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शनिवार, जुलाई 06, 2013

ख़ुशी और सुख

















ख़ुशी और सुख के
अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको 
वहां ठिकाने 
जहाँ तेरा ही 
बस डेरा हो 
जहाँ आनंद ने 
घेरा हो 
तेरे उस 
अथाह समुन्द्र में
क्या मैं 
डूब ना जाऊंगा 
उबरने की 
कोई जगह ना हो 
बस मुस्कानों में 
डूबता जाऊंगा  
ले चल मुझे 
एक अनोखे जहाँ में 
कपट, लोभ, नफरत से दूर 
जहाँ तू भी अकेला है 
यहाँ मैं भी अकेला हूँ 
'निर्जन' मीत तू बन ऐसे 
जैसे सागर में फेना है 
ओ मेरे सुख
बस इस दिल में 
एक तेरा ही बसेरा है 
जीवन दुःख से मुक्त हो 
आत्मा बंधन से रिक्त हो 
एक ऐसे खुशहाल संसार में 
जहाँ सिर्फ खुशियों का डेरा हो 
ओ सुख के अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको वहां ठिकाने

शनिवार, जून 22, 2013

आवाज़ बुलंद अब करना है





















कमाल है धमाल है
लोकतंत्र बेमिसाल है
जनता का बुरा हाल है
ये सरकारी चाल है

भूखे गरीब मर रहे
धनवान तिजोरी भर रहे
महंगाई से लोग डर रहे
पप्पू मज़े हैं कर रहे

क़ुदरत भी आज ख़िलाफ़ है
कुकर्मों का अभिश्राप है
विपदा जो सर पर आई है
सरकार ही इसको लाई है

गिद्ध और बाज़ वो बन रहे
आसमान से दौरा कर रहे
लाशों के मंज़र देख रहे
चील सी आँखे सेंक रहे

प्रशासन बदहाल है
चांडालों की ढाल है
ज़ुल्मों से बेज़ार है
आम जनता ज़ार-ज़ार है

कुछ करोड़ हैं खर्च रहे
दिखावा चमचे कर रहे
मरने वाले हैं मर रहे
वो विदेशों में ऐश कर रहे

सवाल मेरा बस इतना है
घुट घुट कब तक मरना है?
कब तक हमको डरना है?
आज समय है हमको लड़ना है

आवाज़ बुलंद अब करना है...
आवाज़ बुलंद अब करना है...

गुरुवार, जून 13, 2013

चाटुकारी और चाटुकार
















चाटुकारी बड़ी महामारी
एक चाटुकार सौ पर भारी

अमानवता धर्म है इनका
थूक चाटना कर्म है इनका

तलवे चांटे, चलाए दिमाग
जय जय चापलूस विभाग

देशभक्त अब साइड हो गए
चाटुकार ही गाइड हो गए

पानी जैसा रक्त हो गया
नेता का गुर्गा भक्त हो गया

खुले कभी न इनकी पोल
कर लें चाहें कितने झोल

महा लिजलिजे लोभी आप
कर लो कुछ भी नहीं है पाप

महकमों में है आपका राज
चाहे होवे या ना होवे काज

चिकनी चुपड़ी से सब राज़ी हैं
चमचागिरी सर्वप्रिय बाज़ी है

चमचे आज होनहार हो गए
भारत की सरकार हो गए 

शनिवार, जून 08, 2013

घुंघरू













आज एक 
मूक घुंघरू भी 
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ 
वो कहता है 
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के 
लिए नहीं है 
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है 
जो मुझे जानने की 
इच्छा रखता है 
जो मुक्ता का 
स्वर जानता है 
दर्द पहचानता है 
उच्च स्वर का 
यन्त्र अचानक 
मौन कैसे हुआ 
जिसने संसार को 
अनेक स्वर दिए 
पर, बदले में 
मिला एक 
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ 
उसने अपनी शांति में 
ईश्वर को सुना 
बस अब तक तो 
वो बजता था 
तब, सब सुनते थे 
पर आज 
ईश्वर का स्वर स्वयं 
बजना है 
वो मूक बना 
उस स्वर का 
आनंद लेता है 
इस लिए ईश्वर को 
पाने वाला ही 'निर्जन'
उस घुंघरू की 
ताल और लय
सुन पायेगा

