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बुधवार, मार्च 30, 2011

मुझको

शब् भर ग़म-ए-दोरान में फंसा लिया खुद को 
यह जिंसी मोहब्बत ने बहका दिया मुझको
अब उस अंजुमन से क्या गिला करना 
खुद अपनी ही खुदी से गिरा दिया खुद को 
सितम अब यह नही के वो यार क्या सोचेगा 
गिरा हूँ नज़र से अपनी उठा सका न खुद को 
यह जज़्बात-ए-फ़हाशी तेरी खातिर थाम रखे थे 
यह जिंसी कशिश कहीं बर्बाद न कर दे मुझको 
मगर ए यार ग़ाफिल ही सही फ़रहात से 
पर बे-ज़मीर नही ए 'निर्जन'
मेरे रब की रहमतों ने बचा लिया मुझको 

[ दोरान = During, जिंसी = Sex Appeal, ग़ाफिल = Reckless/Unaware/Absent Minded, फ़रहात = Pleasure, फ़हाशी = Obscenity ]