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बुधवार, जनवरी 15, 2014

देखे होंगे


















मेरी तरह उसने भी तो रातों में
चाँद से लिपटते तारे देखे होंगे
चांदनी के आगोश में सिमटते
वो मदहोश नज़ारे देखे होंगे
रात के आसमान में धीरे से
खिसकते बादल देखे होंगे
छत की मुंडेर को थामे वो
रातों में मुझे ढूँढ़ते तो होंगे
सियाह रात के सर्द कुहरे में
बंद होठ धीरे से मुस्कुराते होंगे
अनकहे अनछुए एहसास उसके
दिल में भी धड़कते मचलते होंगे
बस कह नहीं पाता है वो
दिल की बात 'निर्जन' तुझसे
ये बात दीगर है कि सपने तो
उसने भी वही देखे होंगे...

मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

एक शाम उसके नाम




















‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे 
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे 
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है 
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ 
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं 
ठहर जाएँ तो सागर हैं 
बरस जाएँ तो शबनम हैं 
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में 
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा 
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की 
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है 
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है 
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को 
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है 
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात 
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है 
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे 
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ 
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ 
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक 
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था 
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था 
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया 
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं 
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है 
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा 
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है 
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा  
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए 
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का 
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का 
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही 
दोस्ती में, 
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन' 
तो शब् भर रात रोती हैं 
ये दुनिया तंग दिल इतनी 
दिलों में कांटे चुभोती है 
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ 
मैं हमदम से भी इतरा कर 
तेरी महफ़िल आकर तो 
बड़ी तकलीफ होती है 

मंगलवार, नवंबर 12, 2013

Love












Love is existance
Love is life
Love dear being
Is the way to paradise
Deep it with your heart
Deep it with your soul
Devote it to the one
And believe it as your pride
Love means to care
Love means to share
Caring for the Love
With your prime sacrifice
Take it as my word
Even God is with Love
The Love that is pure
Honest True and Divine
So Love but with purity
Devotion and sincerity
Surly God is with you 'nirjan'
Never never let him chide

बुधवार, नवंबर 06, 2013

दिल ये गया दिल वो गया














दिल वहाँ गया दिल कहाँ गया
बस जाने यह अहमक जहाँ गया
अरे पुछा जब उसने मुझसे ऐसे
दिल फिसल गया हाय संभल गया

कोयल बनकर दिल चहक गया
पपीहा मन के भीतर उतर गया
चहका बैठ मुंडेर पर जाकर ऐसे
दिल किधर गया हाय उधर गया

चिमटी बनकर दिल अटक गया
गेसुओं में छिपकर सिमट गया
झटका उसने जुल्फों को कुछ ऐसे
दिल लटक गया हाय चटक गया

आतिश बनकर दिल दहक गया
खलल एक दिमाग में पनप गया
हवा जो दी हसरतों को जोर से ऐसे
दिल सुलग गया हाय धधक गया

काजल बनकर दिल सज गया
नयनो में सियाही सा रच गया
मूंदी पलकें ज़ालिम ने फिर ऐसे
दिल मचल गया हाय बिखर गया

मोम बनकर दिल पिघल गया
जुगनू सा चम् चम् चमक गया
'निर्जन' वो जीवन में आया ऐसे
दिल सुधर गया हाय बिगड़ गया 

रविवार, अक्तूबर 13, 2013

क्यों ???

क्यों दिल उसके इंतज़ार में सदा रहता है
मिलता है रोज़ मगर दिल तनहा रहता है

पास है जो उसे दुनिया बुरा ही कहती है
देखा नहीं जिसे उसने उसे ख़ुदा कहती है

नफरत अपनों से अपनों को छुड़ा देती है
फासला दिलों में यह कितना बढ़ा देती है

बस चंद मासूम से शब्दों का लहू है 'निर्जन'
दुनिया जिसे मेरे ज़ख्मों की दवा कहती है

सोमवार, सितंबर 02, 2013

मेरी तौबा

















गल्बा-ए-इश्क़ के गुल्ज़ारों में
खिला गुलाबी रुखस़ार तौबा

दमकता हुस्न बेहिसाब तेरा
रात में खिला महताब तौबा

खिज़ा रसीदा सहराओं में
हसरतें दिल-कुशा तौबा

आब-ए-जबीं पे परिसा जुल्फें
दमकते चेहरे पे नक़ाब तौबा

उससे मुलाक़ात यकीनन बाक़ी
है अधूरा ख्वाब 'निर्जन' तौबा

भरे हैं आब-ए-चश्म से सागर
आतिश आब-ए-तल्ख़ सी तौबा

इश्तियाक़ हसरत-ए-दीदार ऐसी
अफ़साने लिख जाएँ तो तौबा

लिखो इख्लास अब तुम मेरा
मैं कहता हूँ मेरी तौबा ....