मंगलवार, जून 04, 2013

चाँद पूनम का

















चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा

रात चाँद की चांदनी में सिसकता बदल देखा
मैंने रात की आँखों से पिघलता काजल देखा

काजल सी रात में तेरी बातें करता रहा खुद से
गूंजते रहे अलफ़ाज़ तेरे जुदा हो गया मैं खुद से

घुमड़ आई यादों की घटा बदली बन दिल पर
भीगता रहा रात भर मैं अपने लब सिल कर

हौसला छीन लिया मुझसे ग़म-ए-जिंदगानी ने
ख़ाक कर दिया दिल जलाकर रात तूफानी ने

आबाद हो जायेगा 'निर्जन' फिर शायद मर कर
जो फकत देख लेती तू कजरारे नयनो से मुड़ के

चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा 

रविवार, मई 26, 2013

किसकी सज़ा है ?
















ऐ वादियों
मैं तुम से पूछता हूँ
झरनों में भी देखता हूँ
नदियों में ढूँढता हूँ
ये नयन न जाने
किसे खोजते हैं
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है
प्रभाकर जब आएगा
चमक उठेगा मन
डोल उठेगी आत्मा
पर्वतों पर कूदती
झरनों को लूटती
सरिता से फूटती
रौशनी समेटे
तब 'निर्जन'
दूंगा अंधियारे को सज़ा
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है

शनिवार, मई 11, 2013

धोखेबाज़




















यारों इस बरस
तो गर्मी खूब है
इसी लिए अपने
दिमागी की बत्ती
एकदम फ्यूज है
कशमकश में
अपनी ज़िन्दगी है
दिल का करें
वो भी कन्फूज है
कनेक्ट करने की
जो कोशिश की
हर कनेक्शन का
फ्यूज भी लूज़ है
आलम अब तो
ज़िन्दगी का जे है की
अपनों के साथ भी
डिस-कनेक्शन
हो रहा है
कहीं भी कुछ भी
क्लिक नहीं हो रहा है
जीवन के इस  मोड़ पर
'निर्जन' तुझको ही क्यों
कठिनाइयाँ मिल रही हैं
भाग्य, समय, मानव
सब एक साथ मिलकर
चौक्कों-छक्कों सा
तुझे दबादब धो रहे है
गॉड जी के यहाँ भी
हो रहा है इलेक्शन
अपने जो खास थे
दिल के पास थे
बचपन में गुज़ारे
लम्हे जिनके साथ थे
चल दिए वो भी
करवा कर सिलेक्शन
उम्र आने से पहले ही
भर आये हैं यह
नॉमिनेशन फार्म
ताख पर रख कर
ज़िन्दगी के सारे नॉर्म
हो लिए अचानक से
गो, वेंट, गॉन
मैं खड़ा देखता रहा
बस हाथ मलता रहा
जीवन के मोती रहे
हाथों से मेरे रेत की
भांति फिसलते
सोचता हूँ बस
बैठ कर अकेला
अपने ही ऐसे
धोखेबाज़
क्यों हैं निकलते ?

बुधवार, मई 08, 2013

कर्म की मिठास














पग घुंघरू बाँध
मीरा नाची थी
केशव
की याद में, या
फिर केशव
के कर्म
रंग, रूप, गुण
की गंध में
मुग्ध हुई
मन वीणा, की
झंकार पर
नाची थी
हाँ
कर्म की
झंकार ही ने
मीरा को
बाध्य किया
नाचने पर
कर्म की मिठास ही
जीवन को सतरंगी
बनाती है 

रविवार, अप्रैल 28, 2013

कली














एक कली खिली चमन में
बन गई थी वो फूल
बड़ा गर्व हुआ अपने में
सबको गई थी वो भूल
कहा चमन ने फिर उससे
यहाँ रहता स्थिर नहीं कोई
मत कर तू गुमान इतना
उसको बहुत समझाया
आज तो यौवन है पर
कल तू ठूंठ भी हो जाएगी
तब कोई तेरे दर्द में
सहानुभूति न दिखलायेगा
हंसकर मिलजुल कर मिल
फिर से सब में खो जा तू
अलग बनाया अस्तित्व जो तूने
अपने से भी तू जायेगी
कोई माली, राहगीर ही
तुझको तोड़ ले जायेगा
मिट जायेगा जीवन तेरा, फिर
अन्तकाल तक तू पछताएगी

