द्र
की जय!!!
बोलो बजरंगबली

की जय!!!

रविवार, अप्रैल 07, 2013

मलिन सोच

सत्य वचन सुनाता है समझे
जग बीती बताता है समझे
दशा भयी कितनो की है यह   
'निर्जन' कथा दिखता है समझे

राह खड़ी फुसलावत है समझे 
कामुकता से रिझावत है समझे 
मकड़जाल में माया के यह 
फंसने पर छटपटावत है समझे 

ताज़ा ताज़ा दिल हारा है समझे  
बकरा कितना प्यारा है समझे 
जो मलिन सोच से बंधता है यह
जीवन में खुद का मारा है समझे

शादी अब कारोबार है समझे
सौदों की भरमार है समझे
दिल के रिश्तों को भी अब यह 
मिला नया बाज़ार है समझे

बातों को खरताल है समझे
सोना चांदी माल है समझे
जीवन में आव़ाज़ाही को यह   
बच्चों का खिलवाड़ है समझे

आते ही रंग दिखलाती है समझे
चप्पल जूते चलवाती है समझे
मासूम सदा बनकर जो है यह
घर में कलह करवाती है समझे

पौ फटते फ़रमाइश है समझे
जेब की भी नुमाइश है समझे
खर्चें हरी पत्तियां जो है यह
मेहनत की कमाई है समझे


व्यापार चौपट करवाती है समझे
दर दर धक्के खिलवाती है समझे 
व्यक्तित्वहीन सोच जो है यह 
मनुष्य को दरिंदा बनवाती है समझे 

नित नए स्वांग रचाती है समझे
जीवन चलचित्र बनाती है समझे
मान अपमान के मोल को यह
तफ़री में उड़ाती है समझे  

आँख निकाल गुर्राती है समझे
शोले रोज़ बरसाती है समझे
जीवन पावन पुस्तक को यह
क्रोधाग्नि में जलाती है समझे

तंतर-मंतर करवाती है समझे
दिल में फाँस गड़वाती है समझे
संबंधो में परस्पर प्रेम को यह  
सूली पर चढ़वाती है समझे

संतान विच्छेद करवाती है समझे
उलटी पट्टी पढ़वाती है समझे
अनुचित शिक्षा में माहिर है यह 
बालक भविष्य डुबाती है समझे 

पिता-पुत्र लड़वाती है समझे 
बहन-भाई भिड़वाती है समझे 
बैठे दूर तमाशबीन बन यह  
रिश्तों में फूट डलवाती है समझे 

मान मर्यादा भूली है समझे
क्रियाचारित्र पर झूली है समझे
अपमानित अभद्र व्यवहार से यह
मुंह काला कर भूली है समझे

माल समेट भागे है समझे
पता कहीं ना पावे है समझे
झूठे तर्क दिखाकर कर यह  
कोर्ट केस कर जावे है समझे

नर्क भ्रमण करवाती है समझे
यमलोक पहुंचती है समझे
सज्जन पुरुषों की तो यह
अर्थी तक बंधवाती है समझे

शुभचिंतक यही सुझाता है समझे
मलिन विचारणा में कभी न उलझे 
जिस क्षण दिल में आ जाती है यह
ऊर्जा नष्ट कर के जाती है समझे

इससे अब सब बचकर रहना 
ज़िंदगी में साथ न इसका देना 
जो यह कहीं मिल जाये तुमको 
रसीद तमाचा रखकर देना

शनिवार, अप्रैल 06, 2013

चाँद तारे हो गए

रात आई, ख्व़ाब सारे, चाँद तारे हो गए
हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए

तुम हमेशा ही रहे, बेगुनाहों की फेहरिस्त में
तुम्हारे जो भी थे गुनाह, अब नाम हमारे हो गए

आज हम भी जुड़ गए, रोटी को निकली भीड़ में
किस्मत के मारे जो थे हम, सड़कों के मारे हो गए