गल्बा-ए-इश्क़ - प्यार का जूनून
गुलज़ार - उपवन
रुखस़ार - ग़ाल
खिज़ा - पतझड़
रसीदा - मिला है
सहरा - रेगिस्तान
दिल-कुशा - मनोहर
जबीं- माथा
आब-ए-चश्म-आंसू
आब-ए-तल्ख़ - शराब
आतिश-आग
इश्तियाक़-चाह, इच्छा, लालसा
हसरत-ए-दीदार - ललक , आरज़ू
अफ़साने - कहानियां, किस्से
इख्लास= प्यार, प्रेम

शुक्रवार, अगस्त 30, 2013

दिल जला के उसको याद किया



















चाहत से भरे उस सागर में
बहती लहरों की गागर में  
अपने दिल को आज़ाद किया
दिल जला के उसको याद किया

उन मतवाली रातों में
उसकी नशीली बातों में
चुप रहकर खुद को बर्बाद किया
दिल जला के उसको याद किया

एक नज़र जब उसको देखा
दिल जिगर चाहत में फेंका
जा मस्जिद में फ़रियाद किया
दिल जला के उसको याद किया

इस जीवन के बही खातों में
उन बीते ख्वाबों और रातों में
जाग खुद अपने से बात किया
दिल जला के उसको याद किया

उन कलियों के खिलने से पहले
उन गलियों में मिलने से पहले
आशिक दिल ही दिल आबाद हुआ
दिल जला के उसको याद किया

दिल जला के उसको याद किया 

थी वो





















कभी लगता है ज़िन्दगी थी वो
दिल ये मेरा कहे अजनबी थी वो

वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे

सोचा शरीक-ए-ग़म थी वो
कभी मुझसे मिलके हम थी वो

बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे

दिल से बेज़ार बेज़ुबान थी वो
आरज़ू तार तार बदगुमान थी वो

घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे

दिल से जुड़े लोगों में थी वो
मेरी आँखों में ज़िन्दगी थी वो

शनिवार, अगस्त 03, 2013

इंतज़ार उसका मुझे
















वो कहते हैं इश्क नहीं
होता पहली नज़र में
मैंने जिस से भी किया
आज भी निभा रहा हूँ

सुलगते जो दिल में
जज़्बात रहते हैं मेरे
आज लिखकर उन्हें
दिलसे बतला रहा हूँ

वो आया था नज़रों में
फिर दिल को भा गया
एक निगाह डाल कर
मुझे अपना बना गया

रंग ऐसा चढ़ा उसका
छुड़ाए छुट न सका
बाद मुददतों के भी
नाम मिट न सका

पतंगा बन कर रहा
आग में जलता रहा
बरसों 'निर्जन' यूँ ही
बस पिघलता रहा

इंतज़ार उसका मुझे
आज भी है ऐ दोस्त
उम्रभर इश्क को मेरे
जो बैठा परखता रहा

गुरुवार, जुलाई 11, 2013

हंसी और ग़म



















होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
मुस्कान भी है, आँखे नम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
पास तो है, पर क्या दूरी कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
क्या व्हिस्की और क्या रम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कुछ चलता सा, कुछ कुछ थम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

शनिवार, जून 29, 2013

नमाज़ में वो थी















नमाज़ में वो थी, पर ऐसा लगा कि
दुआ हमारी, कबूल हो गई
सजदे में वो थी, पर ऐसा लगा कि
खुदा हमारी, वो रसूल हो गई
आयतों में वो थी, पर ऐसा लगा कि
ज़िन्दगी हमारी, नूर हो गई
तज्बी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
मुख़्लिस हमारी, हबीब हो गई
मदीने में वो थी, पर ऐसा लगा कि
तसव्वुफ़ हमारी, मादूम हो गई
ज़िन्दगी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
'निर्जन' ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से
महरूम हो गई, महरूम हो गई

मुख़्लिस - दिल की साफ
हबीब - दोस्त
तसव्वुफ़ - भक्ति
मादूम - धुंदली हो गई 

मंगलवार, जून 04, 2013

चाँद पूनम का

















चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा

रात चाँद की चांदनी में सिसकता बदल देखा
मैंने रात की आँखों से पिघलता काजल देखा

काजल सी रात में तेरी बातें करता रहा खुद से
गूंजते रहे अलफ़ाज़ तेरे जुदा हो गया मैं खुद से