गुरुवार, अप्रैल 25, 2013

क्या लिखूं क्यों लिखूं





















स्याह ज़िन्दगी मेरी, कलम-ए-दर्द से कहूँ
जो लिखूं तो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

सोच कर तो कभी, कुछ लिखता नहीं
वो लिखूं सो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

एक फ़क़त सोच पर, जोर चलता नहीं
हाँ लिखूं ना लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

ग़म-ए-ऐतबार को, खून-ए-रंज से कहूँ
दिल लिखूं जां लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

तेरी बेवफाई का, हर सबक मैं कहूँ
कब लिखूं अब लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

फ़नाह 'निर्जन' कभी, दुःख से होगा नहीं
जी लिखूं मर लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

कर्म और अकर्मण्यता














हे प्रभु! आपने तो
बचपन से ही
कर्म को प्रधानता दी
फिर यह मध्यकाल
आते-आते अकर्मण्यता
को क्यों बाँध लिया
अपने सर का
सेहरा बना कर,
बनाकर एक
अकमणयता की सेज
तुम्हारी ये निद्रा
तुम्हारे ही लिए नहीं
समस्त जन को
पीड़ा की सेज देगी
बैठा कर स्वजनों को
काँटों की सेज पर
पहना कर काँटों के
ताज को तुम ईशु
नहीं कहलाओगे
कहलाओगे सैय्याद
तुम अपनी निद्रा त्यागो
तुम कर्म की वो राह चुनो
जो पीडित स्वजनों को
रहत दे ऐसी राहत
जिसे सुनकर
मृत भी जी उठे

मंगलवार, अप्रैल 16, 2013

बड़ी हुई बच्ची














कल कहीं पढ़ा था मैंने
कुछ लिखा किसी ने
ऐसा भी
बड़ा हुआ एक बच्चा
सच्ची बहुत बड़ा बच्चा
पाता है शादी कर के
पत्नी रूप में एक ग़च्चा
अम्मा बन सर बैठती है
झेलती है वो जीवन भर
नाज़ और नखरे अपने
अपना अस्तित्व
अरमान और सपने
स्वाह चूल्हे चौके में करती है
खुद सदा चुप रहकर वो
बच्चे के कसीदे पढ़ती है
पालती है वो मुन्ना को
लल्ला लल्ला करती है
'निर्जन' कहता
कलयुग में
क्या ?
सच्ची ऐसा होता है
उस अम्मा को सब ने झेला है
वो हिटलर की छाया रेखा है
वो भी बड़ी हुई बच्ची है
हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है
माता पिता परेशां होकर
जो मुसीबत दान में देते हैं
सुख से न जीने देती है
न ख़ुशी से मरने देती है
सुबह सवेरे उठते ही
ऍफ़ एम् चालू करती है
लेडी वैम्पायर बन कर वो
जीवन के सब रस पीती है
भूल कभी कुछ हो जाये
दहाड़ मार कर रोती है
चुप करने में उसको फिर
जेब भी ढीली होती है
चैन नहीं तब भी आता
सर आसमान पर लेती है
बहस अकड़ के करती वो
है नहीं किसी से डरती वो
गलती चाहे बच्ची की हो
फिर भी है अम्मा बनती वो
उस बच्ची रुपी अम्मा में
अहम किसी से कम नही
आये कोई झुकाए मुझको
ऐसा किसी में दम नही
योगदान जो जीवन में
वो बच्चे के देती है
सही समय आने पर वो
ब्याज समेत वसूल लेती है
कम ना समझें बच्ची को
ये शातिर ख़िलाड़ी होती है
हत्थे इसके जो चढ़ जाओ
ये पटक पटक कर धोती है
कल कहीं....

ऐ बी सी डी - अमरीका में बिगड़ा कन्फ्यूज्ड देसी


कुछ हिन्दुस्तानी लोग जब अमरीका या किसी और देश चले जाते हैं और जब वहां से वापस आते हैं तो देखिये उनके तौर तरीको और रवैयों के अन्दाज़ | पेश करता हूँ..