बंट गया वजूद अपना, कितने ही रिश्तों में अब
तन एक ही रह गया है, दिल के टुकड़े हो गए

तैराए दुआओं के जहाज़, उम्मीदों के समंदर में
हम तो बस डूबे रहे, बाक़ी सब किनारा हो गए

कल किसी ने नाम लेकर, दिल से पुकारा था हमें
अब तक थे जो अजनबी, अब जानेजाना हो गए

कहते थे जब हम ये बातें, पगला बताते थे हमें
आज वे बतलाने वाले, खुद ही पगले हो गए

दिल के ये जज़्बात तुमको, नज़र करने थे हमें
गाफ़िल मोहब्बत में रहे, हम खुद नजराना हो गए

इश्क जो करते हो तुम, आज बतला दो हमें
अब तलक बस हम थे अपने, अब से तुम्हारे हो गए

नींद भी गायब है अपनी, चैन भी टोके हमें
अश्क जो रातों में बहे थे, जुल्फों में अटके रह गए

है अधूरी ये ग़ज़ल, मुकम्मल तुम करदो इसे
वो चंद जो आशार थे, बहर से भटके रह गए

रात आई, ख्व़ाब सारे, चाँद तारे हो गए
हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए

यह  ग़ज़ल शैली नामक कविता श्रद्धोन्मत्त के साथ मिलकर सम्पूर्ण की गई | 

शनिवार, मार्च 30, 2013

एकाकी












एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

गुरुवार, मार्च 14, 2013

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और
मेरी तन्हाई
बस यही है
अब मेरी अपनी
इस तन्हाई में
मैं कितने
मौसम सजाता हूँ
सब कुछ
भूल कर मैं
तुझसे मिलने
आता हूँ
तेरी यादें
तेरी बातें
तेरे सपने
सजाता हूँ
फिर जब
आँख खुलती है
मुस्करा कर
सर हिलाता हूँ
तेरे ख्वाबों को
दिल से
लगाकर मैं
मुड़कर तन्हाई
में अपनी वापस
लौट जाता हूँ
मैं इस तन्हाई से हूँ
और मेरा
जादू ये तन्हाई
बस अब एक
तनहा मैं
और फ़कत
मेरी ये तन्हाई.....

बुधवार, मार्च 13, 2013

समझो तब

जीवन पहेली है
ना समझो तब
जीवन कहानी है
समझो तब

जीवन अन्धकार है
ना समझो तब
जीवन दर्शन है
समझो तब

जीवन काँटा है
ना समझो तब
जीवन गुलदस्ता है
समझो तब

रिश्ते तमाशा हैं
ना समझो तब
रिश्ते ज़िम्मेदारी हैं
समझो तब

साथ दुखमय है
ना समझो तब
साथ सुखमय है
समझो तब

प्रेम मृगतृष्णा है
ना समझो तब
प्रेम अनुभूति है
समझो तब

मन निर्जीव है
ना समझो तब
मन सजीव है
समझो तब

विचार पीड़ा हैं
ना समझो तब
विचार क्रीडा हैं
समझो तब

बातें व्यर्थ हैं
ना समझो तब
बातें अर्थ हैं
समझो तब

मुलाक़ात बेमानी है
ना समझो तब
मुलाक़ात दीवानी है
समझो तब

चरित्र धोखा है
ना समझो तब
चरित्र भरोसा है
समझो तब

कसक सज़ा है
ना समझो तब
कसक मज़ा है
समझो तब

मनुष्य अज्ञानी है
ना समझो तब
मनुष्य ज्ञानी है
समझो तब

जीवन यापन अनुभव है
अलौकिक व पारलौकिक का
समझो तब, समझो तब, समझो तब...