घुमड़ आई यादों की घटा बदली बन दिल पर
भीगता रहा रात भर मैं अपने लब सिल कर

हौसला छीन लिया मुझसे ग़म-ए-जिंदगानी ने
ख़ाक कर दिया दिल जलाकर रात तूफानी ने

आबाद हो जायेगा 'निर्जन' फिर शायद मर कर
जो फकत देख लेती तू कजरारे नयनो से मुड़ के

चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा 

बुधवार, मई 08, 2013

कर्म की मिठास














पग घुंघरू बाँध
मीरा नाची थी
केशव
की याद में, या
फिर केशव
के कर्म
रंग, रूप, गुण
की गंध में
मुग्ध हुई
मन वीणा, की
झंकार पर
नाची थी
हाँ
कर्म की
झंकार ही ने
मीरा को
बाध्य किया
नाचने पर
कर्म की मिठास ही
जीवन को सतरंगी
बनाती है 

बुधवार, मई 01, 2013

सुन रहा है ना वो














कल मैंने आशिकी २ देखी | बहुत ही सुन्दर फिल्म बनाई टी-सीरीज ने | उसका एक गाना "सुन रहा है तू" बहुत ही सुरीला और उसके बोल दिल में अन्दर तक उतर गए हैं | अब तक मैं उस गाने को कम से कम ५० दफा सुन चुका हूँ पर क्या करूँ दिल ही नहीं करता बंद करने को | तो सोचा कुछ अपना ही लिख डालूं उस गाने की धुन पर  और रिकॉर्ड कर के प्रस्तुत करूँ | तो वही पेश कर रहा हूँ | गाने की धुन को सुनने के लिए और मेरे बोल उस पर सजाकर पढने के लिए गाने का लिंक यहाँ दे रहा हूँ | गाना मेल और फीमेल दोनों आवाज़ों में हैं तो मैंने दोनों ही पर अपने बोल लिखने की कोशिश की है | उम्मीद है आपको मेरी कोशिश पसंद आएगी |




मुझको गाने दे
शब्दों को माने दे
दुखती सज़ाओं के
वो लम्हे भुलाने दे
साँसों को आने दे
अब गुनगुनाने दे
खुशियों के साज़ो पर
नए गीत बजाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

बातें, खुशनुमा हैं
लिखी है, नई दास्तां
पाई, दिल ने मेरे
हैं, इतनी सी खुशियाँ
दिल अब भी, सलामत है
खुद ही से, खुशामत है

मुझको भुलाने दे
बीते ज़माने वे
तेरी पनाहों में जो
लम्हे गुज़ारे थे
दिल को बहलाने दे
हंसने दे, गाने दे,
बीती यादों को अब
दिल से मिटाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

रविवार, अप्रैल 14, 2013

क्या कहता

ख़ुदा जाने मैं क्या कहता, जो कहता मैं क्या कहता
सही के लिए क्या कहता, ग़लत के लिए क्या कहता

रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता
मिलते रहना ही क्या कहता, क्या है दिलमें क्या कहता

सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों हैं वीरां क्या कहता
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता

तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता

तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता

आखरी क़दम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिस्ती क्या कहता

लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता
हंसी मजाक जब क्या कहता, ह्रदय वेदना अब क्या कहता

तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता
कहता तो बस कहता रहता, ‘निर्जन’ दिल से दिल कहता

शुक्रिया तेरा

शुक्रिया तेरा
प्रत्येक जतन के लिए
हर पल सुनने के लिए
परवाह करने के लिए
प्यार करने के लिए
खुद को खुद की तरह
रखने के लिए

हैरान रह जाता हूँ मैं
कैसे रहती है तू
इतनी शांत
कहाँ से लाइ है
इतनी सहनशीलता
क्यों है तेरे पास
इतना धीरज

तू पास मेरे बैठ कर
बस सुनती रहती है
जब भी अनाड़ीपन से
मैं छलकाता हूँ दिल के
जज़्बात सामने तेरे और
मुस्कराती रहती है तू
आँख मूंदे मंद मंद

पर मैं भी
चाहता हूँ करूँ
तेरे लिए कुछ ऐसा ही
चल बता तू अपने डर
और बता दे जो भी
दिल में बसी हैं
चाहतें तेरी

वादा तो मैं करता नहीं
दे सकूँगा सब कुछ तुझे
आज, कल या जिंदगी भर
पर इतना कहूँगा बस तुझे
जब तक है जां में जां मेरे
कोशिश करूँगा खुश
रहे तू उम्र भर

शुक्रिया तेरा
सब कुछ है तू
मेरे लिए
शुक्रिया कहते
नहीं थकता है
'निर्जन' आज
बस तेरे लिए