Always says, “Bless you”, whenever someone sneezes.
कोई छींक मरेगा तो तुरंत कहेंगे, 'ब्लेस यू' |

US-returned people use the word “bucks” instead of “Rs.”
अमरीका से भारत लौटे लोग 'रूपये' नहीं कहते 'बक्स' कहना शुरू कर देते हैं |

Tries to use credit cards in a road side hotel.
हाईवे के ढाबे पर खाना खाने के बाद 'क्रेडिट कार्ड' से पेमेंट करेंगे |

Drinks and carries mineral water and always speaks of being health conscious.
मिनरल वाटर पीना शुरू कर देंगे, पूछने पर बहाना बताएँगे के पेट ख़राब हो जाता है, तबियत बिगड़ जाती है |

Sprays deodorant so that he doesn’t need to take bath.
डीओडरैनट इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे जिससे नहाना पड़े |

Sneezes and says ‘Excuse me’.
छींकेंगे और कहेंगे 'एक्सक्यूज़ मी'

Says “Hey” instead of “Hi”, ”Yoghurt” instead of “Curds”, ”Cab” instead of “Taxi”, “Trunk” of “Dicky” for a car trunk, ”Candy” instead of “Chocolate”,”Cookie” instead of “Biscuit” , ”got to go” instead of “Have to go”.
'हाई' को 'हे', 'दही' को 'योगर्ट', 'टैक्सी' को 'कैब', 'गाडी की डिक्की' को 'ट्रंक', 'चॉकलेट' को 'कैंडी', 'बिस्कुट' को 'कुकी', 'हैव टू गो' को 'गौट टू गो' बोलना शुरू कर देंगे |

Says “Oh” instead of “Zero”, (for 101, he will say One O One Instead of One Hundred One)
'जीरो' को '' कहना शुरू कर देंगे ( १०१ को 'एक सौ एक' की जगह 'वन वन' ) बोलेंगे |

Doesn’t forget to complain about the air pollution. Keeps complaining every time he steps out.
जब भी बहार जायेंगे हर बार हर जगह बार बार 'एयर पोल्यूशन' की बात करते नहीं थकेंगे |

Says all the distances in Miles (Not in Kilo Meters), and counts in Millions. (Not in Lakhs)
किलोमीटर भूल जायेगे मील में दूरी नापेंगे | लाख भूल जायेगे मिलियन में गिनेंगे |

Tries to figure all the prices in Dollars as far as possible (but deep inside multiplies by 44).
हर चीज़ के दाम डॉलर में लगायेंगे और अन्दर मन में उसे ५५ से गुणा करते रहेंगे |

Tries to see the % of fat on the cover of a milk pocket.
दूध की थैली के ऊपर सबसे पहले फैट परसेंटेज देखेंगे |

When he needs to say Z (zed), he never says Z (Zed), instead repeats “Zee” several times, and if the other person is unable to get it, then says X, Y Zee(but never says Zed)
'ज़ैड' को जान बूझ कर 'ज़ी' बोलेंगे | अगर कोई नहीं समझ पायेगा तो उससे एक्स, वाई ज़ी बोल कर बताएँगे पर 'ज़ैडनहीं बोलेंगे |

Writes the date in MM/DD/YYYY. On watching traditional DD/MM/YYYY, says “Oh! British Style!!!!”
तारीख़ को मंथ/डे/ईयर फॉर्मेट में लिखेंगे | अगर कहीं पुराना डे/मंथ/ईयर फॉर्मेट देख लेंगे तो कहेंगे, “ओह! ब्रिटिश स्टाइल!!!”

 Makes fun of Indian Standard Time and the Indian Road Conditions.
मौका मिलते ही इंडियन स्टैण्डर्ड टाइम और हिंदुस्तान की सड़कों का मजाक उड़ना शुरू कर देंगे |

Even after 2 months, complaints about “Jet Lag”.
आने के दो महीने बाद भी ‘जेटलैग’ से ग्रस्त रहेंगे |

Just to show off avoids eating spicy food.
दिखावे के लिए तीखा कहना खाने से परहेज़ करेंगे |

Tries to drink “Diet Coke”, instead of Normal Coke. Eats Pizza instead of Dosa.
‘नार्मल कोक’ की जगह ‘डाइट कोक’ पियेंगे | ‘डोसा’ की जगह ‘पिज़्ज़ा’ खायेंगे |

Tries to complain about anything in India as if he is experiencing it for the first time. Asks questions etc. about India as though its his first visit to India .
हिंदुस्तान की हर चीज़ के बारे में शिकायत करना शुरू कर देंगे जैसे परेशानी पहली दफा हो रही है | उट पटांग सवाल जवाब करने शुरू कर देंगे हिन्दुस्तान के बारे में जैसे पहली दफ़ा आये हों यहाँ |