मेरी मृगतृष्णा

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल की
जन्मो जन्मो से
तरसती है
मैं कौन हूँ
क्या हूँ
सब जानते हुए
हर जन्म में
नई मोह माया के
उधड़े बुने जाल में
फंसती है

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
किसी चाहत को
तड़पती है
कभी श्राप है
कभी आशीर्वाद है
नौका विहार की भांति
लहरों से मुझे
मिलाती है

गहन अन्धकार
दिव्य प्रकाश
हर जन्म में मुझे
धरोहर में मिलता है
मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
कुछ ना
पाने को की
मचलती है 

शनिवार, फ़रवरी 23, 2013

सजदे में उसके जाऊं क्यूँ

सजदे में उसके, मैं नहीं गया
बंदगी पे उसकी, मैं फ़िदा नहीं
न इबादत में, न जमात में
शिकवा भी तो, किया नहीं
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
यारों मैं हूँ, बेवफा सही
मुझको नहीं
फ़िदा'ऎ-दिल अज़ीज़
दीन-ओ-दिल, की मुझको
परवाह नहीं  
फिर उसके, बाब जाऊं क्यों
मुझे जिससे कोई, गिला नहीं
या ख़ुदा, मैं हूँ काफ़िर अगर
ये उसको मैं, बतलाऊं क्यूँ
'निर्जन' तेरे न होने से भी
किस के काम बंद हैं
अब रोये बार बार क्या
तू करता हाय हाय क्यों
बस अपने में जीता जा तू
और अपने में मरता जा तू
कर के याद किस बेवफा को तू
है अपना दिल, जलाये क्यों
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
सजदे में उसके, जाऊं क्यूँ

शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

धमाके

मदमस्त बसंत की एक शाम
गूँज सुनाई दी हाय राम
पहले हुआ धमाका आम
फिर जोर के फटा भड़ाम
धुएं का जब छटा बादल
तो बह निकला सारा काजल
लहू की मनका जो बहती
नीचे धरती को है छूती
कितने ही मूर्छित हुए
कितने हो गए मूक
कितने बधिर हो गए
कितने कर गए कूच
मृत्यु का हाहाकार मचा
यमराज ने कैसा वार रचा
हर एक धमाका था कैसा
आया पृथ्वी पर भूचाल जैसा
मानवता फिर से हार गई
भारत माँ शर्मसार हुई
कब तक रहेगा हाल यही
अब कौन करेगा अपने
देश के बिगड़ते हाल सही

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2013

बेहद ज़रूरी है

दर्द में मुस्कराना बेहद ज़रूरी है
दर्द में प्रीत निभाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में संभल जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में दिल लगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में समझ जगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में खुद से लड़ना बेहद ज़रूरी है
दर्द को काबू करना बेहद ज़रूरी है
दर्द को ना जताना बेहद ज़रूरी है
दर्द को पी जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को अपनाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को जीत जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द तो सिर्फ अपना है "निर्जन"
दर्द को दर्द में यह समझाना बेहद ज़रूरी है |

रविवार, फ़रवरी 10, 2013

दिल का विसर्जन हो गया

कुछ संजोये लम्हात मेरे
कुछ धुंधली सी तेरी यादें
कुछ पल साथ गुज़ारे जो
कुछ भूली बिसरी सी रातें
कुछ मीठी मीठी थीं बातें
कुछ गीत साथ में थे गाते
कुछ शिकवे थे हमने बाटें 
कुछ खटपट थीं तेरी मेरी
कुछ नाज़ुक थे अपने वादे
कुछ आँखों में गुज़रीं रातें 
कुछ नयनो की खुमारी वो
कुछ अदाएं मोहक प्यारी वो
कुछ सीने से गिरता आँचल
कुछ मदहोशी बिखरी हर पल
इन सबको साथ समेट के मैं
लहरों में स्वाह  कर आया हूँ
इस मौनी मावश को "निर्जन"
दिल का विसर्जन कर आया हूँ

गुरुवार, फ़रवरी 07, 2013

टूटा फूटा जीवन है

टूटा फूटा जीवन है
बोझिल है तन मेरा
जीवन एक अँधेरा है
कब पाऊंगा सवेरा
दशा बुरी है शवासन की
प्रभु ध्यान करो कुछ मेरा
दशा सुधारो इस दीनन की
कल्याण करो तुम मेरा
ध्यायुं रोज़ मनाऊं तुमको
सुनो अर्ज़ इस मन की
अब तो करो कृपा परमेश्वर
डगर सुझाओ जीवन की
टूटा फूटा जीवन है...