बुधवार, मार्च 20, 2013

इश्किया होली


इश्क़िया होली पर तुझे दिल पेश करूँ
इश्क़िया होली पर तुझे जां पेश करूँ
इश्क़िया होली पर तुझे जहां पेश करूँ
जो तू कहे नगमा-ए-जज़्बात तुझे 
मेरी जानिब-ए-मंजिल पेश करूँ
गर मालूम हो तेरी नियाज़-ए-इश्क 
फ़िर नगमात-ए-इश्क गाकर वही 
दिलनवाज़ दिल्साज़ मैं पेश करूँ
जो तेरी नम हसरतों को हवा दे 
जज़्बात वही सजाकर पेश करूँ 
या कोई तेरी ग़ज़ल, कविता, किस्सा 
तेरे ही अल्फाजों में तुझे पेश करूँ 
तू जो एक बार मिल जाये होली पर 
अपने नवरंग प्यार की बौछार से भिगा
सराबोर कर, तुझको तुझे ही पेश करूँ 
अबके होली....

मंगलवार, मार्च 12, 2013

शाद-ए-हबल्ब

फवाद-ए-फुर्सत की दुआ तू है 
अबसार-ए-मसरूर फरोग तू है  
देख तुझे दीदार-ए-दुनिया हासिल है 
शाइ तू जो दिलों जहाँ गाफ़िल है  
ख़ामोशी बयां करती अफ़साने है
लफ़्ज़ों में शामिल शोख नजराने हैं
जाकिर शोखियाँ तेरी तनहा रातों में 
क़माल जादू मयस्सर तेरे हाथों में 
घुंचालब कहते आलि-आलिम बातें 
याद है तुझसे आक़िबत वस्ल  
बहकी दिलकश मदहोश सियाह रातें 
उम्मीद-ए-फ़र्दा फ़कत तू है मेरी 
शाद-ए-हबल्ब तू ही है बस 
अब बज़्म-ए-यार में....

फवाद-ए-फुर्सत - स्वस्थ होते दिल / रिकवरिंग  हार्ट / recovering heart
अबसार - आँखें / आईज / eyes
मसरूर - आनन्दित / चीयर्फुल / cheerful
फरोग - रौशनी / लाइट / light
शाइ - गुम / लॉस्ट / lost
अफ़साने - किस्से / स्टोरीज / stories
शोख - शरारती / मिसचीविअस / mischevious
जाकिर - ख्याल करना / रेमेम्बेरिंग / remembering
शोखियाँ - शरारतें /  प्रैंक्स / pranks
मयस्सर -  मौजूद / अवेलेबल / available
घुंचालब - कली जैसे होठ / बड लिप्स / lips like bud  
आलि - अवर्णनीय / सबलाइम / sublime
आलिम - समझदार / इंटेलीजेंट / intelligent
आक़िबत - अंतिम / फाइनल / final
वस्ल - मुलाकातें / मीटिंग्स / meetings 
उम्मीद - आशा / एक्स्पेक्ट / expect 
फ़र्दा -  कल / टुमौरो / tomorrow
शाद - छाया / शैडो / shadow
हबल्ब - दोस्त / फ्रेंड / friend
बज़्म-ए-यार - दोस्तों के महफ़िल / ग्रुप ऑफ़ फ्रेंड्स / group of friends

बुधवार, जनवरी 23, 2013

एक कोना खाली दिल का मेरे












एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...

तेरी मंद मंद मुस्कानों पर
दिल मेरा आज भी मरता है
तेरी शोख अदाओं की 'चुहिया'
दिल आज भी तारीफ़ करता है

तेरे इतराने इठलाने पर
दिल बाग़ बाग़ हो उठता है
बुलबुल सी तेरी चहक को ही
सुनने को दिल तरसता है

दौड़ के आकर लगना गले
और कहना धीरे से 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को
और आँखों से शरारत करना
अब कब ये सपना सच होगा
इंतज़ार दीवाना करता है

चिपक के सीने से मेरे
तेरा सपनो में खो जाना
पर आज इन काली रातों में
दिल हर पल धड़कन गिनता है

तेरे नाज़ुक नाज़ुक हाथों से
गालों को सहलाना मेरे
तेरे छोटे छोटे हाथों को
फिर चूमने का दिल करता है
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया
दिल तुझसे मिलने को करता है

एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...

गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

ख़्वाब














हर शब् आते रहे
बहके महके ख़्वाब
ज़हन में
तुम्हारा आवा दरफ्त
जारी रहा
बेचैन दिल में
सन्नाटे का शोर
चीख चीख कर
कहता रहा
क्यों देखता है ख़्वाब
इस नींद के खुमार में
कुछ सोच कर
जब वापस गया
तो सारे ख़्वाब
टूट चुके थे
खो गए थे
काली रात के अंधियारे में
बिस्तर की सिलवटों में
तकिये पर सर रख कर
'निर्जन' फिर से खो गया
एक नए ख़्वाब के
इंतज़ार में ....