Pronounces “schedule” as “skejule”, and “module” as “mojule”.
‘स्केड्यूल’ को ‘स्केज्यूल’ और ‘मोड्यूल’ को ‘मोज्यूल’ बोलना शुरू कर देंगे |

Looks suspiciously towards any Hotel/Dhaba food.
किसी भी होटल या ढाबे के खाने को शक की निगाहों से देखेंगे |

From the luggage bag, does not remove the stickers of the Airways by which he traveled back to India , even after 4 months of arrival.
लौटने के चार महीने बाद भी लगेज बैग से एयरवेज का स्टीकर नहीं छुटाएंगे जिससे भारत वापस आये हैं |

Takes the cabin luggage bag to short visits in India and tries to roll the bag on Indian Roads.
कैबिन लगेज को छोटी-मोटी यात्राओं पर चमकाने के लिए ले जायेंगे | हिन्दुस्तानी सड़कों पर बैग को रोल करके चलने लगेंगे |

Tries to begin any conversation with “In US ….” or “When I was in US…”
हर एक वार्तालाप शुरू करने से पहले कहेंगे, ‘जब मैं अमरीका में था...’ |

अब आप ही बताएं ऐसे कार्टूनों का क्या हो सकता है | यहाँ हिन्दुस्तान में अमरीकी आकर हिन्दुस्तानी सभ्यता और ज़बान सीख रहे हैं | और वहां कुछ अकलमंद लोग बाहरी फूहड़ता अपना कर अपने देश को नीचा दिखने में लगे हुए हैं | खुदा इन्हें अक्ल बक्शे |

रविवार, अप्रैल 14, 2013

क्या कहता

ख़ुदा जाने मैं क्या कहता, जो कहता मैं क्या कहता
सही के लिए क्या कहता, ग़लत के लिए क्या कहता

रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता
मिलते रहना ही क्या कहता, क्या है दिलमें क्या कहता

सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों हैं वीरां क्या कहता
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता

तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता

तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता

आखरी क़दम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिस्ती क्या कहता

लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता
हंसी मजाक जब क्या कहता, ह्रदय वेदना अब क्या कहता

तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता
कहता तो बस कहता रहता, ‘निर्जन’ दिल से दिल कहता

शुक्रिया तेरा

शुक्रिया तेरा
प्रत्येक जतन के लिए
हर पल सुनने के लिए
परवाह करने के लिए
प्यार करने के लिए
खुद को खुद की तरह
रखने के लिए

हैरान रह जाता हूँ मैं
कैसे रहती है तू
इतनी शांत
कहाँ से लाइ है
इतनी सहनशीलता
क्यों है तेरे पास
इतना धीरज

तू पास मेरे बैठ कर
बस सुनती रहती है
जब भी अनाड़ीपन से
मैं छलकाता हूँ दिल के
जज़्बात सामने तेरे और
मुस्कराती रहती है तू
आँख मूंदे मंद मंद

पर मैं भी
चाहता हूँ करूँ
तेरे लिए कुछ ऐसा ही
चल बता तू अपने डर
और बता दे जो भी
दिल में बसी हैं
चाहतें तेरी

वादा तो मैं करता नहीं
दे सकूँगा सब कुछ तुझे
आज, कल या जिंदगी भर
पर इतना कहूँगा बस तुझे
जब तक है जां में जां मेरे
कोशिश करूँगा खुश
रहे तू उम्र भर

शुक्रिया तेरा
सब कुछ है तू
मेरे लिए
शुक्रिया कहते
नहीं थकता है
'निर्जन' आज
बस तेरे लिए

कौन गलत था कौन सही

उस दिन क्यों सोचा मैंने
शायद इश्क मैं करता हूँ
आह! पर क्या वह मेरे
जीवन की सबसे बड़ी गलती थी
कुछ उतावले, बचकाने जज़्बातों ने
दिखलाये ना जाने मुझे कितने अवसाद

अरसा गुज़र गया तब से
पर रञ्ज आज भी करता हूँ
उसकी कपटी आँखों को
मैं सोच रातों को जगता हूँ
शर्मिंदा खुद से रहता हूँ
अब खुद को कोसा करता हूँ