गुरुवार, जनवरी 31, 2013

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मुखौटा

मेरी तरफ़ा देख ज़रा
चेहरे पर एक मुखौटा है
मुखौटे का विश्वास न कर
मेरी बात को सुन ले ज़रा
मुझसे कोई सवाल न कर
मेरे झूठ का तू ऐतबार तो कर
जो लिखा है मैंने बस वही तू पढ़
मुझसे तू कोई सवाल न कर
बस शब्दों का ऐतबार तो कर

वो एक नज़र मेरे चेहरे पर
तूने जब जब भी है डाली
क्या पता कभी चलने दी तुझको 
दशा मेरे मन और जीवन की
जितनी हलचल, उतनी पीड़ा
दिल बिलकुल है खाली
सोच के तुझको भी दुःख होगा
हालत अपनी छुपा डाली
मौन सदा रहकर मैं बस
यही सोचता हर पल
शायद अब तो झाँकेगी तू
मेरे दिल के तल तक

मुझे अकेला छोड़ राह तूने भी बदली
जो था मेरा सच वो
तू कभी न समझी पगली
खुश रहे सदा तू
चहके, महेके, सूरज सी चमकाए
कोई अड़चन, कोई पीड़ा
अब निकट तेरे न आए

काश! किसी दिन वक़्त निकले
और मिले तू मुझसे
फिर कानो में धीरे से
ये पूछे तू मुझसे
काहे पहने हो मुखौटा ?
का चाहते जीवन से ?
तब आँखों को मूँद के अपनी
दिल को मैं खोलूँगा
बतलाऊंगा दर्द तुझे मैं
शब्दों में बोलूँगा

हाँ, माना के बहुत दुखद है
मुखौटे संग रहना
पर एही एक कला है बिटिया
जो के सिखलाती है
जियो सदा जीवन को हंस के
दुखी कभी न रहना
पड़े चाहे विपरीत परिस्थिति
में भी मर मर जीना

बुधवार, जनवरी 23, 2013

दुविधा

दुविधा कब तक है जीवन की
दुविधा कब से है यह मन की
दुविधा है ये जन्म जन्म की
आकर जाना, जाकर आना
घट-घट वासी और निरंतर
मिटा धारणा मन की
जब चाहे तब घर छोड़ना
जब चाहे तब मिल जाना
ऐसी दशा नहीं चाहियें
ऐसा मरण नहीं चाहियें
व्यथित दशा है इस मन की
प्यासी लालसा नहीं चाहियें
दे दो मुक्ति दीनन जी
मेरी दीनता तुम्हे पुकारे
दे दो मुक्ति इस मन की
दुविधा कब तक सुलझेगी
इस मन की !!!

एक कोना खाली दिल का मेरे












एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...

तेरी मंद मंद मुस्कानों पर
दिल मेरा आज भी मरता है
तेरी शोख अदाओं की 'चुहिया'
दिल आज भी तारीफ़ करता है

तेरे इतराने इठलाने पर
दिल बाग़ बाग़ हो उठता है
बुलबुल सी तेरी चहक को ही
सुनने को दिल तरसता है

दौड़ के आकर लगना गले
और कहना धीरे से 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को
और आँखों से शरारत करना
अब कब ये सपना सच होगा
इंतज़ार दीवाना करता है

चिपक के सीने से मेरे
तेरा सपनो में खो जाना
पर आज इन काली रातों में
दिल हर पल धड़कन गिनता है

तेरे नाज़ुक नाज़ुक हाथों से
गालों को सहलाना मेरे
तेरे छोटे छोटे हाथों को
फिर चूमने का दिल करता है
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया
दिल तुझसे मिलने को करता है

एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...