मुद्दत हुई बिछड़े हुए, पर
दिल आज भी डरता है
वो नाम सामने आते ही
एक सन्नाटे से भरता है
गलती तो सबसे होती है
पर क्या कोई ऐसा भी करता है

कौन ग़लत था कौन सही
यह सवाल आज तक है बना
जीवन में इसके रहते ही
है रोष सामने रहा तना
मैं जब भी कुछ बतलाऊंगा
वो सोचेगा झूठ कही

जब सही वक़्त अब आएगा
वो स्वयं उसे समझाएगा
तब वो खुद ही पहचानेगा
गलती किसकी थी मानेगा
बस कुछ बरस की देर रही
सब जानेंगे और मानेंगे
कौन गलत था कौन सही

गुरुवार, अप्रैल 11, 2013

मत सोचा कर

फ़रहत शाहज़ाद साहब द्वारा लिखी उनकी कविता 'तनहा तनहा मत सोचा कर' को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ। क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं उनका या उनकी नज़्म का अपमान करने या दिल को ठेस पहुँचाने की गरज़ से यह हास्य कविता नहीं लिख रहा हूँ। सिर्फ़ मज़ाहिया तौर पर और हास्य व्यंग से लबरेज़ दिल की ख़ातिर ऐसा कर रहा हूँ।

अगड़म बगड़म मत सोचा कर
निपट जाएगा मत सोचा कर

औंगे पौंगे दोस्त बनाकर
काम आयेंगे मत सोचा कर

सपने कोरे देख देख कर
तर जायेगा मत सोचा कर

दिल लगा कर बंदी से तू
सुकूं पायेगा मत सोचा कर

सच्चा साथी किस्मत की बातें
करीना, कतरीना मत सोचा कर

इश्क विश्क में जीना मरना
धोखे खाकर मत सोचा कर

वो भी तुझसे प्यार करे है
इतना ऊंचा मत सोचा कर

ख़्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दौलत मत सोचा कर

तेरे अपने क्या बहुत बुरे हैं
बेवकूफ़ी ये मत सोचा कर

अपनी टांग फंसा कर तूने
पाया है क्या मत सोचा कर

शाम को लंबा हो जाता है
क्यूँ मेरा साया? मत सोचा कर

मीट किलो भर भी बहुत है
बकरा भैंसा मत सोचा कर

हाय यह दारू चीज़ बुरी है
टल्ली होकर मत सोचा कर

राह कठिन और धूप कड़ी है
मांग ले छाता मत सोचा कर

बारिश में ज़्यादा भीग गया तो
खटिया पकडूँगा मत सोचा कर

मूँद के ऑंखें दौड़ चला चल
नाला गड्ढा मत सोचा कर

जिसकी किस्मत में पिटना हो
वो तो पिटेगा मत सोचा कर

जो लाया है लिखवाकर खटना
वो सदा खटेगा मत सोचा कर

सब ऐहमक फुकरे साथ हैं तेरे
ख़ुद को तनहा मत सोचा कर

उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा
हार जीत की मत सोचा कर

सोना दूभर हो जाएगा जाना
दीवाने इतना मत सोचा कर

खाया कर मेवा तू वर्ना
पछतायेगा मत सोचा कर

सोच सोच कर सोच में जीना
ऐसे मरने का मत सोचा कर

बुधवार, अप्रैल 10, 2013

मेरा बचपन

जीवन की पथरीली
राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती
आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली
चुभन में घुटते घुटते
याद आती है
सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में
जकड़े जीवन में
याद आती है
उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन
सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन
अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन
साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में
हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी
हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी
हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी
कब वापस आएगा
सलोना बचपन
हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता
बचपन
कभी कभी नानी की कहानी
कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन\
था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है
बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ
छिप गया मेरा बचपन

रविवार, अप्रैल 07, 2013

सन्डे मना रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं
बिस्तर पर पड़े
हम तो
पकोड़े खा रहे हैं

टीवी चला रहे हैं
मैच लगा रहे हैं
बल्ले पे बॉल आई
गुरु जी
धोते जा रहे हैं

लंच बना रहे हैं
परांठे सिकवा रहे हैं
लाल मिर्च निम्बू के
अचार से
चटखारे ले खा रहे हैं

रायता बिला रहे हैं
बूंदी मिला रहे हैं
फिर करछी आंच
पर रख हम
छौंका बना रहे हैं

बच्चों को पढ़ा रहे हैं
सर अपना खपा रहे हैं
हाथ में ले के डंडा
हम उनको
डरा धमका रहे हैं

सुस्ती दिखा रहे हैं
खटिया पे जा रहे हैं
लैपटॉप सामने रख
हम तो
उँगलियाँ चला रहे हैं

अब सोने जा रहे हैं
ख्व़ाब सजा रहे हैं
चादर ताने मुंह तक
हम अब
चुस्ती दिखा जा रहे हैं

शब्द सजा रहे हैं
सोच दौड़ा रहे हैं
कीबोर्ड यूज़ करके
हम अब
कवीता बना रहे हैं

जल्दी से लिख रहे हैं
पोस्ट बना रहे हैं
फेसबुक पर बैठे
हम ये
रचना पढ़वा रहे हैं

लोग भी आ रहे हैं
पढ़ पढ़ के जा रहे हैं
सिर्फ लाइक कर के
सब ये
बिना कमेंट किये जा रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं

मलिन सोच

सत्य वचन सुनाता है समझे
जग बीती बताता है समझे
दशा भयी कितनो की है यह   
'निर्जन' कथा दिखता है समझे

राह खड़ी फुसलावत है समझे 
कामुकता से रिझावत है समझे 
मकड़जाल में माया के यह 
फंसने पर छटपटावत है समझे 

ताज़ा ताज़ा दिल हारा है समझे  
बकरा कितना प्यारा है समझे 
जो मलिन सोच से बंधता है यह
जीवन में खुद का मारा है समझे

शादी अब कारोबार है समझे
सौदों की भरमार है समझे
दिल के रिश्तों को भी अब यह 
मिला नया बाज़ार है समझे

बातों को खरताल है समझे
सोना चांदी माल है समझे
जीवन में आव़ाज़ाही को यह   
बच्चों का खिलवाड़ है समझे

आते ही रंग दिखलाती है समझे
चप्पल जूते चलवाती है समझे
मासूम सदा बनकर जो है यह
घर में कलह करवाती है समझे

पौ फटते फ़रमाइश है समझे
जेब की भी नुमाइश है समझे
खर्चें हरी पत्तियां जो है यह
मेहनत की कमाई है समझे


व्यापार चौपट करवाती है समझे
दर दर धक्के खिलवाती है समझे 
व्यक्तित्वहीन सोच जो है यह 
मनुष्य को दरिंदा बनवाती है समझे 

नित नए स्वांग रचाती है समझे
जीवन चलचित्र बनाती है समझे
मान अपमान के मोल को यह
तफ़री में उड़ाती है समझे  

आँख निकाल गुर्राती है समझे
शोले रोज़ बरसाती है समझे
जीवन पावन पुस्तक को यह
क्रोधाग्नि में जलाती है समझे

तंतर-मंतर करवाती है समझे
दिल में फाँस गड़वाती है समझे
संबंधो में परस्पर प्रेम को यह  
सूली पर चढ़वाती है समझे

संतान विच्छेद करवाती है समझे
उलटी पट्टी पढ़वाती है समझे
अनुचित शिक्षा में माहिर है यह 
बालक भविष्य डुबाती है समझे 

पिता-पुत्र लड़वाती है समझे 
बहन-भाई भिड़वाती है समझे 
बैठे दूर तमाशबीन बन यह  
रिश्तों में फूट डलवाती है समझे 

मान मर्यादा भूली है समझे
क्रियाचारित्र पर झूली है समझे
अपमानित अभद्र व्यवहार से यह
मुंह काला कर भूली है समझे

माल समेट भागे है समझे
पता कहीं ना पावे है समझे
झूठे तर्क दिखाकर कर यह  
कोर्ट केस कर जावे है समझे

नर्क भ्रमण करवाती है समझे
यमलोक पहुंचती है समझे
सज्जन पुरुषों की तो यह
अर्थी तक बंधवाती है समझे

शुभचिंतक यही सुझाता है समझे
मलिन विचारणा में कभी न उलझे 
जिस क्षण दिल में आ जाती है यह
ऊर्जा नष्ट कर के जाती है समझे

इससे अब सब बचकर रहना 
ज़िंदगी में साथ न इसका देना 
जो यह कहीं मिल जाये तुमको 
रसीद तमाचा रखकर देना